कर्क लग्न में कॅरियर विचार

कॅरिअर ज्‍योतिष

मिथ्ाुन लग्न से कॅरियर विचार करने के पश्‍चात् कर्क लग्नोत्पन्न जातकों का कॅरियर विचार करते हैं| कर्क लग्न का स्वामी चन्द्रमा होता है| कर्क लग्नेश चन्द्रमा मन का स्वामी होता है तथा यह चंचलता का भी प्रतीक है, अत: चन्द्रमा अश्ाुभ होने पर ऐसे जातकों में किसी भी एक कार्य को लेकर स्थिरता नहीं होती है और न ही विद्याध्ययन में स्थायित्व होता है| कर्क चरकारक राशि है, अत: उपर्युक्त बल की निश्‍चितता प्रकट होती है|
कर्क लग्न में यदि कार्यक्षेत्र के कारक ग्रहों की बात की जाए, तो सर्वप्रथम द्वितीयेश को देखेंगे| कर्क लग्न में द्वितीयेश सूर्य है, जो कि वाणी और विद्या भाव का स्वामी है| सूर्य द्वितीयेश होने पर जातक की वाणी में गंभीरता देता है और यही विद्या प्राप्ति में सहायता प्रदान करता है|
कर्क लग्न में पञ्चमेश मङ्गल है, जो पञ्चमेश होने के साथ ही कर्मेश भी है| चूँकि उसकी प्रिय राशि मेष है, अत: उसके फल कर्म भाव से सम्बन्धित अधिक होंगे, अत: कर्क लग्न में विद्या का विचार करते समय सूर्य-मङ्गल के साथ ही चतुर्थेश श्ाुक्र का भी विचार आवश्यक है| चूँकि श्ाुक्र यहॉं लाभेश भी है, अत: उसके फल भी बँटेंगे, लेकिन श्ाुक्र की प्रिय और मूल त्रिकोण तुला राशि चतुर्थ भाव में होने के कारण श्ाुक्र चतुर्थ भाव का फल अधिक रूप से प्रदान करेगा| इस प्रकार मङ्गल और श्ाुक्र कर्क लग्न में कॅरियर से सम्बन्धित सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण ग्रह हैं, तत्पश्‍चात् सूर्य और चन्द्रमा से विचार करना चाहिए| शेष ग्रहों में केतु, गुरु और शनि की भ्ाूमिका भी विचारणीय है, क्योंकि शनि अष्टम और सप्तम भाव का स्वामी होने के कारण व्यापार और गूढ़ विद्याओं का कारक है| वहीं गुरु-केतु भाग्येश होकर कर्क लग्न में श्ाुभ फल प्रदान कर रहे हैं| गुरु भाग्येश के साथ ही षष्ठेश भी है, अत: गुरु से अधिक यहॉं केतु महत्त्वपूर्ण है|
बुध व्ययेश और तृतीयेश होने के कारण कर्क लग्न का सर्वाधिक रूप से अकारक ग्रह है| इस प्रकार कर्क लग्न से कॅरियर सम्बन्धी योगों का विचार करने से पूर्व निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए|
1. कर्क लग्न का योगकारी ग्रह मङ्गल पञ्चमेश और कर्मेश होने के कारण कॅरियर विचार में सबसे महत्त्वपूर्ण है|
2. श्ाुक्र चतुर्थेश (उच्च शिक्षा) तथा लाभेश होने के कारण कॅरियर विचार में श्ाुभ फलप्रद है, लेकिन केन्द्राधिपत्य दोष के कारण उसके पूर्ण रूप से फल प्राप्त नहीं हो पाते हैं|
3. मङ्गल और श्ाुक्र के फल दो महत्त्वपूर्ण भावों में बँटने के कारण चन्द्र, सूर्य और गुरु का विचार भी आवश्यक हो जाता है|
अत: कर्क लग्न से कॅरियर विचार करते समय मुख्य रूप से मङ्गल, श्ाुक्र, चन्द्रमा, सूर्य और गुरु-केतु का विचार करना चाहिए|
यदि इन ग्रहों में से कोई तीन या उससे अधिक ग्रह लग्न से सम्बन्ध बना लें, तो जातक विद्या में प्रवीण होने के साथ ही शारीरिक सौष्ठव वाला होता है| ऐसे जातकों को अपनी इच्छानुसार कार्यक्षेत्र की प्राप्ति होती है| यदि मङ्गल यहॉं नीच राशिगत होकर स्थित हो, तो भी उसके श्ाुभ फल ही प्राप्त होंगे|
यदि कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह द्वितीय भाव में स्थित हों, तो जातक विज्ञान अथवा तकनीकी विषय में रुचि रखने वाला होता है| वह जिस विषय में शिक्षा प्राप्त करता है, उसी विषय से सम्बन्धित कार्यक्षेत्र में उसे सफलता प्राप्त होती है| यदि मङ्गल बलहीन होकर अश्ाुभ फल दे रहा हो, तो भी जातक का धनार्जन उत्तम ही होता है| ऐसा योग होने पर बस उसे संघर्ष अधिक करना पड़ता है|
कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रहों की युति तृतीय भाव में होने पर प्राय: अश्ाुभ फल ही प्राप्त होंगे| श्ाुक्र यहॉं नीच राशिगत होगा तथा मङ्गल शत्रुगत होगा, अत: ऐसे योग में जातक की शिक्षा अल्प होगी| यदि वह विद्याध्ययन कर भी ले, तो भी उसे विद्या से अर्थ लाभ नहीं होगा| वह आजीविका के लिए परेशान होकर इधर-उधर भटकेगा|
चतुर्थ भाव में इन ग्रहों की युति होने पर जातक की विद्या तो श्रेष्ठ होगी, परन्तु वह व्यवसाय करने में अधिक रुचि रखेगा| इस प्रकार व्यापार द्वारा ही धनार्जन करेगा|
पञ्चम भाव में कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह होने पर जातक कला या विज्ञान में शिक्षा प्राप्त करेगा| यदि अष्टमेश का सम्बन्ध भी यहॉं हो, तो उसे गूढ़ विद्याओं में दिलचस्पी रहेगी| ऐसे योग में जातक अध्यापक, इंजीनियर, डॉक्टर, प्रबन्धक आदि बन सकता है|
षष्ठ स्थान में कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह यदि स्थित हों या सम्बन्ध बनाएँ तथा वे बली भी हों, तो जातक किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हो सकता है| इन्हें अपने कॅरियर में सफलता कड़ी मेहनत के बाद ही प्राप्त होती है| केतु इस भाव में होने पर अपने कार्यक्षेत्र में बुलन्दियों पर पहुँचते हैं|
सप्तम स्थान में यदि ये ग्रह हों, तो जातक की व्यापार में ही रुचि होती है| ऐसे जातक कपड़े से सम्बन्धित, ट्रेवल्स से सम्बन्धित, आभ्ाूषण से सम्बन्धित व्यापार करें, तो इन्हें विशेष रूप से सफलता प्राप्त हो सकती है| शनि बली होने पर ये कोई न कोई व्यापार अवश्य करते हैं|
अष्टम स्थान में यदि कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह स्थित हों या सम्बन्ध बनाएँ, तो ऐसा जातक शीघ्र ही धनार्जन प्रारम्भ करता है| यदि मङ्गल बली है तथा वह भी अष्टम भाव या अष्टमेश से सम्बन्ध बना रहा है, तो जातक विद्या ग्रहण कर विदेश में जाकर अपार धनार्जन करता है| ऐसे जातक वैज्ञानिक, इंजीनियर और शेयर आदि कार्यों से धनार्जन करने वाले होते हैं|
यदि नवम भाव में कार्यक्षेत्र के कारक ग्रह उपस्थित हों और गुरु भी बली हो, तो जातक वाणिज्य विषय में विशेष रूप से सफल हो सकता है| ऐसे जातक व्यापार करने से अच्छा धनार्जन किसी नौकरी के द्वारा ही कर सकते हैं|
यदि दशम भाव से कार्यक्षेत्र के कारक ग्रह सम्बन्ध बनाएँ, तो जातक को दोहरी आय प्राप्त होती है| वह नौकरी भी करता है और व्यापार भी करता है| ऐसा जातक कई तरह के व्यापार करता है| विशेष रूप से ट्रेवल्स, रत्नाभ्ाूषण, कपड़े आदि का व्यापार इन्हें विशेष रास आता है| ऐसे जातकों की राजनीतिक पहुँच भी बहुत अच्छी होती है| ऐसे जातकों में प्रशासनिक क्षमता बहुत ही अच्छी होती है| यही इनकी उन्नति का कारण होता है|
एकादश भाव में कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह होने पर जातकों को अपनी शिक्षा के अनुसार ही उत्तम कार्यक्षेत्र की प्राप्ति होती है| शनि श्रेष्ठ स्थिति में होने पर ऐसे जातक व्यापार भी कर सकते हैं| यदि मङ्गल-श्ाुक्र एकादश भाव में बली स्थिति में हों, तो जातक को कई प्रकार की आय प्राप्त होती है| ऐसा जातक कलाकार या गायक भी हो सकता है| श्ाुक्र की बली स्थिति के कारण उसका कलात्मक पक्ष बहुत अधिक सुदृढ़ होता है| वहीं सूर्य-शनि यदि इस भाव में स्थित हों, तो जातक चिकित्सक हो सकता है|
