शरद् ॠतु के अवतरण की घोषणा करते हुए नवरात्र जैसे ही आते हैं, तो साथ ही रामलीला की गूँज और गरबा जैसे नृत्यों की बहार को भी साथ लाते हैं| इन नवरात्र में अपनी कुल परम्परा के अनुसार देवी का पूजन किया जाता है| भगवान् राम के पूजन की परम्परा ने भी पिछले काफी समय से पैठ जमा ली है| इसका मुख्य श्रेय तुलसीदास जी को ही जाता है, जिन्होंने जन सामान्य को राम भक्ति से जोड़ने का कार्य किया है| नवरात्र में रामचरितमानस का नवाह्नपरायण पाठ करने का रिवाज वर्तमान में बहुतायत रूप से प्रचलित है| शास्त्रीय आधार पर देखें, तो यह पर्व शक्ति की पूजा—उपासना का है| पूर्वी भारत एवं बंगाल में यह पर्व इसी रूप में अधिक मनाया जाता है|
उत्तर और पश्चिमी भारत में इस समय आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ करते हुए नौ दिवसों तक राम कथा का नाटकीय रूप रामलीला के रूप में होता है, जिसे देखने के लिए घर-घर से सभी सदस्य जाते हैं| यह मंचन पिछले कई वर्षों से हो रहा है, लेकिन कब से है, यह ज्ञात नहीं| रामलीला में इन नौ दिवसों में राम के जन्म से लेकर रावण की सेना को पछाड़कर विजयादशमी के दिन उसकी हत्या पर जाकर समाप्त होता है|
क्या यही कारण हैं, आश्विन शुक्ल दशमी को रावण वध मानने का? शायद यह सत्य है, क्योंकि इसके अतिरिक्त इसका कोई भी प्रमाण नहीं है कि रावण का वध आश्विन शुक्ल दशमी को हुआ था| हालांकि इस साक्ष्य के प्रमाण कुछ ही मिलते हैं जैसे; वाल्मीकि रामायण के टीकाकार नागेश भट्ट ने रावण वध का दिन आश्विन शुक्ल दशमी को माना है, परन्तु नागेश भट्ट के इस मत को वाल्मीकि रामायण के अधिकतर टीकाकार अस्वीकार करते हैं|
रावण वध का समय चैत्र (कृष्णादि से वैशाख) मास को ही मानते हैं| विजयादशमी के दिन रावण वध के साक्ष्य के रूप में कालिका उपपुराण का भी मत प्रकट किया जाता है| राधाकृष्ण मिश्र ने कालिका उपपुराण के आधार पर आश्विन शुक्ल नवमी को रावण वध बताया है| इस हेतु उनका कहना है कि आश्विन शुक्ल नवमी को रावण वध सायंकाल या उसके पश्चात् हुआ होगा| इस कारण से उसका उत्सव उसके अगले दिन अर्थात् विजयादशमी को मनाया गया| इसलिए विजयादशमी को ही रावण वध मान लिया गया, परन्तु अधिकतर विद्वज्जन कालिका उपपुराण में कथित इस साक्ष्य को नकारते ही रहे हैं| इसका मुख्य कारण यह है कि कालिका उपपुराण में काल गणना भली—भॉंति प्रकार से नहीं हुई है|
इसके विपरीत रावण का वध आश्विन शुक्ल दशमी को नहीं होने के प्रमाण अधिक प्राप्त होते हैं| पद्मपुराण के पुष्कर खण्ड में भगवान् राम की सेना और रावण की सेना के मध्य ४८ दिन युद्ध होने का उल्लेख है, जिसका अन्त चैत्र शुक्ल चतुर्दशी को रावण वध के रूप में हुआ था| अग्निवेश रामायण में यह युद्ध ७३ दिन तक चलने का प्रमाण मिलता है| इसमें रावण वध चैत्र कृष्ण चतुर्दशी (कृष्णादि से वैशाख कृष्ण चतुर्दशी) को बताया गया है|
रामचरितमानस के खेमराज संस्करण में छपे तिथि-पत्र में पं. ज्वालाप्रसाद मिश्र ने रावण वध को चैत्र शुक्ल चतुर्दशी को बताया है :
चैत्र शुक्ल चौदशि जब आई मरेउ दशानन जग दुखदाई॥
बी.एच. वाडेर अग्निवेश रामायण और लोमशरामचरित के आधार पर रावण वध को वैशाख कृष्ण चतुर्दशी के दिन मानते हैं| गिरधर कृत अब्दरामायण में रावण वध वैशाख कृष्ण चतुर्दशी को उल्लिखित किया गया है|
उपर्युक्त प्रमाणों के आधार पर यही कहा जा सकता है कि चाहे भगवान् राम ने रावण का वध किसी भी तिथि को किया हो, परन्तु जनसाधारण के मन-मस्तिष्क में जो विजयादशमी के दिन रावण वध की धारणा प्रवेश कर चुकी है, उसे मिटाना नामुमकिन है| कई बार विद्वज्जन शास्त्रीय परम्परा के ऊपर कुल परम्परा या लोक परम्परा को स्वीकार करते हैं जैसा कि नवरात्र पर्व मनाने में यह बात सर्वत्र कही जाती है| ऐसे ही विजयादशमी का पर्व भी है, जो कि अपने मूल रूप को तो खो ही चुका है| कुछ शताब्दियों पूर्व तक विजयादशमी को जययात्रा के मंगल मुहूर्त के रूप में, अपराजिता देवी के पूजोत्सव देवी के रूप में मनाया जाता था| अब वह राम की रावण पर विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है|
वर्तमान में आश्विन शुक्ल दशमी के दिन रावण वध की परम्परा सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध नहीं है| कई स्थानों पर इस पर्व को मूल रूप से भी मनाया जाता है, तो कई स्थानों पर रावण को आदर्श रूप देकर| उत्तर, पश्चिम और मध्य भारत में यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत और भगवान् राम द्वारा रावण वध के रूप में ही मूल रूप से मनाया जाता है| इस दिन सूर्यास्त के पश्चात् से ही जगह—जगह पर रावण के पुतले जलाकर उसका आतिशी तरीके से अन्त किया जाता है| एक ही शहर में कई स्थानों पर रावण के पुतले बनाकर उसका दहन किया जाता है| रावण के साथ ही कुम्भकर्ण और मेघनाद के पुतले बनाकर भी जलाए जाते हैं| कई स्थानों पर यह पर्व अपनी—अपनी परम्पराओं के अनुसार भी मनाया जाता है| कुल—मिलाकर सर्वाधिक रूप में आश्विन शुक्ल दशमी की प्रसिद्धि भारत में दशहरा तथा विजयादशमी के रूप में ही है, क्योंकि समस्त भारतीयों के लिए भगवान् श्रीराम बहुत बड़े आदर्श हैं| वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं| श्रीराम सत्य के, आदर्श के, अनुशासन के, आचार के, मर्यादा के प्रतीक हैं, जबकि रावण असत्य, अहंकार, उद्दण्डता, अनाचार और लिप्सा का प्रतीक है| ऐसी स्थिति में रावण पर राम की विजय का स्मरण विजयादशमी को नहीं किया जाएगा, तो और कब किया जाएगा?