जन्मकालिक धनु राशिस्थ गुरु और गोचर में धनु का गुरु

Jupiter Transit

जन्मकालिक गुरु के ऊपर से गुरु का गोचर जीवन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तनकारी सिद्ध होता है। यह परिवर्तन अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी हो सकता है। अच्छा होने पर जातक को फर्श से अर्श तक पहुँचा देता है, वहीं दूसरी ओर बुरा होने पर अर्श से फर्श तक ला गिरा देता है। इसलिए ऐसे जातक जिनकी जन्मपत्रिका में गुरु धनु राशि का है, तो उनके लिए गुरु का धनु राशि में प्रवेश और गोचर अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है, इसे नकारा नहीं जा सकता। जीवन में यह विशेष परिवर्तन देगा ही। धनु राशि में गुरु का यह गोचर किन क्षेत्रों में और कैसे फल देगा, यह बहुत कुछ जन्मपत्रिका में गुरु की भावेश स्थिति पर निर्भर करता है। आइए, विभिन्न लग्नों में धनु राशिस्थ गुरु होने पर आगामी गुरु का गोचर किस प्रकार फलदायक रहेगा, देखते हैं।

मेष लग्न

मेष लग्न में नवमेश-द्वादशेश गुरु नवम भाव में स्थित होकर लग्न एवं पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि रख शुभफलदायक होता है। इसके ऊपर से गुरु का गोचर सामान्यत: शुभफल ही देता है। धनु राशि का यह गोचर सन्तति एवं परिजनों की उपलब्धि के माध्यम से जीवन में सफलताकारक होता है। घर में बहुप्रतीक्षित मांगलिक कार्यक्रम सम्पन्न होते हैं। सन्तति यदि विवाहयोग्य हैं, तो उनके विवाह सम्पन्न होते हैं। पिता यदि नौकरी में हैं, तो उन्हें पदोन्नति अथवा किसी महत्त्वपूर्ण पद पर नियुक्ति के कारण जातक के जीवन का स्तर ऊँचा उठता है। यदि पिता व्यवसाय में हैं, तो इस गोचरावधि में व्यवसाय विस्तार अथवा व्यवसाय से सम्बन्धित शुभफलों की प्राप्ति होती है। जातक को शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि अर्जित होती है। कॅरिअर में भी शुभ समाचारों की प्राप्ति होती है। कुलमिलाकर यह गोचरावधि शुभफलदायक रहनी चाहिए।

वृषभ लग्न

वृषभ लग्न में गुरु अष्टमेश-एकादशेश होकर अष्टम भाव में धनु राशि में स्थित होने पर उसके ऊपर से गुरु का गोचर सामान्यत: अशुभफलदायक होता है। इस गोचरावधि में स्वास्थ्य सम्बन्धी मामलों में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। खान-पान पर ध्यान रखें और डॉक्टरी परामर्श के अनुसार दिनचर्या रखें। व्यवसाय एवं नौकरी में भी अपने दायित्वों का विधि एवं कानून सम्मत पालन करना आवश्यक है। जोखिमपूर्ण धननिवेश से दूरी बनाएँ रखें तथा किसी व्यक्ति को उधार आदि देने से भी बचना चाहिए। भुगतान अटकने अथवा उधार फँसने से आर्थिक स्थिति प्रभावित हो सकती है। यह गोचरावधि आय में कमी एवं खर्चों में वृद्धि के लिए जानी जाती है। इसलिए इस सम्बन्ध में सावधानी रखें। यह गोचरावधि विदेश से सम्बन्धित मामलों में अनुकूल फलदायक होती है। यदि आप विदेश जाना चाहते हैं, विदेशी कम्पनियों से व्यापारिक तालमेल बिठाना चाहते हैं, तो इस गोचरावधि में लाभ मिल सकता है। इसी प्रकार खान-खनिज एवं गैर परम्परागत व्यवसायों से लाभ की भी उम्मीद की जा सकती है। इन क्षेत्रों में सफलता मिलती है। इसके अतिरिक्त चिकित्सकीय पेशे, अनुसन्धान से सम्बन्धित कार्यों, भाषा, ज्योतिष, तन्त्र-मन्त्र आदि के क्षेत्रों में भी इस गोचरावधि में अभूतपूर्व सफलता मिलने की उम्मीद की जा सकती है।

