नवरात्र में जितना दुर्गापूजन का महत्त्व है, उतना ही कुमारी पूजन का भी महत्त्व है| देवीपुराण के अनुसार इन्द्र ने जब ब्रह्माजी से भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने की विधि पूछी, तो उन्होंने सर्वोत्तम विधि के रूप में कुमारी पूजन ही बताया और कहा कि भगवती जप, ध्यान, पूजन और हवन से भी इतनी प्रसन्न नहीं होतीं, जितनी कि कुमारी पूजन से होती हैं|
यदि नवरात्र में अन्य कोई पूजा-अनुष्ठान नहीं करके मात्र एक अथवा नौ कन्याओं की प्रतिदिन भक्तिभाव से पूजा-अर्चना की जाए, तो वह भी दुर्गा पूजा-अनुष्ठान के समान ही फलदायक होता है| सामान्य रूप से कन्यापूजन नवमी के दिन ही प्रचलित है| इस दिन नौ कन्याओं को बुलाकर उन्हें भोजन करवाया जाता है और यथाशक्ति फल-दक्षिणा भी दान की जाती हैंै, लेकिन शास्त्रों के अनुसार कन्या पूजन के कई प्रकार बताए गए हैं| प्रथम प्रकार के अन्तर्गत नौ दिवसों तक प्रतिदिन एक-एक कन्या का पूजन करना चाहिए| द्वितीय प्रकार के अनुसार प्रतिदिन एक-एक कन्या की संख्या बढ़ाते हुए पूजन करना चाहिए यथा; पहले दिवस एक कन्या, दूसरे दिवस दो कन्या, तीसरे दिवस तीन कन्या और इसी प्रकार नवें दिन नौ कन्याओं का पूजन करना चाहिए| तृतीय प्रकार के अनुसार प्रतिदिन नौ कन्याओं का पूजन-अर्चन करना चाहिए|
प्रथम प्रकार से पूजन-अर्चन करने से कल्याण की प्राप्ति होती है और सौभाग्य प्राप्त होता है| द्वितीय प्रकार से अर्थात् एक-एक कन्या बढ़ाते हुए पूजन करने पर सुख-सुविधाएँ और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है और तृतीय प्रकार अर्थात् प्रतिदिन नौ कन्याओं का पूजन नौ दिवसों तक करने पर भूमि का आधिपत्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है| ऐसा व्यक्ति उच्च पद को प्राप्त करता है और मॉं दुर्गा की उस पर कृपा रहती है|२
कामना भेद से पूजन हेतु कन्याओं का चयन
यह कुमारी पूजन विभिन्न कामनाओं के निमित्त भी विशेष रूप से किया जा सकता
है| कन्याओं की अवस्था के अनुसार उनकी अलग-अलग संज्ञाएँ बतायी गई हैं और
इन अलग-अलग संज्ञाओं से युक्त कन्याएँ अलग-अलग मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाली होती हैं|
शास्त्रों में एक वर्ष की कन्या का पूजन निषिद्ध बताया गया है| अवस्था के अनुसार कन्याओं की संज्ञा निम्नलिखित है :
1. दो वर्ष की कन्या : कुमारी
2. तीन वर्ष की कन्या : त्रिमूर्ति
3. चार वर्ष की कन्या : कल्याणी
4. पॉंच वर्ष की कन्या : रोहिणी
5. छह वर्ष की कन्या : कालिका
6. सात वर्ष की कन्या : चण्डिका
7. आठ वर्ष की कन्या : शांभवी
8. नौ वर्ष की कन्या : दुर्गा
9. दस वर्ष की कन्या : सुभद्रा
संज्ञाओं के अनुसार प्राप्त फल
1. कुमारी पूजन का फल : दु:ख और दरिद्रता का नाश, शत्रुओं का नाश, आयु में वृद्धि|
2. त्रिमूर्ति पूजन का फल : आयु में वृद्धि, धर्म और काम की प्राप्ति, अपमृत्यु योग का विनाश, व्याधि पीड़ा का नाश, दु:खों से मुक्ति|
