तानाशाही प्रवृत्ति और ज्योतिष

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रामायण एवं महाभारत युग से ही जहॉं एक ओर लोककल्याणकारी राजाओं के उदाहरण मिलते हैं, वहीं तानाशाही प्रवृत्ति वाले क्रूर शासकों के भी उदाहरण मिलते हैं| दशरथ, जनक, राम, युधिष्ठिर जैसे लोककल्याणकारी राजा भारतीय जनमानस में आज भी आदर्श के रूप में माने जाते हैं, वहीं रावण, कंस, जरासंध, हिरण्यकशिपु इत्यादि क्रूर तानाशाही प्रवृत्ति वाले शासक आज भी निन्दा के पात्र समझे जाते हैं| ऐतिहासिक युग में भी रोमन साम्राज्य से लेकर २१वीं शताब्दी में ऐसे अनेक शासक हुए हैं, जिन्हें क्रूर तानाशाह के रूप में जाना जाता रहा है| आखिर ऐसा क्यों होता है कि एक शासक लोककल्याणकारी होता है, तो दूसरा क्रूर तानाशाह? यह भी देखा गया है कि जो शासक तानाशाह बनता है, आरम्भ में उसे आम जनता का हमदर्द माना जाता है और वह जनता की मॉंगों को लेकर सत्ता हासिल करता है और जैसे ही वह सत्ता पर काबिज होता है, वैसे ही वह तानाशाही शासन आरम्भ कर देता है| इस प्रवृत्ति के पीछे व्यक्ति के ग्रहयोग ही होते हैं| ऐसे ग्रहयोगों का अध्ययन करने से पूर्व हम तानाशाह शासक एवं तानाशाही शासन व्यवस्था के लक्षणों का अध्ययन करते हैं, ताकि योग के पीछे के मूल कारणों को समझ सकें|

तानाशाही शासन व्यवस्था

तानाशाही शासन व्यवस्था को अधिनायकवादी व्यवस्था भी कहते हैं| तानाशाही शासन व्यवस्था में भी राजतंत्र की भॉंति सत्ता एक ही व्यक्ति में निहित होती है और शासनकार्य सत्ताधारी व्यक्ति की इच्छा के अनुरूप ही चलता है| राजतंत्र और तानाशाही में प्रमुख अन्तर शासक द्वारा पदग्रहण करने के तरीके एवं शासन के लक्ष्य और उसके तरीके में होता है| राजतंत्र में शासक साधारणतया वंशानुक्रम के आधार पर पदग्रहण करता है, परन्तु तानाशाही व्यवस्था में शासक सैनिक योग्यता या सामर्थ्य, क्रांतिकारी दल के नेता के तौर पर, निर्वाचन के द्वारा अथवा विशेष राजनीतिक समुदाय का नेता या विचारधारा का नेता होने के आधार पर पद प्राप्त करता है| उसका शासन करने का तरीका भी भिन्न होता है| राजतंत्र में मंत्रिमण्डल की सलाह एवं जनमत का प्रभाव होता है, परन्तु अधिनायकतंत्र में शासक की स्वेच्छाचारिता ही प्रमुख होती है| शासन का लक्ष्य भी येन-केन प्रकारेण सत्ता में बने रहना होता है| इसके लिए अधिनायकवादी शासक बड़े स्तर पर हत्याएँ करने से भी पीछे नहीं हटता| वह देशहित के विरुद्ध भी कार्य करता है|
तानाशाही शासन व्यवस्था की परिभाषा करते हुए आर.एच. सोल्टाउ ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि ‘यह एक व्यक्ति का शासन होता है, जो अपने पद को सामान्यतः वंश परम्परा से प्राप्त नहीं करता, वरन् शक्ति या सहमति और सामान्यतः दोनों के सहयोग से प्राप्त करता है| उसके पास पूर्ण सत्ता होनी चाहिए, जिसका प्रयोग वह मनमाने ढंग से करता है|’
तानाशाह या अधिनायक की परिभाषा करते हुए कहा जा सकता है कि ‘एक तानाशाह वह शासक है, जो पूर्ण एवं निरंकुश सत्ता का उपयोग करता है और सामान्यतः उसका शासन लोकहित या देशहित वाला न होकर स्वहितकारी होता है|’