मिथुन लग्न

मिथुन लग्न में गुरु सप्तमेश-दशमेश होकर सप्तम भाव में धनु राशि में स्थित होने पर उसके ऊपर गुरु का गोचर होने से सामान्यत: मिश्रित फलों की प्राप्ति होती है। विवाहयोग्य व्यक्तियों के विवाह सम्पन्न होते हैं, परन्तु दाम्पत्य सुख की दृष्टि से यह गोचरावधि अच्छी नहीं होती। जीवनसाथी यदि बीमार है, तो उसके स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह गोचरावधि सामान्यत: अच्छी नहीं होती। पारिवारिक शान्ति की दृष्टि से भी यह गोचरावधि सामान्यत: शुभ नहीं मानी जाती। परिजनों से मतभेद उत्पन्न हो सकते हैं और अलग रहने की परिस्थितियॉं भी बन सकती हैं। कार्यालय में कार्याधिक्य रहता है और उच्चाधिकारियों से सामंजस्य स्थापित करने में कठिनाई का अनुभव होता है। इस गोचरावधि में प्रतियोगिता परीक्षार्थियों को अधिक मेहनत करने की आवश्यकता रहेगी। यदि दशाएँ अशुभ हैं, तो स्वयं के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है।

कर्क लग्न

कर्क लग्न में गुरु षष्ठेश-नवमेश होकर षष्ठ भाव में धनु राशि में स्थित होने पर उसके ऊपर से गुरु का गोचर सामान्यत: शुभफलदायक नहीं होता। अनावश्यक वाद-विवाद बढ़ने की आशंका है, जिसके कारण मुकदमेबाजी भी सम्भव है। दूसरों से व्यवहार करते समय सावधानी रखने की आवश्यकता है तथा झगड़े, वाद-विवाद आदि से बचना चाहिए। मुकदमेबाजी एवं वाद-विवाद लम्बे समय तक चलने की आशंका रहती है। स्वास्थ्य सम्बन्धी मामले भी परेशान कर सकते हैं। दाम्पत्य सुख की दृष्टि से भी यह गोचरावधि समस्या उत्पन्न करने वाली बन सकती है। विशेषरूप से उन दम्पतियों के लिए जिनके मध्य सब कुछ अच्छा नहीं है। उनके लिए यह ज्यादा तनावपूर्ण रह सकती है। व्यवसाय एवं आर्थिक स्थिति की दृष्टि से भी यह गोचरावधि परेशानी उत्पन्न करती है। सामान्यत: उन व्यक्तियों के लिए जो व्यवसाय में हैं अथवा क्रेडिट कार्ड या लोन आदि पर अधिक आश्रित हैं। ॠणभार बढ़ने की आशंका रहेगी। भाग्य का अपेक्षित सहयोग न मिलने के कारण कार्यों में बाधाएँ आती हैं। कार्य अन्तिम समय पर आकर अटक जाते हैं।

सिंह लग्न

सिंह लग्न में गुरु कारक होता है वह पंचमेश-अष्टमेश होकर पंचम भाव में स्वाशिस्थ होने पर शुभफलदायक होता है। उसके ऊपर गुरु का गोचर सामान्यत: शुभफल देने वाला सिद्ध होता है। यहॉं स्थित गुरु का लग्न, एकादश एवं नवम भाव पर दृष्टि प्रभाव होने के कारण जातक को प्राय: सभी क्षेत्रों में गोचरफल शुभफलदायक होता है। इस गोचरावधि में जातक को उन्नति के अधिक अवसर मिलते हैं और उन अवसरों से यदि लाभ उठा लिया जाए, तो जातक के जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन आ जाता है। जो व्यक्ति राजनीति या व्यवसाय में हैं, उनके लिए यह गोचर विशेष उन्नतिकारक सिद्ध होता देखा गया है। जातक का स्तर ही बदल जाता है। आर्थिक स्थिति से लेकर मान-सम्मान इत्यादि सभी में उसे विशेष फल प्राप्त होते हैं। यदि आप प्रतियोगिता परीक्षार्थी हैं और दशाएँ इस दौरान अच्छी चल रही हैं, तो इस गोचरावधि में प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता की सम्भावना अधिक होती है। शिक्षा एवं कॅरिअर दोनों ही दृष्टियों से यह गोचरावधि स्मरणीय रहती है। विवाहयोग्य व्यक्तियों के विवाह सम्पन्न होते हैं, वहीं सन्तानाकांक्षी व्यक्तियों की अभिलाषा पूर्ण होती है।