3. कल्याणी पूजन का फल : धन-धान्य और सुख की वृद्धि, पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति|
4. रोहिणी पूजन का फल : आरोग्य की प्राप्ति, सुख-समृद्धि, सम्मान की प्राप्ति|
5. कालिका पूजन का फल : विद्या तथा प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता की प्राप्ति, उच्च पद की प्राप्ति, शत्रु विनाश इत्यादि के लिए|
6. चण्डिका पूजन का फल : संग्राम में अथवा शत्रुओं पर विजय प्राप्ति हेतु|
7. शांभवी पूजन का फल : दु:ख एवं दारिद्र्य के विनाश हेतु, राजा अथवा उच्चाधिकारियों की कृपा प्राप्ति और उन्हें अपने वश में करने हेतु तथा भीषण पाप से मुक्ति हेतु|
8. दुर्गा पूजन का फल : शत्रुओं पर विजय, शत्रुकृत बाधा से मुक्ति एवं दुर्भाग्य के विनाश हेतु|
9. सुभद्रा पूजन का फल : सौभाग्य और धन-धान्य की प्राप्ति, मनोकामना की पूर्ति और दास-दासी अथवा सहायकों की संख्या में वृद्धि हेतु|
यहॉं यह ध्यातव्य है कि जिस भी कामना की पूर्ति हेतु आप कन्या पूजन करना चाहते हैं, उस संज्ञक कन्या की नौ दिवसों तक पूजा-अर्चना करनी चाहिए यथा; दु:ख-दारिद्र्य के नाश के लिए कुमारीसंज्ञक कन्या की पूजा की जाती है, अत: यदि आप इस कामना से कन्या पूजन करते हैं, तो नौ दिवसों तक प्रतिदिन 1, 9 अथवा उत्तरोत्तर वृद्धि क्रम से दो वर्ष की कन्याओं का पूजन-अर्चन करना चाहिए|३
कुमारी पूजन में नौ कुमारियों के अतिरिक्त दो बटुक कुमारों का भी पूजन किया जाता है| एक बटुक भगवान् गणेश के रूप में होता है, तो दूसरा बटुक भैरव के रूप में होता है| दो के अतिरिक्त कहीं-कहीं तीन बटुक कुमारों का भी पूजन करने का प्रमाण प्राप्त होता है|
कुमारी पूजन की विधि
कुमारी पूजन में कन्याओं को साक्षात् देवी स्वरूप समझना चाहिए| जिस प्रकार भगवती की हम पूजा-अर्चना करें, उसी प्रकार हमें उन कन्याओं की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, लेकिन उनके पूजन से पूर्व भगवान् गणेश और बटुक भैरव के रूप में दो बटुक कुमारों का पूजन करना चाहिए| इसके लिए सर्वप्रथम जैसे ही वे घर में आ जाएँ, तो उनके पैर धोकर स्वच्छ और सुन्दर स्थान पर बिठाना चाहिए| बैठने के लिए अच्छा आसन प्रदान करना चाहिए| बिठाने के बाद जिस प्रकार विविध उपचारों से भगवान् की पूजा की जाती है, उसी प्रकार उनकी पूजा करें| उनके मस्तक पर तिलक करें, अक्षत लगाएँ, उन्हें सुगन्धित पुष्पों की माला पहनाएँ और तत्पश्चात् उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन करवाएँ| भोजन में ध्यान रखें कि मीठी खाद्य वस्तु अवश्य हो यथा; लड्डू, गुड़, घी, खीर, हलवा अथवा अन्य जो भी पदार्थ मधुर रस से युक्त हों और उनकी रुचि के अनुरूप हों, वे भी अवश्य परोसें|
इसके पश्चात् जब तक वे भोजन करें, उनके समीप ही बैठे रहें और भोजन के पश्चात् शुद्ध जल से आचमन करवाएँ| अन्त में उन्हें फल, मिठाई, श्रीफल, दक्षिणा और वस्त्र प्रदान करें| तत्पश्चात् उनके हाथ में कुछ चावल दें और उन्हें साष्टांग प्रणाम करने के पश्चात् वे चावल अपने मस्तक पर डलवाएँ|
