ऐसे करें पहाड़ी क्षेत्रों में भवन निर्माण

वास्‍तु

हमारे देश के उत्तर और पूर्व का काफी बड़ा भू-भाग पर्वत शृंखलाओं से आच्छादित है| जहॉं पर देश की बड़ी आबादी-निवास करता है| ऐसे पहाड़ी क्षेत्रों पर भवन निर्माण के लिए ज्यादातर भूखण्ड ढलान वाले ही उपलब्ध होते हैं, जिनकी ढलान किसी भी दिशा में हो सकती है| ऐसे पहाड़ी स्थानों पर भवन बनाने के लिए भूखण्ड खरीदते समय वास्तु सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए, ताकि उस स्थान पर वास्तु के अनुरूप भवन बनाकर सुखद जीवन व्यतीत किया जा सके|
1. किसी भी पहाड़ी स्थान पर भूखण्ड उसी जगह खरीदें, जहॉं पूर्व और उत्तर दिशा की ओर ढलान हो| उत्तर और पूर्व दिशा में ही आने-जाने के लिए रास्ते हों|
2. कभी भी ऐसे पहाड़ी स्थान पर भूखण्ड नहीं खरीदें, जहॉं दक्षिण और पश्‍चिम दिशा में ढलान हो और आने-जाने का रास्ता भी इन्हीं दिशाओं में हो|
3. पहाड़ी के पूर्व अथवा उत्तर दिशा में नदी, झरना, तालाब इत्यादि का होना अत्यन्त शुभ होता है| ऐसे में पहाड़ी स्थान की उत्तर एवं पूर्व दिशा में खरीदा गया भूखण्ड सुख-समृद्धिदायक होता है|
4. पहाड़ी के दक्षिण-पश्‍चिम में नदी, नहर, झरना, तालाब इत्यादि का होना अत्यन्त अशुभ होता है| ऐसी जगह पर खरीदा गया भूखण्ड हानिकारक होता है|
5. पहाड़ी पर स्थित भूखण्ड पर भवन निर्माण करते समय जमीन को समतल करके भवन निर्माण करना चाहिए| यदि भूखण्ड बड़ा हो, तो उत्तर-पूर्व की ओर उतरते हुए दो-तीन स्टेप में जमीन को समतल कर निर्माण किया जा सकता है|
6. पहाड़ पर स्थित भूखण्ड के दक्षिण एवं पश्‍चिम में बड़े-बड़े पहाड़ों की शृंखलाओं का होना बहुत शुभ होता है|
7. पहाड़ पर स्थित भूखण्ड के पूर्व अथवा उत्तर दिशा के पास ही बड़े पहाड़ अथवा पहाड़ों की शृंखलाओं का होना अशुभ होता है, क्योंकि ऐसे भूखण्ड पर सूर्य की प्रात:कालीन जीवनदायिनी किरणों का लाभ नहीं मिल पाता है|
8. भवन की कम्पाउण्ड वॉल का मुख्यद्वार उत्तर-ईशान अथवा पूर्व-ईशान में ही होना चाहिए| दक्षिण अथवा पश्‍चिम दिशा में कभी भी द्वार नहीं रखना चाहिए|
9. पहाड़ी पर बने भवन की छत की ढलान भी उत्तर अथवा पूर्व दिशा की ओर देनी चाहिए| दक्षिण अथवा पश्‍चिम की ओर छत की ढलान कभी नहीं देनी चाहिए|
विशेष : वास्तुशास्त्र और फेंगशुई में पहाड़ अथवा ऊँची-नीची जगह पर भवन बनाने के स्थान को लेकर थोड़ा विरोधाभास है| फेंगशुई का एक सिद्धान्त है कि यदि पहाड़ के मध्य में कोई भवन बना हो, जिसके पीछे पहाड़ की ऊँचाई हो, आगे की ओर पहाड़ का ढलान हो और ढलान के बाद पानी का झरना, तालाब, नदी, समुद्र इत्यादि हो, तो ऐसा भवन प्रसिद्धि प्राप्त करता है| उस भवन में निवास करने वाले व्यक्ति सुखमय जीवन व्यतीत करते हैं| फेंगशुई के इस सिद्धान्त में दिशा का कोई महत्त्व नहीं होता है| ऐसा भवन किसी भी दिशा में हो सकता है| चाहे पूर्व दिशा ऊँची हो और पश्‍चिम में ढलान के बाद तालाब हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है| इसका सबसे अच्छा उदाहरण उज्जैन स्थित महाकालेश्‍वर मन्दिर है, जो कि भारत के प्रसिद्ध द्वादश ज्योर्तिलिंगों में से एक है| इस मन्दिर के पूर्व दिशा में ऊँचाई है और पश्‍चिम में ढलान के साथ मन्दिर के अन्दर बड़ा कुण्ड है| मन्दिर के बाहर पश्‍चिम दिशा में बहुत बड़ा तालाब है और आगे जाकर पश्‍चिम दिशा में ही क्षिप्रा नदी बह रही है| इस प्रकार यह महाकालेश्‍वर मन्दिर फेंगशुई के इस सिद्धान्त के अनुरूप बना है, परन्तु भारतीय वास्तुशास्त्र के सिद्धान्त के विपरीत बना होने के बाद भी यह मन्दिर सम्पूर्ण विश्‍व में बहुत प्रसिद्ध है| भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा में ऊँचाई और पश्‍चिम में ढलान तथा पानी का स्रोत होना बहुत अशुभ होता है|
यदि कोई भवन ऐसे पहाड़ पर बना हो, जहॉं पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर ढलान पर तालाब, झरना इत्यादि हों, दक्षिण एवं पश्‍चिम दिशा में पहाड़ की ऊँचाई हो और पहाड़ के मध्य में भवन बना हुआ हो| ऐसे उत्तर अथवा पूर्व ढलान पर बने भवन जहॉं पर फेंगशुई और वास्तुशास्त्र दोनों के सिद्धान्त लागू होते हैं| ऐसे स्थान विश्‍वभर में प्रसिद्धि पाते हैं| इससे भवन की प्रसिद्धि केवल फेंगशुई के सिद्धान्त के अनुसार बने भवन की तुलना में बहुत ज्यादा होती है; जैसे तिरुपति बालाजी का मन्दिर इत्यादि| •

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