त्वचा रोग : कारण एवं निदान

चिकित्‍सा ज्‍योतिष

विभिन्न शारीरिक रोगों के अन्तर्गत त्वचा रोग सर्वाधिक रूप से पाए जाने वाला रोग है| वर्तमान समय में बढ़ते प्रदूषण के कारण इस रोग के रोगियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है| यही कारण है कि गॉंवों की अपेक्षा शहरों में इस रोग से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या अधिक है| त्वचा रोग अनेक रूपों में होता है| दाद, खुजली, लाल-लाल चकत्ते, सफेद दाग, फुंसियॉं, झाइयॉं आदि त्वचा रोग के ही विभिन्न रूप हैं| पारिभाषिक रूप में यदि कहा जाए, तो ऐसे रोग जिनका सर्वाधिक नकारात्मक प्रभाव त्वचा पर पड़ता हो, वे त्वचा रोग कहलाते हैं| त्वचा सम्बन्धित इन रोगों में कुछ रोग ऐसे होते हैं, जो अल्पकालिक होते हैं जबकि सफेद दाग, एग्जिमा आदि कुछ ऐसे भी रोग होते हैं, जो कि दीर्घकालिक होते हैं| ज्योतिष शास्त्र के प्राचीन ग्रंथों में दर्दुम (दाद) आदि कतिपय रोगों से सम्बन्धित योगों का उल्लेख प्राप्त होता है, लेकिन फिर भी अनेक त्वचा रोग ऐसे भी हैं, जिनका उल्लेख प्राप्त नहीं होता है| प्रस्तुत लेख में सभी त्वचा रोगों के लक्षण, सम्बन्धित ज्योतिषीय योग एवं उपायों का वर्णन किया जा रहा है|
त्वचा रोग के सामान्य लक्षण
सामान्यत: त्वचा रोग के लक्षण प्रारम्भिक स्तर पर दिखाई दे जाते हैं, उस स्तर पर यदि उपचार कर लिया जाए, तो ठीक रहता है अन्यथा उसके दीर्घकालिक रोग का रूप लेने की आशंका रहती है| शरीर में हार्मोन्स के परिवर्तन के कारण भी त्वचा रोग दिखाई देते हैं यथा किशोरावस्था में होने वाली फुंसियॉं, जो कि कुछ समय पश्‍चात् स्वत: ही ठीक हो जाती हैं, लेकिन इसे त्वचा रोग नहीं मानना चाहिए, क्योंकि ये एक सामान्य प्रक्रिया है, जो कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ उस उम्र में होता है| इसके अतिरिक्त जले हुए स्थान पर पड़ने वाले सफेद दाग भी त्वचा रोग की श्रेणी में नहीं आते हैं, क्योंकि इस स्थिति का मुख्य कारण कोई त्वचा रोग नहीं है, अपितु जलना है| ये उदाहरण देने का उद्देश्य यह है कि इस त्वचा रोग का निर्धारण करते समय मुख्य कारण का विचार भी कर लेना चाहिए| इसके अतिरिक्त होने वाले अन्य त्वचा सम्बन्धित रोगों के सामान्य लक्षण निम्नलिखित हैं :
1. त्वचा पर लाल-लाल चकत्ते होना|
2. धूप में निकलने पर त्वचा का रंग लाल हो जाना|
3. ग्रीष्म ॠतु के आरम्भ होते ही फोड़े-फुंसियॉं निकलना आरम्भ हो जाना|
4. झाइयॉं होना या त्वचा पर अनेक जगह काले निशान होना, जिन्हें ग्रामीण क्षेत्र में लहसुन (व्यंजन) होना कहा जाता है|
5. दाद या एग्जिमा|
6. किसी मौसम विशेष में या सदैव खुजली या फुंसियॉं होना|
7. त्वचा पर दर्दरहित छोटे-छोटे दाने होना|
उक्त सभी लक्षणों में से कोई लक्षण सामने आने पर चिकित्सक से उपचार लेना चाहिए और अपनी जन्मपत्रिका ज्योतिषी को दिखाकर इस रोग के कारक ग्रहों का यथाविधि उपचार भी करना चाहिए| सम्बन्धित ग्रह के उपचार से न केवल शीघ्र ही इस रोग से मुक्ति प्राप्त होती है, अपितु भविष्य में इस रोग के होने की आशंका से भी बचा जा सकता है|
