पराशक्तियों से सम्पर्क ‘सिक्स्थ सेन्स’ का रहस्य

तन्‍त्र-मन्‍त्र-यन्‍त्र धर्म-उपासना

Published : March, 2008
लेखक को कुछ दिनों पूर्व एक ऐसे व्यक्ति की जन्मपत्रिका देखने को मिली, जिसका पारलौकिक शक्तियों से सम्पर्क था अर्थात् उसमें सिक्स्थ सेन्स की शक्ति थी| उसे मृत आत्माएँ एवं भूत-प्रेत दिखते थे| यद्यपि उनसे उसे किसी प्रकार की हानि नहीं हुई, परन्तु उनके प्रभाव से उसे ऐसी घटनाओं का सामना करना पड़ा, जो सामान्य व्यक्ति के जीवन में नहीं आती हैं| पहली बार उस व्यक्ति को इस प्रकृति प्रदत्त शक्ति का अहसास एक परिचित के घर में हुआ| जहॉं एक वृद्ध महिला की मृत आत्मा ने उनसे सम्पर्क साधने का प्रयास किया| प्रारम्भ में तो वह यह भी नहीं जान पाए कि यह कोई मृत महिला है| उसके पश्‍चात्, तो उनका कई बार मृत आत्माओं से सामना होने लगा|
रहस्यमयी समझे जाने वाले प्रसिद्ध फिल्मकार मनोज नाइट श्यामलन की ‘सिक्स्थ सेन्स’ फिल्म में भी इसी प्रकार की कहानी थी|
मशहूर अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने अपनी हत्या से दो दिन पूर्व एक स्वप्न देखा था, जिसमें वह अपने कमरे से उठकर नीचे आते हैं, जहॉं कई पुरुष और महिलाएँ किसी मृत व्यक्ति के सामने बैठकर रो रहे थे|
हॉलीवुड की प्रसिद्ध फिल्म शृंखला ‘फाइनल डेस्टिनेशन’ में भी मृत्यु के पूर्वाभास को लेकर कहानी रची गई थी| जहॉं कोई एक व्यक्ति मृत्यु को पूर्व में जानकर उससे बच जाता है, तत्पश्‍चात् मृत्यु किसी दूसरे रूप में आकर उसका हरण करती है|
इस प्रकार पूर्वाभास तथा उन अदृश्य शक्तियों को महसूस करने वाली इस प्राकृतिक शक्ति का ज्योतिषीय कारण क्या हो सकता है? यह विचार करना भी आवश्यक है| प्रस्तुत लेख में ऐसी ही शक्तियों के योगों की जन्मपत्रिका में तथा लक्षणों की हस्तरेखा में व्याख्या की जाएगी|
जन्मपत्रिका में लग्न रुचि को दर्शाता है| पंचम बुद्धि एवं ज्ञान, अष्टम गूढ़ विद्या तथा नवम भाव आध्यात्मिक शक्ति को दर्शाता है| शनि गूढ़ विद्याओं और ऐसी शक्तियों का कारक होता है| चन्द्रमा मन का कारक है, जो इन शक्तियों को घटित करने में मदद करता है| गुरु अध्यात्म शक्तियों का कारक होता है|
चूँकि कई बार पूर्वाभास तथा अदृश्य शक्तियों के होने का अहसास अध्यात्म शक्ति के पुष्ट होने पर भी होता है, अत: नवम भाव तथा गुरु से भी यह विचार किया जाना चाहिए| शनि एवं चन्द्रमा की राशियॉं होने के कारण कर्क, मकर एवं कुम्भ तथा शनि के नक्षत्र पुष्य, अनुराधा एवं उत्तराभाद्रपद से भी इन योगों का विचार किया जाना चाहिए|
उपर्युक्त भाव, ग्रह, राशि तथा नक्षत्रों का विशेष योग ही पूर्वाभास तथा अदृश्य मृत आत्माओं के अहसास का कारण बनता है|
ये विशेष योग निम्नलिखित हैं :
