जन्म कुण्डली से मित्रता का विचार

Astropsychology

इस संसार में खून के रिश्ते भगवान् बनाता है (जैसे माता-पिता, भाई-बहन, चाचा, मामा, बुआ, मौसी आदि), ये रिश्ते ऐसे होते हैं, जिन्हें हम स्वयं नहीं चुन सकते, इन्हें स्वीकार करना हमारी नियती होती है, लेकिन एक रिश्ता ऐसा भी होता है, जो हम स्वयं बनाते हैं, यह रिश्ता मन से बनाया जाता है, जो हम पर थोपा हुआ नहीं होता है, वह रिश्ता है ‘मित्रता’ का| यह रिश्ता दो व्यक्तियों के मध्य समान विचारधारा, समान रुचियों के कारण बनता है तथा विचार न मिलने अथवा किसी अवांछनीय कारण से टूट भी जाता है| यह रिश्ता कहीं भी, किसी भी समय बन सकता है, इसमें व्यक्ति की आयु या शारीरिक, आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति का भी कोई बन्धन नहीं होता है|
जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त हमारे जीवन में कई मित्र बनते और छूटते हैं| बचपन में पड़ोस में रहने वाले बच्चे, विद्यालय में आने पर समान विचारधारा वाले सहपाठी हमारे मित्र होते हैं, तत्पश्‍चात् नौकरी या व्यवसाय में आने के बाद हम स्वयं अपनी विचारधारा वाले मित्र ढूँढ लिया करते हैं| इस तरह यह सिलसिला बचपन से वृद्धावस्था पर्यन्त अनवरत जारी रहता है|
इस प्रकार जीवन में मित्रता का रिश्ता बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि हम अपने मन की जितनी बात अपने मित्र से कह सकते हैं, उतनी अपने माता-पिता, भाई-बहिन या अन्य रिश्तेदारों से नहीं कह पाते हैं| एक नजदीकी मित्र हमारे मन में उठने वाले हर एक विचार को जानता तथा पहचानता है| वर्तमान समय के इस भागमभाग वाले जीवन में जब घर के सभी सदस्य अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं, तो हमारा अधिकतम समय अपने मित्रों के साथ ही व्यतीत होता है| आज के इस व्यावसायिक युग में माता-पिता अपने बच्चों के लिए इतना अधिक समय नहीं निकाल पाते हैं| बड़े या छोटे-भाई बहन भी अपनी आयु वर्ग के मित्रों के साथ व्यस्त रहते हैं| ऐसी स्थिति में किसी भी जातक का समय अपने मित्रों के ही साथ गुजरना स्वाभाविक है|
महत्त्वपूर्ण होने के साथ ही यह रिश्ता काफी संवेदनशील भी होता है, क्योंकि अच्छे मित्र जहॉं आपका जीवन सँवारते हैं, वहीं बुरे मित्रों की संगति से जीवन बर्बाद भी हो सकता है|
हमें अपने आस-पास के माहौल, समाचार-पत्रों के माध्यम तथा ऐतिहासिक तथ्यों से ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जिनमें एक मित्र ने अपने दूसरे मित्र के लिए अपनी जान तक गँवा दी तथा किसी अन्य मित्र ने अपने निजी स्वार्थ के लिए अपने मित्र की जान तक ले ली|
इतिहास में जहॉं कृष्ण-सुदामा, कर्ण-दुर्योधन की त्यागमय मित्रता प्रसिद्ध रही है, वहीं द्रोणाचार्य-द्रुपद जैसे मित्र भी थे, जो बाद में शत्रु हो गए| आए दिन समाचार-पत्रों में एक मित्र द्वारा दूसरे मित्र की हत्या आदि की खबरें पढ़ने को मिल जाती हैं|
इन बुरे और अच्छे मित्रों की पहचान कैसे हो? यह विचार करना बहुत आवश्यक है| जातक ग्रन्थों में जातक के माता-पिता, पत्नी, संतान, भाई-बहन, शत्रु आदि का विचार तो स्पष्ट है, परंतु मित्र संबंधी फलादेश का वर्णन विस्तृत रूप से उल्लिखित नहीं है, जबकि वर्तमान समय में सबसे महत्त्वपूर्ण रिश्ता ही मित्रता का है, अत: जन्मपत्री में मित्रता सम्बन्धी फलकथन पर अनुसंधान की और अधिक आवश्यकता है|