त्वचा रोग के कारक ग्रह और भाव
ज्योतिष में त्वचा का कारक बुध ग्रह को माना जाता है| बुध यदि शुभ अवस्था में है, तो व्यक्ति की त्वचा अत्यन्त स्निग्ध होती है एवं त्वचा सम्बन्धी कोई भी बीमारी उसे नहीं होती है, लेकिन यदि बुध पापयुक्त अथवा पापद्रष्ट है और त्रिक भावों में स्थित है, तो उस व्यक्ति की त्वचा कठोर होती है एवं उसे त्वचा सम्बन्धी रोग होने की पूर्ण आशंका रहती है| त्वचा सम्बन्धी रोगों में शनि, राहु आदि पाप ग्रहों की भी अहम भूमिका होती है| त्वचा रोगों के जितने भी योग देखे गए हैं, उनमें शनि, राहु, मंगल या क्षीण चन्द्रमा का स्थान अवश्य होता है|
सम्पूर्ण शरीर पर इसका आवरण होने के कारण जन्मपत्रिका के सभी भाव इस रोग के कारक हो सकते है, लेकिन फिर भी स्वास्थ्य के प्रतीक लग्न भाव एवं रोगों के कारक षष्ठ भाव को इसके लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार माना जा सकता है| द्वादश भाव विभिन्न अंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं, अत: जन्मपत्रिका में बुध पापग्रहों से पीड़ित होकर जिस भी भाव में स्थित होता है, उस भाव से सम्बन्धित अंग की त्वचा रोग से सर्वाधिक प्रभावित होती है या उस स्थान से ही रोग का प्रारम्भ होता है|
शारीरिक सुख के लिए सर्वप्रथम लग्न भाव पर दृष्टिपात किया जाता है| लग्न एवं लग्नेश यदि बली हैं, तो व्यक्ति रोगों से बचा रहता है| ऐसी स्थिति में बुध पाप ग्रहों से पीड़ित हो, तो व्यक्ति को चर्म रोग होता है, लेकिन लग्न और लग्नेश के शुभ स्थिति में होने के कारण शीघ्र दूर भी हो जाता है| षष्ठ भाव रोग का कारक माना जाता है, अत: चर्म रोग होनेे की स्थिति में इसका सम्बन्ध भी बुध और लग्न से किसी न किसी प्रकार से अवश्य होता है|
उक्त ग्रह और भावों के अतिरिक्त पाप ग्रहों की युति और त्रिक भावेशों की युति की भी इस सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है| यथा शनि-चन्द्र की युति सफेद दाग या कुष्ठ रोग में एवं सूर्य-मंगल की युति रक्तदोष से सम्बन्धित चर्मरोगों में विशेष रूप से विचारणीय होती है|
निष्कर्ष यह है कि त्वचा रोग से सम्बन्धित भावों में लग्न और षष्ठ भाव को ही प्रमुखता देनी चाहिए एवं ग्रहों में बुध एवं शनि, राहु, मंगल का मुख्य रूप से विचार करना चाहिए| सूर्य अशुभ होने पर और चन्द्रमा क्षीण एवं पापयुक्त होने पर उत्प्रेरक का कार्य करते हैं|
त्वचा रोगों के प्रकार