कर्क लग्न में द्वादश भावान्तर्गत कार्यक्षेत्र के ग्रह उपस्थित हों अथवा सम्बन्ध बनाते हों, तो जातक को कार्यक्षेत्र में कभी भी स्थायी सफलता प्राप्त नहीं होती है| शनि यदि इस भाव में गुरु के साथ स्थित हो जाए, तो जातक घर से दूर रहकर आजीविका प्राप्त करता है| उसे अपनी आय को लेकर संतुष्टि नहीं होती है|
अब विभिन्न ग्रह स्थितियों के आधार पर कर्क लग्न में कार्यक्षेत्र के योगों का विचार करते हैं:
1. कर्क लग्न में पञ्चमेश और लाभेश मङ्गल-श्ाुक्र की दोहरी भ्ाूमिका होती है| मङ्गल यहॉं कर्मेश तथा श्ाुक्र सुखेश है, अत: ऐसे जातक जीवन में अक्सर इन ग्रहों के बली होने पर एक से अधिक कार्यों से आय प्राप्त करता है|
2. यदि मङ्गल-श्ाुक्र बलहीन होकर पीड़ित हों, तो सूर्य, गुरु और केतु का बल देखना चाहिए| अगर ये तीनों ग्रह बली हों और धन, लाभ, चतुर्थ अथवा कर्म भाव से सम्बन्ध बनाएँ, तो जातक का कार्यक्षेत्र सुदृढ़ होता है|
3. कर्क लग्न में बली मङ्गल सूर्य से युति करते हुए यदि द्वितीय, पञ्चम, सप्तम, भाग्य, कर्म अथवा लाभ भाव में स्थित हो, तो जातक डॉक्टर, चिकित्सा विषय में अन्य कार्यक्षेत्र, तकनीकी कार्य में दक्ष, मैनेजमेंट आदि कार्यों में प्रवीण होने के कारण इन्हीं कार्यों को अपने कॅरियर के रूप में चुनता है|
4. मङ्गल यदि चन्द्रमा से युति करते हुए लग्न, द्वितीय, पञ्चम, भाग्य, कर्म अथवा लाभ भाव में स्थित हो, तो जातक की शिक्षा मनोविज्ञान से सम्बन्धित विषय या तकनीकी विषय में होती है तथा ऐसे जातक का कार्यक्षेत्र भी इन्हीं विषयों से सम्बन्धित होता है| लग्न में मङ्गल नीच राशि में होने के बावजूद भी चन्द्रमा के साथ राजयोगकारी है|
5. मङ्गल यदि बुध के साथ तृतीय, चतुर्थ, पञ्चम, अष्टम, नवम अथवा एकादश भाव में स्थित हो, तो जातक को अपनी योग्यता के अनुरूप कार्यक्षेत्र की प्राप्ति नहीं होती है|
6. मङ्गल-गुरु की युति कर्क लग्न में राजयोगकारी है| यह युति सर्वाधिक रूप से लग्न, त्रिकोण भाव, षष्ठ भाव और दशम भाव में श्ाुभ फलप्रद है| ऐसे योग में जातक को अपने कॅरियर में शीघ्र ही सफलता प्राप्त हो जाती है|
7. मङ्गल-श्ाुक्र भी यदि बली होकर द्वितीय, चतुर्थ, पञ्चम, कर्म अथवा लाभ भाव में स्थित हों और कर्क लग्न में तुला राशि का नवांश उदित होता हो अथवा श्ाुक्र का चन्द्रमा से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध हो, तो निश्‍चित रूप से जातक का कॅरियर उत्तम होता है|
8. मङ्गल-शनि यदि बली होकर द्वितीय, चतुर्थ, दशम, कर्म अथवा लाभ भाव में स्थित हों, तो जातक को दोहरी आय प्राप्त होती है| ऐसा जातक बहुत बड़ा उद्योगपति भी बन सकता है| ऐसे जातकों की प्रबन्धन क्षमता बहुत ही अच्छी होती है|
9. सूर्य-चन्द्रमा यदि कर्क लग्न में युति करते हुए लग्न, पञ्चम, चतुर्थ, कर्म अथवा लाभ भाव में उपस्थित हों, तो कार्यक्षेत्र जातक के रुचि के अनुसार ही होता है|
10. उच्च का सूर्य कर्क लग्न में मङ्गल अथवा श्ाुक्र से युति करता हुआ स्थित हो तथा ये ग्रह बिना अस्त हुए बली हों, तो जातक का राजनीतिक कॅरियर उत्तम होने के साथ ही उसे कई संसाधनों द्वारा आय प्राप्त होती है| यही स्थिति यदि द्वितीय, चतुर्थ, पञ्चम अथवा लाभ भाव में प्राप्त होती है| यही स्थिति यदि द्वितीय, चतुर्थ, पञ्चम अथवा लाभ भाव में हो, तो थोड़ा कम फल देने वाली होती है|