जन्मपत्री में मुख्य रूप से मित्र का विचार पंचम भाव से किया जाता है तथा एकादश भाव से मित्र की प्रकृति एवं तृतीय भाव से मित्र से होने वाले हानि-लाभ का विचार किया जाता है|
बुध को मित्रता का नैसर्गिक ग्रह माना जाता है| इस प्रकार बुध इन भावों से संबंध बना ले, तो जातक के जीवन में मित्रों की संख्या अधिक होती है| इन भावों तथा बुध के अतिरिक्त जब किन्हीं दो जातकों के राशि स्वामी, लग्न स्वामी, नक्षत्र स्वामी आदि एक ही हो जाएँ अथवा उनमें मित्रता हो, तो उन जातकों के मध्य मित्रता होना स्वाभाविक है|
अत: जन्मपत्री में मित्रता का विचार करने से पूर्व लग्नेश, राशि स्वामी, नक्षत्र स्वामी, पंचम, दशम तथा तृतीय भाव एवं भावेश तथा बुध इन सभी का अध्ययन कर मित्रता से होने वाले लाभ-हानि का पता लगाया जा सकता है| कौन-सा मित्र आपके लिए कैसा रहेगा? आपका करीबी मित्र ही क्या कभी शत्रु बन सकता है? क्या आपको मित्रों से हानि की संभावनाएँ बनती हैं? आदि प्रश्‍नों का उत्तर आप निम्नलिखित योगों से जान सकते हैं|
1. मित्रों का प्रकार जानने से पूर्व जातक के लग्नेश, राशि स्वामी तथा नक्षत्र स्वामी को जान लेना आवश्यक होता है| यह जान लेने से जातक की प्रकृति का ज्ञान हो जाता है| जब ऐसी ही प्रकृति वाला कोई दूसरा जातक उसके सम्पर्क में आता है, तो दोनों के मध्य मित्रता स्वत: ही हो जाती है यथा : कोई तुला लग्न वाला जातक, जिसकी जन्म राशि मकर एवं जन्म नक्षत्र श्रवण है, (यहॉं पर लग्नेश शुक्र, राशीश शनि तथा नक्षत्राधिपति चन्द्रमा हुआ) वह जातक जब शुक्र-शनि के नैसर्गिक मित्र अथवा स्वयं शुक्र-शनि से संबंधित लग्न-राशि-नक्षत्र वाले किसी अन्य जातक से व्यवहार बनाएगा, तो उनके विचारों में समानता स्वत: ही आ जाएगी और वे मित्र बन जाएँगे| इस समानता के लिए लग्नाधिपति, राशीश तथा नक्षत्रों के स्वामी में किन्हीं दो में मित्रता होना या समानता होना जरूरी होता है|
2. जातक की प्रकृति जानने के पश्‍चात् जन्मपत्री में स्थित ग्रह स्थितियों को देखना चाहिए| सबसे पहले पंचम तथा पंचमेश की स्थिति जानना आवश्यक है| पंचम भाव में यदि दो या उससे अधिक पाप ग्रह स्थित हों या उसे देखते हों, तो जातक के जीवन में मित्रों का सुख नहीं होता| ऐसी स्थिति में पंचमेश की स्थिति का ज्ञान भी आवश्यक है| पंचमेश यदि पंचम, नवम, एकादश अथवा तृतीय भाव में स्थित हो और उसको पाप ग्रह नहीं देखते हों और न ही युति करते हों, तो जातक को मित्रों का सुख होता है| जो ग्रह सर्वाधिक रूप से पंचम तथा पंचमेश को पीड़ित करे, उस ग्रह के राशि वाले जातकों से उसे मित्रता नहीं करनी चाहिए|
3. मित्रता की क्रियान्विति एकादश भाव से जाननी चाहिए| एकादश तथा एकादशेश की स्थिति से ज्ञान तो पूर्ववत् ही करना चाहिए, परंतु यहॉं एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि एकादश तथा पंचम भाव के स्वामी यदि युति करते हुए त्रिकोण या केन्द्र भावों में स्थित हो, तो जातक की मित्रता श्रेष्ठ व्यक्तियों से होती है| यदि तृतीयेश की स्थिति शुभ हो, तो उसे मित्रों से लाभ भी होता है|
