नवम्बर, 2019 में वुहान (चीन) में विषाणु संक्रमण के रूप में आरम्भ हुई कोविड-19 नामक बीमारी देखते-देखते महामारी बनकर चीन से बाहर निकलकर विश्व के 200 से भी अधिक देशों में 21 लाख से अधिक लोगों को संक्रमित करने के साथ-साथ मंदी से जूझ रही वैश्विक अर्थव्यवस्था की कमर तोड़कर मानव जाति के समक्ष महासंकट के रूप में चुनौती पेश कर रही है| विश्व के आधे से भी अधिक देशों में लॉकडाउन है, आपातकालीन व्यवस्थाएँ लागू हैं, सभी प्रकार की गतिविधियॉं बन्द हैं| एक ओर जहॉं तेजी से बढ़ रहे संक्रमण से हजारों लोग प्रतिदिन मारे जा रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर लाखों लोग बेरोजगार हो रहे हैं, व्यवसाय बन्द हो रहे हैं, भुखमरी की परिस्थितियॉं बनती जा रही हैं| विकसित, उन्नत एवं शक्तिशाली देश भी इस संकट के समक्ष हारते प्रतीत हो रहे हैं| अमेरिका में 1 मार्च को जहॉं 75 केस थे, वहीं 17 अप्रैल को यह संख्या 7 लाख से ऊपर हो गई| 37 हजार लोग मारे गए| यूरोप में 10 लाख से भी अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं|
भारत में परिस्थितियॉं यद्यपि अभी तक नियन्त्रण में हैं, परन्तु भविष्य के प्रति लोग आशंकित हैं| 13 हजार से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं और 400 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है| संक्रमण की दर अब बढ़ती जा रही है, जिससे भविष्य के प्रति आशंका अधिक होती है| लॉकडाउन-कर्फ्यू के कारण आर्थिक गतिविधियॉं रुक गई हैं, जिससे इस संकट के दूसरे पक्ष ने भी प्रभावित करना आरम्भ कर दिया है| प्रस्तुत आलेख में इस संकट के ज्योतिषीय कारणों पर प्रकाश डालते हुए प्रभावों पर चर्चा करेंगे और इस संकट की समाप्ति के सम्बन्ध में पूर्वाकलन करने का प्रयास करेंगे|
बृहस्पति और शनि अपनी विशालता एवं धीमी गति के कारण पृथ्वी पर विशेष प्रभाव डालते हैं| यही कारण है कि शनि एवं बृहस्पति का गोचर पृथ्वी-निवासियों को स्थायी रूप से प्रभावित करता है| जब-जब ये ग्रह युति बनाकर धनु एवं मकर राशि में गोचर करते हैं, तो पृथ्वी पर इनका प्रभाव उथल-पुथलकारी होता है| जन-धन की भारी हानि होती है| प्राकृतिक आपदा-युद्ध, महामारी इत्यादि का सामना करना पड़ता है| इस प्रकार की युति 5 नवम्बर, 2019 से 24 जनवरी, 2020 तक धनु राशि में हुई है| 30 मार्च, 2020 से 30 जून तक मकर राशि में शनि-गुरु की युति रहेगी| पुन: 20 नवम्बर, 2020 से 06 अप्रैल, 2021 तक मकर राशि में यह युति रहेगी| धनु एवं मकर राशि में शनि-गुरु की युति लगभग 60 वर्ष के अन्तराल से होती है|
उक्त युति के अशुभ प्रभावों में वृद्धि निम्नलिखित चार कारणों से हुई :
1. कंकण सूर्यग्रहण के समय षड्ग्रही युति :
25 दिसम्बर, 2019 को कंकण सूर्यग्रहण हुआ| उस समय धनु राशि में षड्ग्रही अर्थात् सूर्य, चन्द्रमा, बुध, गुरु, शनि एवं केतु की युति थी| दोनों घटनाएँ पृथक्-पृथक् अशुभ फलदायक होती हैं, वहीं जब दोनों साथ हुईं, तो अत्यधिक अशुभ फलप्रद हो गईं और तब जबकि गुरु-शनि की युति धनु राशि में हो रही थी, फलत: विस्फोटक रूप से बीमारी ‘महामारी’ बनी और ‘वैश्विक संकट’ में बदल गई| कंकण सूर्य ग्रहण का प्रभाव न्यूनतम 6 माह तक रहता है|
