भगीरथ पृथ्वी पर लाए गंगा जी को

व्रत-पर्व
Bhagirath brought Ganga ji to Earth

इक्ष्वाकुवंशीय सम्राट् दिलीप के पुत्र थे भगीरथ। महर्षि कपिल की तपस्या में बाधा डाल उन्हें प्रताड़ित करने पर उनकी क्रोधाग्नि से भस्मीभूत हुए अपने पूर्वजों, जो कि सम्राट् सगर के पुत्र थे, के उद्धार के लिए भगीरथ ने गंगा जी को पृथ्वी पर लाने का संकल्प लिया था। उन्होंने राज्यभार मन्त्रियों को सौंपकर गंगा जी को भूतल पर लाने के लिए तपस्या करने निकल पड़े। उन्होंने गोकर्ण नामक स्थान पर जाकर घोर तपस्या की। उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उनसे वर मॉंगने को कहा तो भगीरथ ने कहा कि ऐसा उपाय करें, जिससे मेरे पितरों को दो अंजलि गंगाजल मिल जाए और गंगा जी आकर उन्हें, उनकी राख को सींच दें। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि हिमालय की ज्येष्ठ पुत्री गंगा का प्रबल वेग धारण करने के लिए शिव जी की तपस्या करो, तभी गंगा पृथ्वी पर आ सकती है।
ब्रह्मा जी के कहे अनुसार भगीरथ ने एक वर्ष तक पैर के एक अँगूठे पर खड़े रहकर शिव जी की आराधना की, जिस पर प्रसन्न होकर शिव जी ने गंगा के वेग को धारण करना स्वीकार कर लिया। तब गंगा जी प्रचण्ड वेग से शिव जी के सिर पर गिरने लगी। गंगा का मंतव्य शिव जी को अपने वेग से रसातल में ले जाने का था, जिसे भॉंप शिव जी ने उन्हें अपनी जटा में बॉंध दिया। गंगा जी एक वर्ष तक चेष्टा की परन्तु वे बाहर नहीं आ सकीं। ऐसे में जब सम्राट् भगीरथ ने बहुत मिन्नतें कीं, तब देवाधिदेव ने गंगा जी को बिन्दुसरोवर की ओर छोड़ा। इसी से गंगा जी की सात धाराएँ (मतान्तर से चार धाराएँ) हो गईं। उनमें से एक भगीरथ का अनुगमन करने लगी। भगीरथ आगे-आगे रथ पर चलते हुए गंगासागर के समीप पहुँचे, जहॉं कपिल मुनि की तीव्र दृष्टि से भगीरथ के पूर्वज भस्म हुए थे। वहॉं पहुँच गंगा जी ने भस्मराशि को अपनी धारा से प्लावित कर दिया, जिससे भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार हो गया।
श्रीमद्भागवत में वर्णन मिलता है कि पृथ्वी पर अवतीर्ण होने से पूर्व गंगा जी ने भगीरथ से पूछा था कि जब भूतल के प्राणी मेरे अन्दर स्नान करके अपने पापों को धोएँगे, तो उनके पाप मुझमें प्रवेश कर जाएँगे, उनसे मेरा छुटकारा कैसे होगा?
इस पर भगीरथ ने कहा कि जिनकी विषयवासना निर्मूल हो गई है तथा जो शान्त, ब्रह्मनिष्ठ एवं संसार को पावन करने वाले हैं, ऐसे महापुरुष जब आपमें स्नान करेंगे, तब उनके अंग स्पर्श से आपके भीतर प्रविष्ट हुए सारे पातक नष्ट हो जाएँगे, क्योंकि सभी पापों का नाश करने वाले श्रीहरि उनके हृदय में सदा विराजमान रहते हैं।
देवीभागवत में गंगा जी को भूतल पर लाने के लिए भगीरथ द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की आराधना करने का वर्णन मिलता है। बृहन्नारदीय के अनुसार भृगुमुनि के उपदेश पर भगीरथ ने हिमालय पर जाकर भगवान् श्रीनारायण की आराधना की थी तथा उन्हीं के प्रसाद और वरदान से गंगा जी भूतल पर आयीं।•

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