श्री श्री रविशंकर आधुनिक भारतीय आध्यात्मिक जगत् के वे सूरज हैं, जिनका आध्यात्मिक प्रकाश 150 से अधिक देशों में त्रस्त मानव के अन्तर्मन के अन्धकार को दूर कर रहा है। साथ ही, उनके द्वारा आर्ट ऑव लिविंग फाउण्डेशन, द इन्टरनेशनल एसोसिएशन फॉर ह्यूमन वेल्यूज आदि संगठनों के माध्यम से प्राकृतिक आपदा, आतंकवाद, पिछड़ापन एवं गरीबी के कारण त्रस्त मानवता के उद्धार के लिए भी कार्य किया जा रहा है।
श्री श्री रविशंकर का जन्म दक्षिण भारत में तमिलनाडु राज्य में ‘पापनाशम्’ नामक स्थान पर 13 मई, 1956 को मेष लग्न एवं धनु नवांश में हुआ था। इनके पिता का नाम वेंकटरत्नम् तथा माता का नाम विशालाक्षी था। श्री श्री रविशंकर का जन्म रविवार एवं शंकराचार्य जयन्ती के दिन होने के कारण इनका नाम रविशंकर रखा गया। बचपन से ही इन पर भारतीय धर्म एवं दर्शन का पूर्ण प्रभाव था। एक तरफ जहॉं श्री श्री रविशंकर ने सेंट जोसेफ कॉलेज से मॉडर्न फिजिक्स विषय से बी.एससी. की शिक्षा प्राप्त की, वहीं महर्षि महेश योगी के अनुगामी भी बने। उनसे वैदिक शिक्षा प्राप्त की और उनके संगठन के लिए कार्य किया।
सन् 1975 में बेंगलुरू में एक सेमीनार का आयोजन हुआ। सभी क्षेत्रों के ख्याति प्राप्त विद्वान् उसमें उपस्थित थे। उसका विषय था, वैदिक ज्ञान एवं विज्ञान। उस समय रविशंकर मात्र 19 वर्ष के थे, लेकिन जब वे मंच पर आकर बोलने लगे, तो सभी दंग रह गए। वहॉं उपस्थित विद्वज्जन उन्हें सुनते ही रह गए। उनकी विज्ञान एवं वेद पर समान पकड़ थी। वे दोनों ही विषयों पर धाराप्रवाह बोल रहे थे। मंच पर बैठे सेमिनार के सूत्रधार जो स्वयं अन्तरराष्ट्रीय स्तर के विद्वान् थे और जिन्हें सैंकड़ों गोष्ठियों का अनुभव था, वे भी रविशंकर से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। उन विद्वान् का नाम था महर्षि महेश योगी। तत्पश्चात् महर्षि महेश योगी ने एक सन्त सम्मेलन करवाया। इसमें स्वागत एवं आतिथ्य की जिम्मेदारी श्री श्री रविशंकर को मिली। रविशंकर के कुशल प्रबंधन एवं नेतृत्व क्षमता से वे अत्यन्त प्रभावित हुए, इसलिए सन् 1980 में उन्होंने नोएडा में विशाल यज्ञ के आयोजन की जिम्मेदारी भी रविशंकर को ही दी। इसका आयोजन भी अत्यधिक सफल रहा। इसी कारण वे रविशंकर को अधिक मानने लगे और उन्हें अपने प्रतिनिधि के तौर पर देश-विदेश में भेजने लगे। शीघ्र ही रविशंकर को कर्नाटक भेजा गया। उन्होंने ‘शिमोगा’ का चुनाव किया। यहॉं आकर श्री श्री रविशंकर ने शिक्षण संस्थान खोले। इन संस्थानों में वेद और विज्ञान दोनों की पढ़ाई एक साथ होती थी। गॉंवों के मठों में ये स्कूल चलाए जा रहे थे। साथ ही श्री श्री रविशंकर प्रवचन देने एवं ध्यान सिखाने का काम भी कर रहे थे। जल्द ही महर्षि महेश योगी ने श्री श्री को बेंगलुरू में वेद विज्ञान विद्यापीठ शुरू करने को कहा। इसके लिए ट्रस्ट भी बना। इस स्कूल में 200 बच्चों का प्रवेश हुआ। कुछ ही समय पश्चात् श्री श्री रविशंकर को संदेश प्राप्त हुआ कि महर्षि दक्षिण भारत से स्कूल को बन्द करके दिल्ली में खोलना चाहते हैं। बच्चों को भी दिल्ली लाने को कहा गया, परन्तु किसी भी बच्चे के माता-पिता बच्चों को दिल्ली भेजने को तैयार नहीं थे। इसी घटना के पश्चात् महर्षि महेश योगी और श्री श्री रविशंकर की राहें पृथक् हुईं और श्री श्री ने स्वयं इन बच्चों की शिक्षा एवं आवास की व्यवस्था करने का निर्णय लिया। यह बात सन् 1982 की है। तब श्री श्री 26 वर्ष के युवा थे। कर्नाटक का शिमोगा जो कई नदियों का उद्गम स्थल है, यहीं तुंगभद्रा नदी के किनारे श्री श्री दस दिनों तक मौनव्रत में रहे। जब मौन की क्रान्ति खत्म हुई, तो सुदर्शन क्रिया अर्थात् ‘आर्ट ऑव लिविंग’ का जन्म हुआ।
जन्मपत्रिका में मंगल दशम भाव में उच्च राशिगत होकर रुचक नामक पंचमहापुरुष योग का निर्माण कर रहा था, वहीं गुरु चतुर्थ भाव में उच्च राशिगत होकर हंस नामक पंचमहापुरुष योग बना रहा था। पंचमेश सूर्य का उच्च राशिगत होकर लग्न भाव में स्थित होना आत्मविश्वास को एवं करोड़ों अनुयायियों को दर्शाता है, वहीं नवमेश एवं द्वादशेश गुरु का चतुर्थ भाव में उच्च राशिगत होना श्रेष्ठ आध्यात्मिक शक्ति, गुरुत्व, बुद्धि और विद्या के योग बनाता है। वाणी भाव का कारक बुध द्वितीय भाव में ही स्थित है और गुरु एवं सूर्य की स्थिति भी बली है। यही कारण है कि श्री श्री रविशंकर की वाणी का ओजस्व तथा उनकी तर्कपूर्ण वाणी से प्रभावित होकर कई बुद्धिजीवियों ने उनका अनुकरण किया। इसीलिए आज वे ऐसे ही व्यक्तियों में अधिक प्रसिद्ध हैं। तृतीय भाव में शुक्र-चन्द्रमा की युति इन्हें स्वभाव से सरल बनाती है, वहीं कर्मेश तथा लाभेश शनि का अष्टम भाव में स्थित होना तथा उस पर नवमेश और व्ययेश गुरु की दृष्टि इनके श्रेष्ठ आध्यात्मिक ज्ञान को दर्शाती है, वहीं अष्टमेश और कर्मेश का राशि परिवर्तन भी इस योग को पुष्ट करता है। ग्रहों की इस श्रेष्ठ स्थिति के कारण ही श्री श्री रविशंकर का यश और कीर्ति भारत ही नहीं वरन् पूरे विश्व में फैली और उनके द्वारा बताए जाने वाली ‘आर्ट ऑव लिविंग’ को विश्व के बुद्धिजीवियों ने सहजता से ग्रहण किया।