11. सूर्य-शनि की अष्टम अथवा द्वितीय भाव में युति शीघ्र आय को दर्शाती है| यदि मङ्गल से इस युति का सम्बन्ध हो जाए, तो जातक धन-प्राप्ति के लिए किसी भी स्तर तक गिर जाता है|
12. सूर्य-गुरु की युति श्ाुभ भावों में होने पर जातक प्रशासनिक सेवाओं में जाने वाला, उत्तम शिक्षा प्राप्त करने वाला और आत्मविश्‍वासी होता है|
13. कर्क लग्न में गजकेसरी योग घटित होता हो तथा उसका सम्बन्ध केतु से भी हो जाए, तो यह स्थिति श्रेष्ठ फल देने वाली होती है| ऐसा जातक अपने कार्यक्षेत्र में शीघ्र ही सफलता को प्राप्त करता है|
14. चन्द्र-श्ाुक्र की युति कर्क लग्न में होने पर गजकेसरी योग के समान ही होती है| ऐसा जातक उत्तम शिक्षा प्राप्त करने के साथ ही व्यापारादि कार्यों में भी धनार्जन करता है|
15. गुरु-केतु नवम भाव में स्थित होने पर जातक का भाग्य उसे कार्यक्षेत्र में प्रत्येक स्थान पर सहायता करता है, अत: इस योग में मङ्गल सुदृढ़ होकर इस ग्रह युति से सम्बन्ध बनाए, तो आय शिक्षा से तथा शनि यदि युति बनाए, तो आय व्यवसाय के द्वारा प्राप्त होती है|
16. श्ाुक्र-शनि की युति कर्क लग्न में मध्यम फलप्रद होती है| यदि श्ाुक्र का लग्न या लग्नेश से सम्बन्ध हो जाए, तो ऐसे जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी व्यापार करते हैं|
17. चन्द्रमा पञ्चम में, मङ्गल कर्म में, गुरु-श्ाुक्र अथवा दोनों में से कोई एक लाभ भाव में हो, तो जातक अपनी शिक्षा उत्तम होने के कारण कार्यक्षेत्र में जीवन की नई ऊँचाइयों को छूता है|
18. कर्क लग्न में कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह मङ्गल, श्ाुक्र, सूर्य, चन्द्रमा अथवा गुरु में से बली होकर कोई तीन ग्रह द्वादश भाव में स्थित हों, तो ऐसे जातकों को कार्यक्षेत्र में सफलता बहुत कठिनाइयों के बाद ही प्राप्त होती है| यही स्थिति तृतीय भाव से सम्बन्ध होने पर होती है|
इस प्रकार कर्क लग्न के कॅरियर से सम्बन्धित सभी योगों का विचार लग्न के साथ नवांश वर्ग में भी कर लेना चाहिए| यदि नवांश और लग्न दोनों में ही कर्क लग्न के कॅरियर सम्बन्धी कारक ग्रह बली हों, तो वह जातक सम्पूर्ण जीवन पर्यन्त श्रेष्ठ आय प्राप्त करता है|
कार्यक्षेत्र में उन्नति का समय जानने के लिए विंशोत्तरी दशाओं का अध्ययन आवश्यक है| कर्क लग्न वाले जातकों को २० से ३५ वर्ष की आयु के मध्य यदि बली मङ्गल, लग्न अथवा लग्नेश से सम्बन्ध बनाते हुए बली श्ाुक्र, बली गुरु-केतु और सूर्य की दशाएँ आ जाए, तो उत्तम फल प्रदान करने वाली होती है|
इन श्ाुभ दशाओं के साथ ही इनका उस समय पर श्रेष्ठ गोचर में होना भी आवश्यक है| यहॉं इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि वे ग्रह श्रेष्ठ गोचर के साथ उस राशि कितनी रेखाओं पर है| इन सभी स्थितियों को परखने के बाद वर्ष कुण्डली पर विचार करना भी आवश्यक है| वर्ष कुण्डली में कर्क लग्न के कॅरियर सम्बन्धित श्ाुभ ग्रह बली होकर लग्न, द्वितीय, पञ्चम, दशम और लाभ भाव से सम्बन्ध बनाएँ, तो निश्‍चित रूप से इन ग्रहों की मुद्दा दशाओं में जातक को श्रेष्ठ फल मिलता है| उपर्युक्त सभी स्थितियों के साथ यदि श्ाुभ योगिनी दशा-अन्तर्दशा भी हो, तो कॅरियर में उच्च सफलता निश्‍चित है|

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