ध्यातव्य है कि जिन रोगों का असर सीधा त्वचा पर पड़ता है, वे त्वचा रोगों की श्रेणी में आते हैं| त्वचा से सम्बन्धित ये रोग अनेक प्रकार के होते हैं| मुख्य रूप से खुजली, दाद, एग्जिमा, फुंसियॉं, सफेद या काले दाग, झुर्रियॉं, झाइयॉं, शीतला रोग से उत्पन्न निशान आदि आते हैं| इनमें से खुजली, दाद आदि कतिपय रोग सीधे त्वचा पर होने वाले इन्फेक्शन के कारण होते हैं| इनके अतिरिक्त मकड़ी या अन्य जहरीले कीटों के काटने से होने वाले चर्म रोग, कुछ विशिष्ट पौधों के स्पर्श से होने वाले चर्मरोग, धूल से या धुएँ से होने वाले चर्म रोग भी इसी श्रेणी में आते हैं| इनके अतिरिक्त फोड़े-फॅुुंसी, मुँहासे या गर्म प्रकृति के खाद्य पदार्थों के फलस्वरूप होने वाले त्वचा रोग रक्त विकार के फलस्वरूप होते हैं, क्योंकि ये तभी होते हैं, जबकि दूषित रक्त की मात्रा शरीर में बढ़ गई हो| इस प्रकार के रोगों के सम्बन्ध में विचार करते समय मंगल और सूर्य का विचार विशेष रूप से करना चाहिए एवं पूर्वोक्त इन्फेक्शन के फलस्वरूप होने वाले त्वचा रोगों के सम्बन्ध में राहु और शनि का विचार विशेष रूप से करना चाहिए|
रक्तविकार से सम्बन्धित योग
1. रक्तविकार का प्रमुख कारक मंगल होता है| मंगल के त्रिकेश होकर बुध को पीड़ित करने पर रक्तविकार के कारण त्वचा रोग होते हैं|
2. मंगल यदि नीच अस्तगत या अशुभ भावेश होकर लग्न को पीड़ित करे, तो रक्तविकार को जन्म देता है|
3. शरीर में जलीय अंश का कारक चन्द्रमा को माना गया है, अत: चन्द्रमा के लग्नेश होने या लग्न में स्थित होने की स्थिति में वह मंगल से पीड़ित हो, तो रक्त विकार के कारण त्वचा रोग होता है|
4. लग्न में सूर्य स्थित हो, तो दाद का रोग होता है|
5. जन्मपत्रिका में सप्तम भाव में बुध, सूर्य एवं चन्द्रमा स्थित हों तथा अन्य ग्रह चतुर्थ भाव में स्थित हों, तो दाद का रोग होता है|
6. जन्मपत्रिका में चन्द्रमा किसी पापग्रह के साथ स्थित होकर नवम भाव में स्थित हो, तो जातक को खुजली का रोग होता है|
7. जन्मपत्रिका में चन्द्रमा क्षीण हो एवं राहु के साथ किसी प्रकार से सम्बन्ध बना रहा हो, तो खुजली से सम्बन्धित किसी प्रकार का त्वचा रोग होता है|
8. तृतीय भाव में शनि-मंगल की युति हो और शनि मंगल से अधिक बलवान् हो, तो व्यक्ति को खुजली का रोग होता है|
त्वचा पर छोटी-छोटी फुंसियॉं होने के योग
शरीर पर होने वाली फुंसियॉं तीन प्रकार की होती हैं :
प्रथम, ऐसी जिनमें मवाद या पानी भर जाता है, ये चन्द्रमा के अशुभ प्रभाव से होती हैं|
द्वितीय, फुंसियॉं वे, जो दूषित रक्त के कारण होती हैं| इनका प्रमुख कारण मंगल होता है|
तृतीय प्रकार की फुंसियॉं छोटी-छोटी गॉंठें होती हैं| कई बार ये त्वचा के अन्दर की ओर होती है, लेकिन छूने पर महसूस हो जाती हैं एवं कई स्थितियों में त्वचा पर बाहर की ओर भी ये फुंसियॉं या गॉंठें हो जाती हैं, जो कि सम्पूर्ण शरीर के सौन्दर्य को प्रभावित करती हैं| इस प्रकार की गॉंठों का प्रमुख कारक ग्रह शनि होता है, लेकिन यदि ये दर्दयुक्त भी हैं, तो राहु का प्रभाव भी अवश्य होता है| शास्त्रों में गण्डमाला रोग के नाम से इनकी व्याख्या की गई है| इनसे सम्बन्धित कतिपय योग यहॉं प्रस्तुत हैं :
1. कुम्भ लग्न में षष्ठेश चन्द्र और अष्टमेश बुध की युति यदि द्वादश भाव में बन रही हो, तो जलयुक्त फुंसियॉं त्वचा पर होती हैं|
