जब कोई जातक पितृदोष से पीड़ित होता है, तो उसके जीवन में सफलता के सभी रास्ते बंद हो जाते हैं| वह समझ ही नहीं पाता कि उसके जीवन में आखिर क्यों इतना बुरा समय चल रहा है? जन्मपत्रिका में अनुकूल दशाएँ होने पर भी एवं गोचर दशाएँ सकारात्मक होने पर भी उस व्यक्ति का समय अनुकूल नहीं हो पाता है| उसके सभी प्रयास विफल हो जाते हैं, समय पर विवाह नहीं होता; नौकरी नहीं मिलती, यदि मिलती भी है, तो उससे संतुष्टि प्राप्त नहीं हो पाती; घर में सदस्यों का स्वास्थ्य खराब रहता है और किसी भी मांगलिक कार्य के अवसर पर कई प्रकार के विघ्न उपस्थित हो जाते हैं| यदि इन सभी समस्याओं का कारण पितृदोष है, तो इसका निवारण करना अत्यावश्यक है|
हिन्दू धर्मशास्त्रों में वर्णित है कि जब किसी व्यक्ति के पितर नाराज हो जाते हैं, तो वे उसका कई प्रकार से अमंगल करते हैं| फलित ज्योतिष के ग्रन्थों में पितृशाप, मातृशाप आदि के रूप में पितृदोषों का वर्णन किया गया है| वहॉं उनसे सम्बन्धित ग्रह योग भी बताये गए हैं|
ज्योतिष के अनुसार जन्मपत्रिका से यह ज्ञात किया जा सकता है कि घर में कौन-से पूर्वज के कारण पितृदोष उपस्थित हो रहा है? इस दोष के निवारण हेतु वैसे तो पुराणों में कई प्रकार के उपायों का उल्लेख किया गया है, लेकिन यदि इसे ‘उपचार ज्योतिष’ के आधार पर देखा जाए, तो पितृदोष उत्पन्न करने वाले ग्रहों के निवारण और पुराणों में कथित पितृदोष निवारण के उपायों को करने से शीघ्र ही पितर अनुकूल होकर शुभ फल प्रदान करते हैं|
पितृदोष निवारण के लिए गया श्राद्धपक्ष, अमावस्या पर किए जाने वाले श्राद्ध, आश्विन कृष्ण पक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध के अतिरिक्त और भी कई अन्य श्राद्धों का उल्लेख मिलता है, लेकिन वर्तमान में सिर्फ यही श्राद्ध प्रसिद्ध हैं|
इसे यदि ज्योतिष के अनुसार देखें, तो पितृदोष निवारण के लिए उससे संबंधित पीड़ित ग्रह का उपचार करना अच्छा होता है| इसके अतिरिक्त पितृदोष निवारक यंत्र के पूजन से भी पितरों को संतुष्ट किया जा सकता है, क्योंकि पितृ यंत्र साक्षात् पितर समान ही होते हैंं|
ज्योतिष के अनुसार पितृदोष निवारण के लिए सर्वप्रथम यह ज्ञात करना होता है कि किस ग्रह के कारण आपकी जन्मपत्रिका में पितृदोष उत्पन्न हो रहा है? इनमें सूर्य से पिता अथवा पितामह, चन्द्रमा से माता अथवा मातामह, मंगल से भ्राता अथवा भगिनी तथा शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है| इस प्रकार पता लगाया जा सकता है कि पितृदोष किस पितर के कारण है? उक्त ग्रहों के अतिरिक्त गुरु, शनि एवं राहु की भूमिका प्रत्येक पितृदोष में महत्त्वपूर्ण होती है| मुख्य रूप से इन तीन ग्रहों के पीड़ित होने के कारण ही पितृदोष उत्पन्न होता है| अधिकतर व्यक्तियों की जन्मपत्रिका में इन तीन ग्रहों के सम्बन्ध बनाकर अशुभ भावों में स्थित होने अथवा पीड़ित होने पर इस प्रकार का योग उत्पन्न होता है, इसलिए जन्मपत्रिका में किसी भी प्रकार का पितृदोष हो, ऐसा ज्ञात होने पर विभिन्न उपायों के अतिरिक्त पॉंचमुखी, सातमुखी एवं आठमुखी रुद्राक्ष भी अवश्य धारण करने चाहिए| इन तीनों रुद्राक्षों को एक साथ धारण करने से पितृदोष निवारण होना शीघ्र सम्भव हो जाता है और आपके पूर्वजों को शांति भी मिलती है| इन रुद्राक्षों को धारण करने के अतिरिक्त इनके अन्य उपाय भी करने चाहिए| इन तीनों ग्रहों के मंत्रों का जप एवं स्तोत्रों का पाठ करना श्रेष्ठ होता है|
यदि जन्मपत्रिका में गुरु बलवान् हो, तो वह अकेला ही ऐसे दोषों को समाप्त करने वाला होता है, अत: गुरु को बली करने के लिए ज्योतिषीय परामर्श से पुखराज रत्न भी धारण किया जा सकता है| इसके अतिरिक्त प्रत्येक अमावस्या के दिन दोपहर के समय घर में गुग्गुल की धूप प्रज्वलित कर पूरे घर में उसकी धूप देनी चाहिए| प्रत्येक अमावस्या के दिन अपने पितरों के निमित्त भोजन निकालकर गाय, कुत्ते और कौवे को खिलाने के पश्चात् किसी ब्राह्मण को भोजन खिलाएँ| इसके अतिरिक्त आश्विन कृष्ण पक्ष में आने वाले श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों की तिथि के अनुसार उनका श्राद्ध मनाएँ| इस प्रकार उपाय करने पर पितृदोष से मुक्ति पायी जा सकती है|