4. मित्रों से हानि-लाभ या किसी बड़े धोखे का ज्ञान तृतीय तथा तृतीयेश की स्थिति से करना चाहिए| तृतीयेश यदि बली तथा शुभ ग्रहों से युक्त होकर शुभ स्थानों में स्थित हो अथवा तृतीयेश का शुभ संबंध पंचमेश या एकादशेश से हो जाए, तो तत्सम्बन्धी ग्रह की राशि वाले जातकों की मित्रता से उसको अधिक लाभ की प्राप्ति होगी| वह अपने मित्रों के कारण जीवन में उन्नति प्राप्त करेगा| यदि तृतीयेश और पंचमेश अथवा तृतीयेश और एकादशेश की युति भाग्य भाव में हो जाए, तो जातक की भाग्योन्नति मित्रों की सहायता से होती है|
5. बुध एवं मंगल पंचम भाव के विशेष योगकारी ग्रह हैं| यदि किसी जातक की कुण्डली में बुध अथवा मंगल योगकारी अथवा मित्रक्षेत्री होकर पंचम में स्थित हों, तो उस जातक के जीवन में मित्रों की कमी नहीं होती है, अब इन योगों को कुछ उदाहरण जन्मपत्रियों द्वारा समझते हैं|
उदाहरण 1 : पूर्णिमा
जन्म दिनांक : 24 जुलाई, 1978
जन्म समय : 01.12 बजे
जन्म स्थान : पिलानी (राज.)

यह कुण्डली एक ऐसी जातिका की है, जिसकी हत्या उसकी महिला मित्र ने अपने किसी स्वार्थ के लिए करवा दी थी| इस कुण्डली में पंचमेश बुध चतुर्थ भाव में स्थित होकर पाप ग्रह शनि तथा मंगल से पीड़ित हो रहा है| तृतीयेश चन्द्रमा दशम भाव में स्थित होकर शनि, मंगल एवं पापी बुध की दृष्टि से पीड़ित हो रहा है|
भाग्येश-पंचमेश की युति एवं भाग्येश की तृतीयेश पर दृष्टि के कारण पूर्णिमा को पहले अपनी मित्र से कई प्रकार की सहायताएँ भी प्राप्त हुईं, मगर पंचम में स्थित राहु तथा मारकेश बुध एवं मंगल की युति तथा शनि से पीड़ित होना आदि अशुभ स्थितियों के कारण बुध महादशा में शुक्र के अन्तर में राहु का प्रत्यन्तर आने पर पूर्णिमा की हत्या हुई|
उदाहरण 2 : आकाश
जन्म दिनांक : 20 अक्टू., 1983
जन्म समय : 18:20 बजे
जन्म स्थान : जयपुर (राज.)

यह कुण्डली आकाश नामक व्यक्ति की है, जो कुछ समय पूर्व आर्थिक परेशानी से जूझ रहा था| कोई व्यावसायिक डिग्री या डिप्लोमा न होने तथा स्नातक स्तर की शिक्षा में विशेष उपलब्धि न होने के कारण इन्हें कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल पा रही थी| ऐसी स्थिति में आकाश के स्कूल समय के मित्र अनमोल ने सहायता कर एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में आकाश को कार्य दिलवाया, जहॉं वह आज भी कार्यरत है|
आकाश की कुण्डली में पंचमेश, एकादशेश तथा तृतीयेश तीनों ही बली स्थिति में है| पंचमेश सूर्य नीच होकर वर्गोत्तमी, लाभेश शनि उच्च तथा तृतीयेश बुध उच्च है| लाभेश तथा पंचमेश शनि-सूर्य युति करते हुए सप्तम भाव में स्थित हैं| वहीं लग्नेश मंगल सप्तमेश शुक्र से युति करते हुए पंचम भाव में स्थित है| जहॉं पंचमेश तथा लाभेश की युति मित्रता की सफलता को दर्शा रही है, वहीं तृतीयेश बुध के उच्च होने के कारण आकाश को अपने मित्र से लाभ हुआ| आकाश को यह नौकरी केतु महादशा के शनि अंतर में सूर्य का प्रत्यन्तर आने पर प्राप्त हुई| आकाश के सभी मित्रों में उसका सबसे अधिक व्यवहार भी अनमोल से ही है, क्योंकि इन दोनों के लग्नेश, राशीश एवं नक्षत्रेश ग्रहों में भी मित्रता है| इस कारण आकाश को यह लाभ अनमोल से ही हुआ|•