2. लग्नेश एवं चन्द्रमा एक साथ त्रिक भाव में स्थित हों, तो त्वचा पर छोटी-छोटी फुंसियॉं हो जाती है एवं उनमें पानी भरा रहता है|
3. मंगल एवं लग्नेश की युति त्रिक भाव में हो, तो सम्पूर्ण त्वचा पर लाल रंग की छोटी-छोटी फुंसियॉं या मुँहासे हो जाते हैं|
4. शनि एवं लग्नेश की युति यदि त्रिक भाव में बन रही हो, तो त्वचा पर छोटी-छोटी गॉंठें हो जाती हैं|
5. कारकांश कुण्डली में मकर लग्न हो, तो त्वचा पर गॉंठें हो जाती हैं, लेकिन इस स्थिति में लग्न कुण्डली में बुध का पाप प्रभावित अथवा निर्बल होना आवश्यक है|
कुष्ठ रोग होने के योग
त्वचा रोगों के अन्तर्गत कुष्ठ रोग का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है| प्राचीन समय में माना जाता था कि यह रोग पापकर्मों के फलस्वरूप होता है एवं इस रोग के रोगी को निन्दनीय समझकर घृणा की दृष्टि से देखा जाता था, जबकि वास्तविकता यह है कि यह रोग संक्रमणजन्य रोग है एवं एक रोगी से स्वस्थ व्यक्ति में शीघ्र ही फैल सकता है| कुष्ठ रोग श्‍वेत कुष्ठ, रक्त कुष्ठ, कृष्ण कुष्ठ आदि कई रूपों में देखा जाता है| यह रोग प्रारम्भ में एक व्रण या दाग के रूप में प्रकट होता है, तत्पश्‍चात् फैलता है| ज्योतिष में कुष्ठ रोग का प्रमुख कारक पापग्रहों की युति और चन्द्रमा पर पाप प्रभाव को माना जाता है| यहॉं विभिन्न प्रकार के कुष्ठ रोगों से सम्बन्धित योगों का वर्णन किया जा रहा है :
1. कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्तियों की जन्मपत्रिका में प्राय: चन्द्रमा पर शनि अथवा राहु का पाप प्रभाव होता है|
2. बुध या मंगल लग्नेश होकर चन्द्र, राहु और शनि के साथ किसी भी भाव में स्थित हों, तो व्यक्ति कुष्ठ रोग से पीड़ित होता है|
3. बुध या मंगल लग्नेश होकर चन्द्र, राहु एवं शनि के साथ किसी भी भाव में स्थित हो, तो व्यक्ति कुष्ठ रोग से पीड़ित होता है|
4. यदि कारकांश कुण्डली में चन्द्रमा चतुर्थ भाव में स्थित हो, तो शरीर पर सफेद दाग होता है, लेकिन यदि यहॉं चन्द्रमा, शनि एवं राहु के द्वारा द्रष्ट या युक्त भी हो, तो वह सफेद दाग कुष्ठ रोग में परिवर्तित हो जाता है|
5. कर्क लग्न के अतिरिक्त अन्य कोई लग्न हो और शनि-चन्द्र की युति लग्न में बन रही हो, तो कृष्ण कुष्ठ होता है|
6. मेष और कर्क लग्न के अतिरिक्त अन्य कोई लग्न हो एवं लग्न में मंगल-चन्द्र की युति हो, तो रक्त कैंसर (इश्रेेव उरपलशी) होने की आशंका रहती है|
7. जन्मपत्रिका में षष्ठ भाव में शनि और चन्द्रमा की युति बन रही हो, तो रक्त कैंसर होने की आशंका रहती है|
8. जन्मपत्रिका में चन्द्रमा और बुध तीन से कम रेखाओं पर स्थित होकर त्रिक भाव में युति बनाएँ, तो त्वचा सम्बन्धी दीर्घकालिक विकार होते हैं और यदि शनि की दृष्टि भी उन पर हो, तो वह रोग त्वचा कैंसर में परिवर्तित हो जाता है|
त्वचा रोगों के सम्बन्ध में विशेष