कन्या लग्न

कन्या लग्न में गुरु चतुर्थेश-सप्तमेश होकर चतुर्थ भाव में धनु राशि में स्थित होने पर उसके ऊपर से गुरु का गोचर सामान्यत: मिश्रित फलदायक होता है। कुछ क्षेत्रों में शुभफलदायक, तो कुछ क्षेत्रों में अशुभफलदायक होता है। सामान्यत: यह निवास स्थान में परिवर्तन करवाता है। माता-पिता से पृथक् होकर निवास की परिस्थितियॉं बनती हैं। साथ ही साथ यह कॅरिअर में उन्नति के अवसर भी प्रदान करता है। एक ओर जहॉं यह वर्तमान कॅरिअर में शून्य की स्थिति उत्पन्न कर देता है, तो साथ ही साथ उन्नति के अवसर भी प्रदान करता है, जिनमें प्राय: व्यक्ति सफल होता देखा गया है। कॅरिअर की दृष्टि से भी उतार-चढ़ाव इस दौरान अधिक आते हैं। साथ ही साथ नए अवसर भी पर्याप्त मिलते हैं, परन्तु एक बारगी ऐसा प्रतीत होता है कि सब कुछ समाप्त हो गया। यदि दशाएँ अनुकूल चल रही हों, तो इस प्रकार के फलों में कमी आती है।

तुला लग्न

तुला लग्न में गुरु तृतीयेश-षष्ठेश होकर तृतीय भाव में स्वराशि का होने पर उसके ऊपर से गुरु का गोचर सामान्यत: शुभफलदायक नहीं होता। ये गोचरावधि जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव लेकर आती है, जिसका आगामी वर्षों में भी प्रभाव पड़ता है। इस गोचरावधि में सावधानी रखने की आवश्यकता है। जोखिमपूर्ण धननिवेश से बचना चाहिए। खर्चे आदि पर अंकुश लगाना चाहिए। दूसरों पर अधिक विश्‍वास न करें। व्यवहार एवं वाणी पर नियन्त्रण रखना चाहिए। नियमों एवं कानूनों का पालन करना चाहिए तथा स्वास्थ्य आदि के प्रति भी सावधानी बरतनी चाहिए। किसी परिजन आदि को लेकर चिन्ता रह सकती है।

वृश्‍चिक लग्न

वृश्‍चिक लग्न में गुरु द्वितीयेश एवं पंमचेश होकर कारक होता है और द्वितीय भावस्थ धनु राशि के ऊपर से गुरु का गोचर सामान्यत: जीवन में उपलब्धिदायक ही होता है। पूर्व में किए गए धन निवेश से बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं। पदोन्नति आदि के अवसर आते हैं। कॅरिअर में बेहतर अवसर मिलते हैं, जिनके कारण अच्छी उन्नति एवं सफलता सम्भव हो पाती है। इस गोचरावधि में ऐसे शुभ परिणामों एवं अवसरों की प्राप्ति होगी, जिसके प्रतिफल आगामी वर्षों तक मिलते रहेंगे। विवाहयोग्य व्यक्तियों के विवाह सम्पन्न होंगे, वहीं सन्तानाभिलाषी दम्पतियों की भी मनोकामना पूर्ण होगी। प्राय: सभी क्षेत्रों में अनुकूल परिणाम प्राप्त होते हैं।

धनु लग्न

धनु लग्न में गुरु लग्नेश-चतुर्थेश होकर लग्नस्थ होता है, तो उसके ऊपर से गुरु का गोचर सामान्यत: मिश्रित फलदायक रहता है। कॅरिअर एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी मामलों में आकस्मिक रूप से फलों की प्राप्ति होती है, वहीं पारिवारिक मामलों में सामान्यत: शुभफलों की प्राप्ति होती है। यहॉं स्थित गुरु के गोचर के फलस्वरूप कॅरिअर में उतार-चढ़ाव की आशंका रहती है। इस दृष्टि से सामान्यत: विपरीत फल प्राप्त होते हैं। ट्रांसफर आदि से ऐसे पद की प्राप्ति सम्भव है, जो कि अनपेक्षित हो। इसी प्रकार के फल प्राईवेट नौकरी में भी सम्भव है। स्वास्थ्य का ध्यान रखने की आवश्यकता है। धर्म, ज्योतिष, तन्त्र, साधु-संगति इत्यादि में अधिक समय व्यतीत होता है। इस गोचरावधि के आगामी वर्षों पर प्रभाव पड़ता है।

