गुरु के अशुभ योगों में गुरु- चाण्डालयोग की गणना प्रमुखता से होती है। राहु के साथ गुरु की युति गुरु-चाण्डाल योग कहलाती है। यह युति अंशात्मक रूप से जितनी समीप होती है, उतना ही गुरु दूषित होकर अशुभफलदायक हो जाता है। सामान्यत: गुरु-चाण्डाल योग लग्न, तृतीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव में तुलनात्मक रूप से अधिक अशुभ फलदायक होता है। एकादश भाव में गुरुचाण्डाल योग अपेक्षाकृत कम अशुभफलदायक होता है।
गुरु-चाण्डालयोग के फलस्वरूप गुरु के शुभफलों में कमी आती है, वहीं दूसरी ओर जातक में स्वभाव, परिजनों के साथ सम्बन्ध तथा कॅरिअर से सम्बन्धित मामलों में अशुभफलों की प्राप्ति होती है। जहॉं तक स्वभाव का प्रश्न है, तो गुरु-चाण्डाल योग के फलस्वरूप जातक में धैर्य की कमी, शीघ्र क्रुद्ध होने वाला, बड़ों का सम्मान न करने वाला, संस्कार की कमी वाला तथा धार्मिक आस्था एवं विश्वास का अभाव जैसे फलों की प्राप्ति होती है। पिता, बड़े भाई एवं जीवनसाथी से सम्बन्धों में जातक संवेदनशील होता है और प्राय: छोटी-छोटी बातों को बड़ा बनाकर उनसे सम्बन्ध खराब कर लेता है। सामान्यत: दाम्पत्य सुख एवं पारिवारिक सुख में कमी का अनुभव होता है। कॅरिअर का जहॉं तक प्रश्न है, तो इस सम्बन्ध में यह उक्ति मशहूर है कि चाण्डालयोग जातक को जीवन में कम से कम एक बार अर्श से फर्श पर लाकर ही छोड़ता है अर्थात् कॅरिअर में उतार-चढ़ाव अधिक आते हैं। ऐसे जातक निलम्बन अथवा अन्य शास्तियों के कारण नौकरी से हाथ धो बैठते हैं।
गुरु-चाण्डाल योग के फल दशा एवं गोचर के आधार पर परिवर्तित होते हैं। 05 नवम्बर, 2019 को गुरु धनु राशि में प्रवेश कर रहे हैं। आइए, देखते हैं, गुरु के इस राशि परिवर्तन से गुरु-चाण्डाल योग वाले व्यक्ति किस प्रकार प्रभावित होते हैं।
1. यदि आपकी जन्मपत्रिका में गुरु-चाण्डाल योग लग्न, तृतीय, षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में धनु राशि में ही बन रहा हो, तो गुरु का धनु राशि में गोचर आपके लिए परेशानीदायक हो सकता है। स्वास्थ्य एवं कॅरिअर दोनों क्षेत्रों में अशुभफल प्राप्ति की आशंका रहेगी। इसलिए इन दोनों ही क्षेत्रों में सावधानी रखने की आवश्यकता है। यदि पहले से किसी बीमारी से आप पीड़ित हैं, तो इस दौरान सचेत रहें। कॅरिअर में भी सावधानी रखने की आवश्यकता है, आकस्मिक रूप से विपरीत परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। नियम एवं कानूनों का उल्लंघन न करें तथा अपने दायित्वों का समयानुकूल निर्वाह करें।
2. यदि गुरु-चाण्डालयोग धनु राशि में ही निर्मित हो, परन्तु उक्त से भिन्न भावों में स्थित हो, तो यद्यपि अशुभफलदायक होता है, परन्तु अशुभ फलों की तीव्रता एवं मात्रा बिन्दु 1 में दिए गए फलों की तुलना में कम होती है।
3. यदि जन्मपत्रिका में गुरु-चाण्डालयोग वृषभ, कर्क, तुला अथवा मकर राशि में स्थित हो, तो गुरु का धनु राशि में गोचर चाण्डालयोग में वृद्धिकारक होता है। इसके फलस्वरूप जातक को गुरु के अशुभ फल अधिक मात्रा में प्राप्त होते हैं। यदि उक्त गुरु-चाण्डाल योग जन्मपत्रिका में तृतीय, षष्ठ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में निर्मित हो रहा हो, तो तुलनात्मक रूप से अधिक अशुभफलों की प्राप्ति होगी।
4. यदि जन्मपत्रिका में गुरु-चाण्डालयोग मेष, सिंह अथवा कुम्भ राशि में निर्मित हो रहा हो, तो धनु राशि में गुरु का यह गोचर गुरु- चाण्डालयोग के अशुभफलों में कमीकारक होगा, परन्तु यदि जन्मपत्रिका में गुरु-चाण्डालयोग लग्न, तृतीय, षष्ठ, अष्टम अथवा द्वादश भाव में बन रहा हो, तो गुरु का गोचर अशुभ फलों में बहुत अधिक कमी कर पाने में सक्षम नहीं होगा।
5. यदि जन्मपत्रिका में गुरु चाण्डालयोग मिथुन राशि में बन रहा हो, तो गुरु का धनु राशि में गोचर सामान्यत: अनुकूल फलप्रद होता है। यह गुरु-चाण्डालयोग के अशुभफलों में कमीकारक सिद्ध होता है।
6. यदि गुरु-चाण्डाल योग वृश्चिक राशि में बन रहा है, तो गुरु का धनु राशि में गोचर सामान्यत: राहतकारी सिद्ध होना चाहिए। गुरु-चाण्डालयोग के फलस्वरूप जो अशुभ प्रभाव हो रहे हैं, उनमें यह गोचर कमी करने वाला रहेगा।
7. यदि जन्मपत्रिका में गुरु- चाण्डालयोग कन्या अथवा मीन राशि में बन रहा हो, तो धनु राशि में गुरु का गोचर विशेष परिवर्तनकारी सिद्ध नहीं होगा।