1. यदि जन्म कुण्डली में षष्ठेश षष्ठ भाव में स्थित हो, तो जातक के सम्बन्धी ही उसके शत्रु होते हैं|
2. यदि पंचमेश द्वादश या षष्ठ स्थान में स्थित हो, तो पुत्र जातक का शत्रु होता है|
3. चतुर्थेश और एकादशेश यदि पंचधामैत्री चक्र में लग्नेश से शत्रुता रखते हों, तो जातक की अपनी माता से ही शत्रुता होती है|
4. यदि लग्नेश और सप्तमेश परस्पर शत्रु हों, तो पत्नी से वैचारिक मतभेद रहते हैं|
5. यदि लग्नेश और दशमेश पंचधामैत्री चक्र में परस्पर शत्रु हों, तो या दशमेश लग्न से अथवा लग्नेश से षष्ठ स्थान में स्थित हो, तो जातक के विचार अपने पिता से नहीं मिलते हैं|
6. यदि चतुर्थेश लग्न या लग्नेश से षष्ठ स्थान में हो, तो जातक की माता से वैचारिक भिन्नता होती है|
7. यदि षष्ठेश गुरु आदि शुभ ग्रह हो और जन्म कुण्डली एवं वर्ग कुण्डलियों में से 3 से अधिक स्थानों पर स्व, उच्च या मूल त्रिकोण राशि में हो, तो ऐसे जातक के शत्रु अधिक होते हैं|
8. यदि षष्ठ भाव पर शुभ ग्रहों का प्रभाव अधिक हो और षष्ठेश बली हो, तो जातक के शत्रु अधिक होते हैं|