तानाशाही शासन व्यवस्था के लक्षण

तानाशाही शासन व्यवस्था में सर्वाधिकारवादी राज्य या शासन होता है| इस शासन व्यवस्था के अन्तर्गत राज्य, सरकार एवं समाज में कोई अन्तर नहीं होता| शासक की स्थिति सर्वशक्तिमान होती है और आमजन का कोई भी ऐसा पक्ष नहीं होता, जिस पर शासक का नियंत्रण न हो| हिटलर एवं मुसोलिनी के राज्य में यही स्थिति थी| मुसोलिनी कहता था कि ‘सब कुछ राज्य के भीतर है, राज्य के बाहर कुछ भी नहीं और राज्य के विरुद्ध भी कुछ नहीं|’
तानाशाहीराजव्यवस्था प्रजातंत्र का विरोध करने वाली होती है| तानाशाह शासक लोकतंत्र को घृणा की दृष्टि से देखते हैं|
सामान्यतः तानाशाही व्यवस्था में एक दल, एक नेता और एक कार्यक्रम होता है| शासक वर्ग के अलावा दूसरे किसी राजनीतिक दल की अनुमति नहीं होती| अन्य राजनीतिक दलों को प्रतिबन्धित कर दिया जाता है| उस राजनीतिक दल में जो शासक होता है, वह उसका एकमात्र नेता होता है| उसे ही राष्ट्रीय एकता और सम्मान के प्रतीक के रूप में माना जाता है| सभी क्षेत्रों में उसी के पास सम्पूर्ण एवं निरंकुश निर्णायक शक्ति होती है| उसके शब्द ही कानून होते हैं और उसकी इच्छा ही योजनाएँ होती हैं| इस शासन व्यवस्था में शासक दल का अपना एक निश्‍चित कार्यक्रम या विचारधारा होती है| वही कार्यक्रम देश का कार्यक्रम होता है|
तानाशाही शासन व्यवस्था के अन्तर्गत व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का स्थान नहीं होता| मुसोलिनी कहा करता था कि केवल विश्‍वास, आज्ञापालन और युद्ध ही नागरिकों का कर्तव्य है| हिटलर ने भी उसी की भाषा में देश के प्रति कर्तव्य, अनुशासन एवं त्याग को ही नागरिकों के जीवन का मूल मन्त्र बताया था|
तानाशाही व्यवस्था में साहित्य, समाचारपत्र, रेडियो, टेलीविजन, फिल्म इत्यादि जो भी जनमत निर्माण के साधन होते हैं, उन पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण रहता है| सामान्यतः उक्त साधन सरकार के होते हैं और वे तानाशाह एवं उसकी सरकार के पक्ष में प्रचार का कार्य करते हैं|
तानाशाह की सामान्यतः विचारधारा उग्र राष्ट्रवाद की होती है| इसके पीछे मूल कारण जनता को अपने पक्ष में बनाए रखना होता है| वे जनता में राष्ट्र के प्रति भक्ति की भावना को भड़का कर उसे उस सीमा तक पहुँचा देते हैं, जहॉं जनता को लगे कि सच्चा देशभक्त तानाशाह ही है और उसकी आज्ञा का पालन भी देशभक्ति है| कई बार तानाशाह आन्तरिक समस्याओं को दूर करने के लिए अन्तरराष्ट्रीय समस्याओं को बढ़ावा देते हैं और उसके साथ उग्र राष्ट्रवाद का नारा देते हैं|
उग्र राष्ट्रवाद के साथ-साथ तानाशाह सामान्यतः युद्ध एवं औपनिवेशिक विस्तार की नीति अपनाते हैं| हिटलर का कहना था कि ‘पुरुष के जीवन में युद्ध का वही स्थान है, जो स्त्री के जीवन में मातृत्व का है|’ मुसोलिनी भी कहता था कि ‘साम्राज्यवाद जीवन का चिरस्थायी और अक्षुण्ण नियम है| इटली का विस्तार होगा या अन्त|’
तानाशाही शासन व्यवस्था का एक लक्षण यह भी है कि इसमें कानून का शासन नहीं होता| वस्तुतः तानाशाह के शब्द ही कानून एवं संवैधानिक नियम होते हैं| उसके अलावा अन्य कोई कानून या संवैधानिक नियमों की व्यवस्था नहीं होती|