मकर लग्न

मकर लग्न में गुरु तृतीयेश एवं द्वादशेश होकर अकारक होता है। धनु राशि में वह द्वादश भाव में स्थित होकर सामान्यत: अशुभफलदायक होता है, उसके ऊपर से गुरु का गोचर स्वास्थ्य, कॅरिअर एवं माता-पिता के सुख से सम्बन्धित मामलों में अशुभफलदायक होता है। स्वास्थ्य सम्बन्धी आकस्मिक समस्या परेशान कर सकती है अथवा नौकरी में ट्रांसफर या अन्य प्रकार की समस्या से अत्यधिक परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। माता-पिता के स्वास्थ्य आदि को लेकर चिन्ता हो सकती है। इन दिनों कार्यों में बाधाएँ एवं अन्य समस्याएँ व्यक्ति को चिन्तातुर बना सकती हैं।

कुम्भ लग्न

कुम्भ लग्न में गुरु द्वितीयेश एवं आयेश होकर धनु राशि में एकादश भाव में स्थित हो, तो गुरु का धनु राशि में गोचर सामान्यत: शुभफल एवं सफलतादायक होता है। यहॉं स्थित गुरु के गोचर के फलस्वरूप उन्नति के अवसर आएँगे और उन उन्नति के अवसरों से उपलब्धियॉं एवं सफलताएँ प्राप्त होंगी, जिससे जीवनस्तर में सुधार होगा। आर्थिक स्थिति में सुधार होने की सम्भावना है, वहीं पदोन्नति एवं नौकरी के बेहतर अवसरों के कारण हर्ष का अनुभव होगा। यह गोचरावधि सामान्यत: प्रत्येक क्षेत्र में अवसर एवं शुभफल प्रदान करने वाली है। पारिवारिक सुख की प्राप्ति से घर में प्रसन्नता का माहौल रहेगा। परिजनों को भी बेहतर उपलब्धि प्राप्त होने की सम्भावना है। पूर्व में किए गए धन-निवेश से लाभ होगा तथा प्रतियोगिता परीक्षार्थियों को सफलता प्राप्ति की सम्भावना रहेगी। जो लोग राजनीति में उनके लिए भी यह गोचरावधि उपलब्धिकारक होनी चाहिए।

मीन लग्न

मीन लग्न में गुरु लग्नेश एवं दशमेश होकर धनु राशि में दशम भाव में स्थित हो, तो धनु राशि के गुरु का गोचर सामान्यत: मिश्रित फलप्रद रहना चाहिए। हॉं, यह अवश्य है कि पारिवारिक सुख अथवा कॅरिअर में से किसी एक में अशुभफलों की प्राप्ति भी सम्भव है। किसी शुभ या उत्पादक कार्य के लिए ॠण आदि लेने की परिस्थितियॉं बन सकती हैं। निवास स्थान में भी परिवर्तन सम्भव है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जन्मपत्रिका में धनु राशि में स्थित गुरु पर से गुरु का यह गोचर जीवन में विशेष परिवर्तनकारी सिद्ध होना चाहिए। यदि दशाएँ गुरु के गोचर के अनुरूप हों, तो उस स्थिति में ये फल अधिक मात्रा में प्राप्त होते हैं। यदि गुरु का गोचर शुभफलदायक है और दशाएँ भी सफलताप्रद हैं, तो बेहतर अवसर एवं उपलब्धियॉं अर्जित होंगी। दूसरी ओर दशाएँ अशुभफलप्रद हैं, साथ गुरु का गोचर भी अशुभफलप्रद है, तो अशुभ परिणामों की तीव्रता अधिक रहेगी, जिनके फलस्वरूप आगामी वर्ष भी प्रभावित होंगे। दशाओं एवं योगों के आधार पर उक्त फलों में कमी या वृद्धि होती है।

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