1. शनि-चन्द्रमा की युति अष्टम भाव में हो तथा अष्टमेश का सम्बन्ध नवम अथवा पंचम भाव से हो|
2. गुरु नवमेश हो या नवम भाव से सम्बन्ध बनाता हो| राहु या शनि में किसी एक ग्रह का सम्बन्ध गुरु के साथ हो तथा अष्टमेश पंचम से सम्बन्ध बनाता हो|
3. अष्टम भाव अथवा भावेश का सम्बन्ध शनि तथा पंचम और नवम भाव से हो|
4. लग्नेश-पंचमेश तथा नवमेश अष्टम भाव में हों तथा अष्टमेश बली हो|
5. चन्द्र-राहु की युति अष्टम भाव में हो तथा गुरु-शनि का सम्बन्ध भी त्रिकोण भावों से होता हो|
6. पंचमेश-अष्टमेश का भाव परिवर्तन हो तथा चन्द्रमा शनि अथवा राहु से सम्बन्ध बनाता हो|
7. नवमेश-अष्टमेश का राशि परिवर्तन हो तथा लग्नेश का सम्बन्ध शनि से हो|
8. शनि-चन्द्रमा की युति पंचम भाव में हो तथा अष्टमेश का सम्बन्ध किसी भी प्रकार से पंचमेश अथवा लग्नेश से हो|
9. गुरु लग्न में हो, शनि अष्टम भाव में हो, अष्टमेश चन्द्रमा के साथ नवम अथवा पंचम भाव में हो|
10. गुरु, शनि, चन्द्रमा तथा राहु की युति अष्टम भाव में हो|
11. कुम्भ अथवा कर्क राशि अष्टम भाव में स्थित हो तथा शनि-चन्द्रमा की युति त्रिकोण अथवा अष्टम भाव में हो|
12. मकर, कुम्भ अथवा कर्क राशि अष्टम भाव में स्थित हो तथा शनि का सम्बन्ध गुरु, चन्द्रमा एवं त्रिकोण भावों से हो|
13. कर्क लग्न अथवा मिथुन लग्न में शनि-चन्द्रमा की युति हो तथा राहु-गुरु के मध्य भी किसी प्रकार का सम्बन्ध हो|
14. शनि-चन्द्रमा की युति शनि के नक्षत्रों (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा भाद्रपद) में हो तथा गुरु-शनि के मध्य किसी प्रकार का सम्बन्ध हो|
15. पुष्य नक्षत्र अष्टम अथवा नवम भाव मध्य में हो तथा शनि-गुरु एवं चन्द्रमा की युति त्रिकोण भाव में हो|
16. राहु के नक्षत्र अष्टम अथवा नवम भाव मध्य में हों तथा राहु-गुरु की युति भी इन्हीं भावों में बनती हो|
17. राहु, शनि, गुरु तथा चन्द्रमा सभी ग्रह राहु तथा शनि के नक्षत्रों में स्थित हों|
18. राहु-गुरु की युति राहु के नक्षत्रों में तथा शनि-चन्द्रमा की युति शनि के नक्षत्रों में हो|
उपर्युक्त सभी योगों में व्यक्ति पूर्वाभास तथा अदृश्य शक्तियों को महसूस करने वाला होता है| यह स्थिति शनि तथा गुरु के बली होने पर स्थित होती है| इन शक्तियों के गुण अल्प मात्रा में कई व्यक्तियों में पाए जाते हैं, लेकिन इनकी पूर्णता गिने-चुने व्यक्तियों में ही होती है| कई मनुष्यों में यह शक्ति अध्यात्म में प्रवृत्त होने के पश्‍चात् आती है| वे अध्यात्म में आने के कुछ ही दिनों पश्‍चात् दुनियाभर के सभी सुखों को भूलकर अपनी इन्हीं शक्तियों को जाग्रत करने में लग जाते हैं| गुरु कृपा से शीघ्र ही उन्हें ऐसी शक्तियॉं प्राप्त हो जाती है| जब उनकी जन्मपत्रिका के अनुसार शनि आदि ग्रह तथा अष्टमेश आदि ग्रहों की दशाएँ आती हैं, तो इन्हें ऐसी शक्तियों का ज्ञान अधिक रूप से स्पष्ट होने लगता है| जब शनि अथवा इन शक्तियों के कारक ग्रह अष्टम भाव अथवा इससे त्रिकोण भावों में गोचर अथवा विचरण करते हैं| तब भी वह इन शक्तियों को महसूस कर सकता है|