तानाशाही प्रवृत्ति के ज्योतिषीय कारण

तानाशाही के लक्षणों का अध्ययन करने के उपरान्त अब हम इस प्रवृत्ति के ज्योतिषीय कारणों को जानने का प्रयास करते हैं|
जातक की तानाशाही मनोवृत्ति का अध्ययन लग्न-लग्नेश, तृतीय भाव-तृतीयेश, दशम भाव-दशमेश, के साथ-साथ पंचम भाव-पंचमेश और एकादश?भाव-एकादशेश से किया जाता है| लग्न और लग्नेश जातक की नैसर्गिक प्रवृत्ति के लिए उत्तरदायी हैं| लग्न और लग्नेश का सम्बन्ध यदि पापग्रहों, त्रिक भाव या त्रिकेश से हो, तो जातक में तानाशाही की प्रवृत्ति होती है| वह नैसर्गिक रूप से क्रूर, हिंसक एवं तानाशाह होता है| जब भी उसे अवसर मिलता है, वह इस प्रकार की मनोवृत्ति को दर्शाता है (कारण-1)| इस मनोवृत्ति की अभिव्यक्ति तब होती है, जब इसका सम्बन्ध तृतीय भाव एवं तृतीयेश से हो, क्योंकि तृतीय भाव एवं तृतीयेश मनोवृत्ति की बाह्य अभिव्यक्ति को प्रदर्शित करते हैं| वस्तुतः तृतीय भाव-तृतीयेश पराक्रम, धैर्य, साहस आदि से सम्बन्धित हैं| यदि तृतीय भाव-तृतीयेश का सम्बन्ध पापग्रहों, त्रिक भाव या त्रिकेश से हो, तो जातक में धैर्य का अभाव होता है और उसके साहस एवं पराक्रम का प्रदर्शन क्रूर एवं हिंसक तरीके से होता है| (कारण-2)
दशम भाव एवं दशमेश कर्मक्षेत्र का निर्धारण करता है| यदि जातक की मनोवृत्ति एवं उसकी अभिव्यक्ति क्रूर एवं तानाशाही की है और उस पर भी उसका कर्मक्षेत्र पापग्रहों के प्रभाव में हो जाए, तो जातक के कर्म भी क्रूरता एवं तानाशाही से युक्त होते हैं| (कारण-3)
पंचम भाव शिक्षा का है| शिक्षा जातक के नैतिक आचार-विचार का भी निर्धारण करती है| पंचम भाव एवं पंचमेश का सम्बन्ध यदि पापग्रहों, त्रिक भाव या त्रिकेश से हो, तो जातक में तानाशाही प्रवृत्ति को बढ़ावा देने वाली शिक्षा प्राप्त होती है| साथ ही ऐसी शिक्षा प्राप्त होती है, जो सैन्य सेवा या हिसंक प्रवृत्ति से सम्बन्धित हो| (कारण-4)
एकादश भाव एवं एकादशेश जातक की मनोकामनाओं एवं उनकी पूर्ति से सम्बन्धित है| साथ ही वह आय के तरीके को भी दर्शाता है| यदि इनका सम्बन्ध पापग्रह, त्रिकभाव या त्रिकेश से हो, तो उसकी तानाशाही प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है और जातक की मनोकामनाएँ जहॉं अवैधानिक एवं अनैतिक होती हैं, वहीं वे क्रूर एवं हिंसक भी होती हैं| साथ ही उनकी पूर्ति का तरीका भी इसी प्रकार का होता है| इसके अलावा जातक अवैधानिक, अनैतिक, क्रूर एवं हिंसक तरीके से आय का अर्जन भी करता है| (कारण-5)
राशियों का भी जातक की मनोवृत्ति पर विशेष प्रभाव पड़ता है| यदि जातक के अधिकतर ग्रह पुल्लिंग राशि अथवा पुल्लिंग नवांश में हों, तो जातक की प्रवृत्ति उग्र होती है| (कारण-6) इसी प्रकार अधिकतर ग्रह और शुभ भावेश पापग्रहों की राशि या नवांश में हों अथवा शत्रु या नीच राशि में हों, तो भी जातक उग्र प्रवृत्ति का होता है| (कारण-7) यदि जन्मकुण्डली में तानाशाही की मनोवृत्ति जातक की है, तो उक्त कारण से उग्र प्रवृत्ति होने पर जातक क्रूर एवं हिंसक तानाशाह होता है|
