कन्या लग्न में कॅरियर विचार

कॅरिअर ज्‍योतिष

सिंह लग्न के पश्‍चात् अब कन्या लग्न में कार्यक्षेत्र सम्बन्धी योगों का विवेचन करते हैं| कन्या राशि द्विस्वभाव संज्ञक है, जिसका स्वामी बुध होता है| कन्या बुध की उच्च, मूल और स्वराशि तीनों ही होने के कारण कन्या बुध की प्रिय राशि है| बुध यदि कन्या लग्न में अकेला ही स्थित हो, तो राजयोगकारी होता है| कन्या लग्न में द्वितीय भाव में तुला, पंचम भाव में मकर, कर्म भाव में मिथ्ाुन और लाभ भाव में कर्क राशि स्थित होती है|
द्वितीयेश श्ाुक्र कन्या लग्न में भाग्येश भी है, अत: वह स्थायी धन-सम्पत्ति, विद्या, वाणी और कुटुम्ब के अतिरिक्त भाग्य का कारक भी है तथा उसकी प्रिय राशि तुला भाग्य भाव में ही है, अत: कन्या लग्न में श्ाुक्र सफलता का परिचायक है|
पंचमेश शनि षष्ठेश भी है तथा षष्ठ भाव में उसकी मूल त्रिकोण राशि होने से वह अधिकतर फल षष्ठ भाव से सम्बन्धित ही देगा, अत: शनि यहॉं विद्या के अतिरिक्त प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफलता का भी द्योतक है, अत: उसका श्ाुक्र से सम्बन्ध बहुत ही उत्तम होता है|
कन्या लग्न में बुध लग्नेश के साथ कर्मेश भी है| लग्न और दशम भाव का स्वामी होने के कारण बुध कन्या लग्न में राजयोगकारी है|
लाभेश चन्द्रमा होने के कारण चन्द्र बली होने पर कन्या लग्न वाले जातकों को किसी भी कार्य में सफलता शीघ्र ही प्राप्त हो जाती है| इस प्रकार कन्या लग्न में क्रमश: श्ाुक्र, शनि, बुध और चन्द्रमा कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह हैं| गुरु केन्द्राधिपत्य दोष से पीड़ित होने के कारण कन्या लग्न में अश्ाुभ फलकारक ग्रह है, लेकिन यदि वह लग्न भाव से अथवा लग्नेश बुध से सम्बन्ध बनाए, तो उसका केन्द्राधिपत्य दोष अल्प हो जाएगा, अत: गुरु इस स्थिति में चतुर्थ और सप्तम के श्ाुभ फल प्रदान करेगा| इस प्रकार कन्या लग्न से फल कथन करने से पूर्व निम्नलिखित तथ्यों का ध्यान रखें :
1. कन्या लग्न में कॅरियर सम्बन्धी किसी भी उपलब्धि को श्ाुक्र द्वारा दर्शाया जाता है, अत: श्ाुक्र बली होने पर जातक को शीघ्र सफलता प्राप्त होती है|
2. कन्या लग्न में बुध राजयोगकारी ग्रह है तथा गुरु से उसका सम्बन्ध उत्तम फल देने वाला है|
3. कन्या लग्न में गुरु लग्न, सप्तम, भाग्य अथवा बुध से संयोग होने पर ही अपने श्ाुभ फल दे पाता है अथवा वह कन्या-मिथ्ाुन के नवांश में होने पर श्ाुभ फलदायक होता है|
4. चन्द्रमा लाभ भाव का स्वामी होने के कारण कन्या लग्न वाले जातकों को जीवन में शीघ्र ही उन्नति प्राप्त हो जाती है| चन्द्रमा बली होकर श्ाुभ भावों और ग्रहों से संयोग करे, तो यह फल निश्‍चित रूप से प्रात होते हैं|