जन्मपत्रिका के समान ही यह लक्षण हस्तरेखाओं में भी देखे जा सकते हैं| हस्तरेखा में भी उपर्युक्त ग्रह ही इसके कारक होते हैं| हस्तरेखा अध्ययन में मस्तिष्क रेखा का इस शक्ति में विशेष महत्त्व है| जब किसी व्यक्ति के हाथ में मस्तिष्क रेखा, गुरु, शनि तथा चन्द्र ग्रह का एक विशेष संयोग बनता है अथवा इन पर कुछ विशेष चिह्न होते हैं, वही इन शक्तियों को दर्शाते हैं| जब यह लक्षण पूर्ण रूप से पुष्ट होकर हाथ में ऩजर आए, वही समय इस शक्ति के भी परिलक्षित होने का समझना चाहिए| ऐसे लक्षण निम्नलिखित हैं :
1. मस्तिष्क रेखा गुरु पर्वत अथवा शनि पर्वत के नीचे से प्रारम्भ होते हुए चन्द्रमा पर्वत के मूल तक आती हो तथा स्वास्थ्य अथवा भाग्य रेखा से मिलकर इस पर त्रिकोण का चिह्न बनता हो|
2. शनि पर्वत के मूल में ‘क्रॉस’ का चिह्न बनता हो तथा मस्तिष्क रेखा पुष्ट हो|
3. गुरु एवं शनि पर्वत पुष्ट हों तथा मस्तिष्क रेखा शनि मूल से प्रारम्भ होती हो|
4. गुरु एवं शनि पर्वत पर ‘चतुर्भुज’ अथवा ‘त्रिभुज’ का चिह्न हो|
5. चन्द्रमा से प्रारम्भ पुष्ट भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा विदीर्ण करते हुए शनि रेखा के साथ त्रिभुज अथवा चतुर्भुज का चिह्न बनाती हो|
6. शनि पर्वत के नीचे क्रॉस का चिह्न हो तथा शनि रेखा मस्तिष्क रेखा को विदीर्ण करती हो|
7. चन्द्रमा पुष्ट होने के साथ ही विस्तृत हो तथा उस पर त्रिभुज अथवा चतुर्भुज का चिह्न हो|
8. सूर्य रेखा पुष्ट होकर मस्तिष्क रेखा से सम्बन्ध बनाए तथा शनि पर्वत पुष्ट हो|
9. राहु पर्वत पर क्रॉस का निशान हो तथा राहु पर्वत से निकलकर कोई रेखा मस्तिष्क रेखा को विदीर्ण करती हो|
उपर्युक्त लक्षणों के अतिरिक्त हस्त में और भी कई लक्षण होते हैं, जिनके फलस्वरूप यह शक्ति मानव में उत्पन्न होती है| इसके लिए उसके हाथ, अंगुलियॉं आदि की स्थिति भी देखनी चाहिए|
इस प्रकार जन्मपत्रिका और हस्त में पाए जाने वाले योग और लक्षणों के आधार पर व्यक्ति के पूर्वाभास और अदृश्य शक्तियों को पहचानने की क्षमता को जाना जा सकता है| इन शक्तियों का अहसास व्यक्ति सदैव महसूस नहीं कर सकता है| किसी निश्‍चित समय में जब इन शक्तियों को दर्शाने वाले कारक ग्रह अथवा हस्त लक्षण जाग्रत होते हैं, तभी व्यक्ति इन शक्तियों को पहचानने लगता है| जब ये लक्षण लुप्त हो जाते हैं और कारक ग्रहों की दशावधि निकल जाती है, तब यह शक्ति नहीं रहती है|•

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