लग्न एवं लग्नेश के अलावा सूर्य एवं चन्द्रमा का भी जातक की मनोवृत्ति को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है| सूर्य आत्मा का प्रतीक है| यह प्रथम भाव का नैसर्गिक कारक भी है| इसके अतिरिक्त सूर्य नेतृत्व एवं प्रशासनिक क्षमता का भी कारक है| यदि सूर्य पापग्रहों अथवा अशुभ भावेशों से सम्बन्ध बनाता हो अथवा अशुभ भाव में हो, तो जातक की प्रवृत्ति तानाशाही की हो सकती है| यदि सूर्य पापग्रह की राशि में हो, तो भी उसकी प्रवृत्ति में तानाशाही को बढ़ावा मिलता है| (कारण-8)
चन्द्रमा मन का कारक होता है| यह जातक की मानसिक स्थिति को प्रदर्शित करता है| यदि चन्द्रमा सौम्यग्रह एवं शुभ भावेशों से सम्बन्ध स्थापित करता है, तो जातक की मनोवृत्ति शान्त एवं कल्याणकारी होती है| इसके विपरीत यदि चन्द्रमा का सम्बन्ध पापग्रह या अशुभ भावेशों से हों अथवा वह त्रिक आदि अशुभ भाव में स्थित हो, तो जातक में तानाशाही की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है| (कारण-9) सूर्य एवं चन्द्रमा के नीचराशि में होने अथवा नीचराशिस्थ ग्रह से युत होने पर भी यह स्थिति होती है| यदि पापग्रह या अशुभ भावेशों से सम्बन्ध बनाता हुआ अथवा त्रिक भाव में स्थित सूर्य या चन्द्रमा उच्चराशिस्थ हो, तो भी जातक की मनोवृत्ति में तानाशाही को इजाफा मिलता है| (कारण-10)
पराक्रम एवं साहस का नैसर्गिक कारक मंगल भी जातक की तानाशाही प्रवृत्ति को बढ़ाता है| यदि जन्मकुण्डली में मंगल पापग्रहों या अशुभ भावेशों से सम्बन्ध स्थापित करता हो अथवा त्रिक आदि अशुभ भाव में हो, तो जातक में तानाशाही की प्रवृत्ति आती है| यदि मंगल अशुभ भाव में स्थित होकर उच्च या नीच राशि का हो, तो भी जातक में तानाशाही या हिंसक प्रवृत्ति बढ़ती है| (कारण-11)
जातक में नैतिक एवं न्यायपूर्ण विचारों का जन्म गुरु की बली एवं शुभगत स्थिति से होता है| यदि उसका सम्बन्ध लग्न या लग्नेश के साथ भी हो, तो जातक में नैतिक एवं न्यायपूर्ण विचारधारा का बाहुल्य होता है| इसके विपरीत यदि गुरु पापग्रह या अशुभ भावेशों से सम्बन्ध बनाता हो अथवा अशुभ भावगत हो या शत्रु या नीचराशिगत हो, तो जातक में नैतिक एवं न्यायपूर्ण विचारों में कमी आती है और वह अनैतिक एवं अन्यायपूर्ण विचारों को सत्य मानता है| ऐसी स्थिति होने पर उसमें तानाशाही प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है| (कारण-12)
लग्न-लग्नेश, तृतीय भाव- तृतीयेश और कर्म भाव-कर्मेश में सम्बन्ध बनता हो तथा इनका पापग्रहों और अशुभ भावेशों से सम्बन्ध भी हो, तो जातक यदि राजा हो, तो वह तानाशाही शासक होता है| (कारण-13)
जातक में तानाशाही प्रवृत्ति की तीव्रता उपर्युक्त योगों की अधिकाधिकता पर निर्भर है| यदि जातक की कुण्डली में उपर्युक्त योग बहुत अधिक हैं, तो जातक क्रूर तानाशाह होता है| इसके विपरीत योग कम हैं, तो जातक में तानाशाही प्रवृत्ति अधिक प्रबल नहीं होती|

उपर्युक्त योगों के आधार पर अध्ययन करने पर यदि जातक में अनेक प्रकार से तानाशाही प्रवृत्ति के लक्षण मिलते हैं, तो वह जिस क्षेत्र में होता है, उसी क्षेत्र में तानाशाही का प्रदर्शन करता है| घर-परिवार में वह पत्नी, बच्चे या अन्य परिजनों के साथ तानाशाहीपूर्ण व्यवहार करता है| उसके भय से परिजन त्रस्त रहते हैं| इसी प्रकार वह जिस स्थान पर कार्य करता है, वहॉं भी वह अपनी तानाशाही प्रवृत्ति का प्रदर्शन करता है|

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