कार्यक्षेत्र के उपर्युक्त अनुकूल ग्रह यदि लग्न भाव से युति करें अथवा सम्बन्ध बनाएँ, तो जातक को अपने कार्यक्षेत्र में शीघ्र ही सफलता प्राप्त हो जाती है| यदि बुध यहॉं सर्वाधिक रूप से बली होकर सम्बन्ध बनाए, तो जातक वाणिज्य विषय में उच्च सफलता प्राप्त कर किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी में मैनेजर का पद प्राप्त करता है| श्ाुक्र यहॉं नीच का होने के कारण सामान्य फल देने वाला, चन्द्रमा तथा शनि उत्तम फल देने वाले होते हैं| यदि शनि यहॉं गुरु से युति करे, तो जातक व्यापारादि कार्यों से धन प्राप्ति करता है|
द्वितीय भाव में कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह होने पर जातक शीघ्र ही अपनी आय प्रारम्भ कर लेता है| ऐसे जातक की शिक्षा श्रेष्ठ होती है| कन्या लग्न के कार्यक्षेत्र सम्बन्धी सारे ग्रह यहॉं पर श्ाुभ फलदायक होते हैं| बुध बली होकर स्थित होने से जातक कला और वाणिज्य विषय में सफल होता है| चन्द्रमा सम राशिगत और श्ाुक्र स्वराशिगत होता है, अत: चन्द्र-श्ाुक्र की युति होने पर जातक को जीवन में कभी भी धन की कमी महसूस नहीं होती है| वहीं शनि-श्ाुक्र बली होकर स्थित होने से जातक विद्या में सफल होकर उच्च उपाधियॉं प्राप्त करता है| उच्च उपाधियॉं प्राप्त करने के पश्‍चात् वह किसी उत्तम नौकरी को प्राप्त करता है|
कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह तृतीय भाव में होने पर अधिक रूप से श्ाुभ फलदायक नहीं होते हैं| चन्द्रमा यहॉं नीच राशि में, बुध शत्रु गत और श्ाुक्र-शनि भी अधिक श्ाुभ स्थिति में नहीं होंगे, फिर भी इस भाव में श्ाुक्र-शनि का फल ही सर्वाधिक रूप से श्रेष्ठ होगा| ऐसे जातक को अपने कार्यक्षेत्र में बहुत संघर्ष करने के पश्‍चात् ही सफलता प्राप्त होती है|
यदि चतुर्थ भाव में कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह उपस्थित हों, तो जातक व्यापारादि कार्यों के द्वारा धनार्जन करता है| यदि बुध यहॉं बली होकर स्थित हो, तो जातक का रुझान शिक्षा प्राप्ति में अधिक नहीं होता है| वहीं शनि-श्ाुक्र यदि बली होकर चतुर्थ भाव में हों, तो उत्तम विद्याध्ययन को दर्शाते हैं| यदि शनि बलहीन हो, तो व्यवसाय के ही योग बनते हैं| चन्द्रमा यहॉं अधिक रूप से फलीभ्ाूत नहीं होता है|
पंचम भाव में कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह स्थित हों, तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करने के साथ ही उत्तम कार्यक्षेत्र को भी प्राप्त करता है| सभी अनुकूल ग्रहों का फल यहॉं सकारात्मक ही प्राप्त होता है| बुध बली होने पर राजयोगकारी, श्ाुक्र बली होने पर शिक्षा में उच्च सफलता तथा चन्द्रमा बली होने पर कार्यक्षेत्र में शीघ्र सफलता की प्राप्ति होती है| ऐसे जातक किसी भी विषय में विद्याध्ययन कर सफल हो सकते हैं|
यदि षष्ठ भाव में कन्या लग्न के कार्यक्षेत्र सम्बन्धी अनुकूल ग्रह उपस्थित हों, तो जातक को प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त कराने वाले होते हैं, परन्तु ऐसे जातक को कार्यक्षेत्र प्राप्ति में बहुत समस्याएँ आती हैं| अपनी योग्यता के अनुसार इन्हें कभी भी कार्यक्षेत्र प्राप्त नहीं होता है| श्ाुक्र यहॉं अश्ाुभ फलकारी होता है, वहीं बुध और चन्द्रमा का भी कोई विशेष फल नहीं होता है|