2. कालसर्पयोग :
08 फरवरी, 2020 से कालसर्पयोग के कारण इस महामारी का तीव्रता से विस्तार होने लगा|
3. बुध का पारगमन :
सूर्य बिम्ब के ऊपर से बुध का पारगमन वैश्विक अर्थव्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है| 11 नवम्बर, 2019 को हुई इस घटना के फलस्वरूप वैश्विक मंदी की आशंका बढ़ गई| वर्तमान वैश्विक संकट के आर्थिक पक्ष के पीछे प्रमुख रूप से यही घटना है|
4. ग्रह-परिषद् में पापग्रहों को 8 पद :
विक्रम संवत् को उसकी ग्रह-परिषद् संहिता ज्योतिष की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है| यदि ग्रह- परिषद् के राजा और मन्त्रीपद सहित 5 या अधिक पद पापग्रहों को प्राप्त हों, तो उस वर्ष अशुभ परिणामों के लिए वातावरण तैयार हो जाता है और ग्रहों के अशुभ गोचर की प्रतिकूलता में वृद्धि हो जाती है| यही विक्रम संवत् 2076 (06 अप्रैल, 2019 से 24 मार्च, 2020) के सम्बन्ध में हुआ| कुल 10 में से 8 पदों पर पापग्रहों का कब्जा था| राजा शनि, तो मन्त्रीपद उसके शत्रु सूर्य को प्राप्त हुआ| 5 पद शनि के पास थे| ऐसी परिस्थिति में शनि-गुरु की गोचरीय युति, ग्रहण के समय षड्ग्रही युति इत्यादि घटनाओं का विस्फोटक एवं बृहद्स्तर पर अशुभ प्रभाव हुआ|
संकट का स्वरूप क्या रहेगा? यह भी विचारणीय है| दो शब्दों में कहें, तो जन-धनहानि अर्थात् अप्रत्याशित रूप से बड़ी संख्या में लोगों की मौत तथा सम्पत्ति का नाश, धन का व्यय एवं अर्थव्यवस्था में मंदी| यह जनहानि और धनहानि कैसे सम्भव हो सकती है? सबसे प्रमुख है प्राकृतिक आपदा अर्थात् भूकम्प, अतिवृष्टि, अनावृष्टि और महामारी| दूसरा है, युद्ध| दोनों से ही जनहानि और धनहानि होती है| 5 नवम्बर, 2019 को जैसे ही गुरु ने राशि परिवर्तन कर शनि-केतु के साथ युति बनाई, वैसे ही इसके प्रभाव आने लगे| दिसम्बर-जनवरी में जहॉं एक ओर अमेरिका-ईरान के मध्य सीधे टकराव की परिस्थितियॉं बनने लगीं, वहीं चीन में हजारों लोग महामारी से मर रहे थे| अन्य ज्योतिषीय योगों के जैसे-जैसे अशुभ प्रभाव जुड़ते गए, वैसे-वैसे यह संकट विकराल होता गया| इसके आर्थिक प्रभाव भी दृष्टिगोचर होने लगे| विश्व अभूतपूर्व आर्थिक मंदी की दहलीज पर खड़ा है|
यह संकट अनेक ज्योतिषीय योगों के कारण है| अभी हम जनहानि अर्थात् बीमारी के प्रसार का स्वरूप देख रहे हैं, परन्तु इसका आर्थिक पक्ष अधिक प्रभावकारी होगा और उसके दुष्प्रभाव लम्बे समय तक रहेंगे|
जहॉं तक इस संकट की समाप्ति का प्रश्न है, तो 30 जून, 2020 के बाद राहत की उम्मीद की जा सकती है| मई के द्वितीय सप्ताह में शनि एवं गुरु वक्री होंगे, उस दौरान इस संकट में वृद्धि होने की आशंका है| मई माह के बाद राहत मिलनी चाहिए| सही मायनों में राहत 30 जून के बाद मिलने की उम्मीद की जा सकती है, जबकि गुरु पुन: धनु राशि में नहीं आ जाएँ, अर्थात् मकर राशि में शनि-गुरु की युति समाप्त न हो जाए| उस समय ग्रहण का और षड्ग्रही युति का प्रभाव भी 6 माह व्यतीत होने के कारण हटेगा| हॉं, आर्थिक प्रभाव आगे तक चलते रहने की सम्भावना है|
ज्योतिष सागर, मई, 2020 अंक में प्रकाशित