लेख के प्रारम्भ में जैसा हमने बताया था कि त्वचा का कारक ग्रह बुध होता है, अत: त्वचा रोगों से सम्बन्धित उक्त सभी योगों में बुध की स्थिति का विचार अवश्य कर लेना चाहिए| बुध यदि जन्मपत्रिका में बली और शुभ स्थिति में है, तो उक्त योग पूर्ण रूप से घटित नहीं होते हैं, लेकिन यदि बुध की स्थिति शुभ नहीं है, तो उक्त अशुभ योगों का प्रभाव अपेक्षाकृत अधिक पड़ता है| बुध यदि लग्न में स्थित हो अथवा लग्नेश हो, तो त्वचा के साथ-साथ शरीर एवं स्वास्थ्य का भी प्रतिनिधि हो जाता है| ऐसी स्थिति में उस पर पाप प्रभाव होने से त्वचा रोग शीघ्र होते हैं|
त्वचा से सम्बन्धित रोगों का विचार करते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि मंद गति के ग्रह शनि और राहु का अशुभ प्रभाव यदि लग्न या बुध पर हो रहा हो, तो वह रोग दीर्घकालिक हो जाता है| इसके विपरीत यदि सूर्य और चन्द्रमा की स्थिति जन्मपत्रिका में शुभ है अथवा लग्नेश सबल है, तो रोगों से शीघ्र ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है|
त्वचा रोगों से बचने के और रोग निवारण के उपाय
यदि किसी प्रकार के त्वचा रोग से आप पीड़ित हैं, तो निम्नलिखित उपायों के माध्यम से आप उस रोग से राहत प्राप्त कर सकते हैं| यदि रोग होने की आशंका है, तो भी आप इन उपायों के माध्यम से उस रोग से बच सकते हैं|
1. सर्वप्रथम किसी ज्योतिषी से परामर्श कर रोगकारक ग्रह की जानकारी प्राप्त करें, तत्पश्‍चात् उस ग्रह से सम्बन्धित स्तोत्र का पाठ या १०८ नामों का प्रतिदिन जप करें|
2. सभी प्रकार के त्वचा सम्बन्धी रोगों में सूर्य ग्रह की उपासना सर्वाधिक लाभकारी होती है, अत: नित्य प्रति सूर्य को अर्घ्य दें तथा ‘आदित्यहृदयस्तोत्र’ और ‘सूर्य सहस्र नामावली’ का पाठ करें|
3. बुध के निर्बल होने पर प्रतिदिन गणेश जी की उपासना करें एवं बुध के १०८ नामों का प्रतिदिन उच्चारण करें|
4. शनि के रोगकारक होने पर ‘दशरथकृत शनिस्तोत्र’ का प्रतिदिन पाठ करें| ‘शनि माला’ धारण करें और शनिवार को उपवास करें|
5. चन्द्रमा के पाप ग्रहों से पीड़ित होने पर भगवान् शिव का सहस्राभिषेक करवाएँ एवं चॉंदी के चन्द्रमा में मोती लगवाकर गले में धारण करें|
6. सभी प्रकार के त्वचा रोगों में शीघ्र राहत प्राप्त करने के लिए महामृत्युंजय मन्त्र के सवालक्ष जप करवाएँ एवं पीड़ाकारक ग्रह से सम्बन्धित दान भी करें|
7. राहु के पीड़ाकारक होने पर नित्य ‘सरस्वती स्तोत्र’ का पाठ करें एवं राहु के १०८ नामों का पाठ करें|
8. मंगल का पाप प्रभाव लग्न, चन्द्र या बुध पर हो, तो हनूमान्‌जी या भगवान् कार्तिकेय की उपासना करें एवं मंगलवार को व्रत करें|
9. लग्नेश का रत्न धारण करने से भी शीघ्र रोगों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है|
10. कुष्ठ रोग या अन्य कष्टकारी त्वचा रोग होने पर नित्य ‘पारद शिवलिङ्ग’ का दुग्ध से अभिषेक करें एवं निम्नलिखित मन्त्र का जप करें|
ॐ नमो परमात्मने परमब्रह्म मम शरीरं पाहि-पाहि कुरु-कुरु स्वाहा॥
11. दाद या खुजली की बीमारी हो, तो तॉंबे का कड़ा शुभ मुहूर्त में धारण करें| •

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