सप्तम भाव में कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह होने पर जातक को कार्यक्षेत्र में अच्छी उन्नति मिलती है| बुध यदि यहॉं बली होकर स्थित हो, तो रुचि के अनुसार जातक का कार्यक्षेत्र मिलता है| शेष ग्रह यदि इस भाव से सम्बन्ध बनाते हुए बली हों, तो जातक का कॅरियर विवाह के पश्‍चात् ही तय हो पाता है| विवाह से पूर्व वह संघर्ष ही करता है| इस प्रकार सप्तम भाव में स्थित ग्रह जातक का शीघ्र विवाह भी करवा सकते हैं| श्ाुक्र यहॉं अश्ाुभ फलकारी होता है, वहीं बुध और चन्द्रमा का भी कोई विशेष फल नहीं होता है|
सप्तम भाव में कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह होने पर जातक को कार्यक्षेत्र में अच्छी उन्नति मिलती है| बुध यदि यहॉं बली होकर स्थित हो, तो रुचि के अनुसार जातक को कार्यक्षेत्र मिलता है| शेष ग्रह यदि इस भाव से सम्बन्ध बनाते हुए बली हों, तो जातक का कॅरियर विवाह के पश्‍चात् ही तय हो पाता है| विवाह से पूर्व वह संघर्ष ही करता है| इस प्रकार सप्तम भाव में स्थित ग्रह जातक का शीघ्र विवाह भी करवा सकते हैं| श्ाुक्र यहॉं उच्च होकर विशेष बली होता है| अष्टम भाव से कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह सम्बन्ध बनाते हों, तो जातक को आय प्राप्ति में संघर्ष करना पड़ता है, क्योंकि कन्या लग्न में आय से सम्बन्धित सभी ग्रह यहॉं ्रपर बलहीन और अश्ाुभ होते हैं, अत: कन्या लग्न में अष्टम भावगत इन ग्रहों का फल लगभग नकारात्मक ही होता है|
नवम भाव से यदि कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह उपस्थित हों, तो जातक को कई प्रकार से आय प्राप्ति सम्भव है| यदि श्ाुक्र बुध के साथ बली होकर इस भाव में उपस्थित हो, तो जातक में कलात्मक क्षमता दृढ़ होती है| इसी कलात्मक क्षमता के कारण जातक अपने जीवन में दोहरी आय प्राप्त करता है| कार्यक्षेत्र सम्बन्धित सभी ग्रह यहॉं पर श्ाुभ फल देने वाले होते हैं, अत: ऐसे जातक निश्‍चित रूप से अपने जीवन में उच्च सफलता प्राप्त करते हैं|
दशम भाव में यदि ये ग्रह उपस्थित हों, तो जातक व्यवसाय से अधिक नौकरी में सफल होता है| दशम भाव में स्थित ग्रह उसे उसकी विद्या के अनुसार सफलता दिलवाते हैं| ऐसे जातक विशेषतया सरकारी नौकरी, बैंकिंग क्षेत्र में नौकरी, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में नौकरी अथवा राजनीति में सफल होते हैं| बुध के बली होकर यहॉं उपस्थित होने से कार्यक्षेत्र में शीघ्र उन्नति प्राप्त होती है| वहीं श्ाुक्र और चन्द्रमा भी यहॉं योगकारी होते हैं| शनि स्वयं दशम भाव का कारक ग्रह होने के कारण यहॉं श्ाुभ फल ही प्रदान करेगा|
एकादश भाव में कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह होने पर जातक नौकरी और व्यवसाय दोनों में ही सफल होता है| वह जिस विषय में अध्ययन करता है, उससे सम्बन्धित ही व्यवसाय और नौकरी होती है| बुध यहॉं होने पर दोहरी आय प्रदान करने वाला, शनि शिक्षा से सम्बन्धित आय देने वाला, श्ाुक्र और चन्द्रमा भी बुध के समान ही फलकारी होते हैं|
द्वादश भाव में यदि कार्यक्षेत्र से सम्बन्धित अनुकूल ग्रह हों, तो अश्ाुभ फलकारी होते हैं| ऐसे जातक को कड़े संघर्ष के पश्‍चात् अपने जीवन में सफलता प्राप्त होती है| शनि यदि यहॉं बलहीन होकर उपस्थित हो, तो जातक को प्रतियोगी परीक्षाओं में कड़े संघर्ष के पश्‍चात् सफलता प्राप्त होती है| चन्द्रमा और श्ाुक्र यहॉं मध्यम फलकारी और बुध सामान्य फल देने वाला होता है|
कन्या लग्न में अब पृथक्-पृथक् ग्रह स्थितियों के आधार पर कार्यक्षेत्र सम्बन्धी विभिन्न योगों को देखते हैं :—
1. कन्या लग्न में बली बुध अकेला स्थित हो, तो राजयोगकारी होता है|
2. बुध यदि चन्द्रमा के साथ युति करते हुए लग्न, द्वितीय, पञ्चम, सप्तम, नवम, दशम अथवा एकादश भाव में स्थित होने पर जातक को अपने कार्यक्षेत्र में ही शीघ्र ही सफलता प्राप्त हो जाती है|
3. बुध श्ाुक्र के साथ यदि द्वितीय, चतुर्थ, पञ्चम, नवम, कर्म अथवा एकादश भाव में हो, तो जातक अपनी कला के द्वारा धनार्जन करता है तथा वह इन ग्रहों से सम्बन्धित व्यापार में सफल हो जाता है|
4. बुध-गुरु से युति करते हुए लग्न, चतुर्थ, सप्तम, भाग्य, कर्म अथवा लाभ भाव में स्थित हो, तो जातक व्यवसाय करके आजीविका का निर्वाह करता है|
5. बुध-शनि से युति करते हुए लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पञ्चम, भाग्य, कर्म अथवा लाभ भाव में उपस्थित हों, तो जातक का कॅरियर उसकी शिक्षा के अनुसार होता है| ऐसा जातक विज्ञान और वाणिज्य विषय में विशेष रूप से सफल होता है|
6. बुध-राहु की युति कन्या लग्न में राजयोगकारी होती है| यदि बुध-राहु अन्य अनुकूल ग्रहों में से किसी एक के साथ सम्बन्ध बनाकर कार्यक्षेत्र के अनुकूल भावों में उपस्थित हों, तो जातक को निश्‍चित रूप से उच्च सफलता प्राप्त होती है|
7. चन्द्र और श्ाुक्र यदि द्वितीय, पञ्चम, नवम, कर्म अथवा एकादश भाव में हो, तो जातक कलाकार, गायक, लेखक और स्वतन्त्र रूप से कार्य करने वाला होता है| उसे विशेष रूप से स्वतन्त्र कार्य रूप में ही सफलता मिलती है|
8. चन्द्र-शनि यदि लग्न, द्वितीय, पञ्चम, नवम, दशम अथवा लाभ भाव में हो, तो जातक की शिक्षा में कई रुकावटें आती हैं, फिर भी वह उन्हें पार कर अपना उत्तम कार्यक्षेत्र प्राप्त करता है| ऐसा जातक आयु के काफी वर्षों तक विद्या अध्ययन ही जारी रखता है| इसलिए उसे अपने कार्यक्षेत्र में सफलता देरी से प्राप्त होती है|
9. यदि मंगल और शनि युति करते हुए पञ्चम अथवा अष्टम भाव में हों और सूर्य एवं चन्द्रमा भी बली हों, तो जातक डॉक्टर, इंजीनियर अथवा इन्हीं से सम्बन्धित अन्य कार्यक्षेत्र में होता है|
10.मंगल का श्ाुभ सम्बन्ध यदि कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रहों से बनता हो, तो जातक कार्यक्षेत्र के लिए अपने घर से दूर विदेश में भी जा सकता है|
11.कन्या लग्न में पंचमेश शनि यदि नवम, लग्न अथवा द्वितीय भाव में स्थित होकर मंगल और चन्द्र या श्ाुक्र के साथ बली होकर स्थित हो, तो जातक अपनी शिक्षा से ही कार्यक्षेत्र में उच्चता पर पहुँचता है|
12.चन्द्र-श्ाुक्र और बुध कला के प्रतिनिधि ग्रह होते हैं| कन्या लग्न में ये तीनों ही ग्रह कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रह होने के कारण ऐसे जातकों की कलात्मक क्षमता बहुत ही सुदृढ़ होती है, अत: ऐसे जातक कलात्मक कार्यों में विशेष रूप से सफल हो सकते हैं| यदि ये ग्रह बली होकर पञ्चम, लग्न, भाग्य अथवा लाभ भाव में स्थित हों, तो जातक निश्‍चित रूप से किसी न किसी कला के द्वारा अपने कार्यक्षेत्र को बनाता है|
13.गुरु यदि बुध के साथ अथवा लग्न में स्थित होकर चन्द्र अथवा श्ाुक्र से श्ाुभ सम्बन्ध बनाए, तो जातक को व्यापार में सफलता प्राप्त होती है| व्यापार किससे सम्बन्धित वस्तु का करें इसका निर्णय सर्वाधिक रूप से बली ग्रह के अनुसार करना चाहिए|
14.यदि चन्द्र, शनि, मंगल और श्ाुक्र में से कोई तीन ग्रह भाग्य भाव में श्ाुभ युति बनाए अथवा द्वितीय भाव से सम्बन्ध बनाए, तो जातक को शेयर आदि कार्यों से धन प्राप्ति संभव है|
इस प्रकार कन्या लग्न में विभिन्न योगों को परखने के पश्‍चात् २० वर्ष से ३५ वर्ष के मध्य आयु में विंशोत्तरी दशाओं का विचार करना चाहिए| कार्यक्षेत्र के अनुकूल ग्रहों में जो सर्वाधिक रूप से बली है, उसकी दशा यदि इस समय आती हो, तो जातक को निश्‍चित रूप से इस समय में उच्च सफलता प्राप्त होगी| प्राय: कन्या लग्न में बुध, श्ाुक्र, शनि, राहु और चन्द्रमा की दशा-अन्तर्दशा श्ाुभ होती है| गुरु की मध्यम फलकारक शेष दशाएँ अश्ाुभ होती हैं|
इन श्ाुभ दशाओं के साथ इन ग्रहों का गोचर और अष्टकवर्ग द्वारा विचार करना भी आवश्यक है| तभी इनके बलाबल के बारे में जानकारी मिल पाएगी| यदि उपर्युक्त श्ाुभ ग्रह श्ाुभ गोचर में चलते हुए पॉंच या उससे अधिक रेखाओं पर चल रहे हों, तो निश्‍चित रूप से ऐसे योग में जातक को कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है|
गोचर और अष्टकवर्ग विचार करने के साथ ही वर्ष कुण्डली और योगिनी दशाओं का भी अध्ययन करना चाहिए| सफलता प्राप्ति के वर्ष को वर्ष कुण्डली द्वारा ही परखा जा सकता है|
योगिनी दशाएँ भी कार्यक्षेत्र निर्धारण में बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं| जब भी जातक को उत्तम कार्यक्षेत्र की प्राप्ति होती है, तब प्राय: श्ाुभ योगिनी दशा या अन्तर्दशा अवश्य होती है, अत: समय निर्धारण की इन सभी पद्धतियों को परखकर कार्य प्राप्ति के श्ाुभ समय का पता लगाना चाहिए|•

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