पूजन में गणपति और बटुक भैरव के प्रति दोनों बटुकों और अवस्था के अनुसार विविध नामसंज्ञक कन्याओं के पूजन के अलग-अलग मन्त्रों का भी प्रयोग किया जा सकता है| प्रथम बटुक का पूजन करते समय निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए :
‘ॐ गं गणपतये नम:’
दूसरे बटुक का पूजन करते समय निम्नलिखित मन्त्र और ध्यान श्लोक का उच्चारण करना चाहिए :
ॐ बं बटुकाय नम:
ॐ करकलितकपाल: कुण्डली दण्डपाणि:
तरुणतिमिरनील-व्याल-यज्ञोपवीती|
क्रतुसमयसपर्याविघ्नविच्छेदहेतु:
जयति वटुकनाथ: सिद्धिद: साधकानाम्॥
सर्वप्रथम निम्नलिखित मन्त्र से नवदुर्गाओं का आवाहन करेंे :
ॐ मन्त्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्|
नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्॥
अब नवकन्याओं का पूजन करें|
कुमारी संज्ञक कन्या का पूजन करते समय हाथ जोड़कर निम्नलिखित मन्त्र पढ़ना चाहिए :
ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिस्वरूपिणि|
पूजां गृहाण कौमारि! जगन्मातर्नमोस्तु ते॥
त्रिमूर्ति संज्ञक कन्या का पूजन करते समय हाथ जोड़कर निम्नलिखित मन्त्र पढ़ना चाहिए :
ॐ त्रिपुरां त्रिपुराधारां त्रिवर्षां ज्ञानरूपिणीम्|
त्रैलोक्यवन्दितां देवीं त्रिमूर्ति पूजयाम्यहम्॥
कल्याणी संज्ञक कन्या का पूजन करते समय हाथ जोड़कर निम्नलिखित मन्त्र पढ़ना चाहिए :
ॐ कलात्मिकां कलातीतां कारुण्यहृदयां शिवाम्|
कल्याणजननीं देवीं कल्याणीं पूजयाम्यहम्॥
रोहिणी संज्ञक कन्या का पूजन करते समय हाथ जोड़कर निम्नलिखित मन्त्र पढ़ना चाहिए :
ॐ अणिमादिगुणाधाराम् अकाराद्रक्षयात्मिकाम्|
अनन्तशक्तिकां लक्ष्मीं रोहिणीं पूजयाम्यहम्॥
कालिका संज्ञक कन्या का पूजन करते समय हाथ जोड़कर निम्नलिखित मन्त्र पढ़ना चाहिए :
ॐ कामचारां शुभां कान्तां कालचक्रस्वरूपिणीम्|
कामदां करुणादारां कालिकां पूजयाम्यहम्॥
चण्डिका संज्ञक कन्या का पूजन करते समय हाथ जोड़कर निम्नलिखित मन्त्र पढ़ना चाहिए :
ॐ चण्डवीरां चण्डमायां चण्डमुण्डप्रभंजनीम्|
पूजयामि सदा देवीं चण्डिकां चण्डविक्रमाम्॥
शांभवी संज्ञक कन्या का पूजन करते समय हाथ जोड़कर निम्नलिखित मन्त्र पढ़ना चाहिए :
ॐ सदानन्दकरीं शान्तां सर्वदेवनमस्कृताम्|
सर्वभूतात्मिकां लक्ष्मीं शाम्भवीं पूजयाम्यहम्॥
दुर्गा संज्ञक कन्या का पूजन करते समय हाथ जोड़कर निम्नलिखित मन्त्र पढ़ना चाहिए :
ॐ दुर्गमे दुस्तरे कार्ये भवदु:खविनाशिनीम्|
पूजयामि सदा भक्त्या दुर्गां दुर्गतिनाशिनीम्॥
सुभद्रा संज्ञक कन्या का पूजन करते समय हाथ जोड़कर निम्नलिखित मन्त्र पढ़ना चाहिए :
ॐ सुन्दरीं स्वर्णवर्णाभां सुखसौभाग्यदायिनीम्|
सुभद्रजननीं देवीं सुभद्रां पूजयाम्यहम्॥
विशेष : कुमारी पूजन में यह ध्यान रखें कि कोई कन्या हीनांगी, अधिकांगी, अन्धी, काणी, कूबड़ी, रोगी अथवा दुष्ट स्वभाव वाली नहीं होनी चाहिए| यदि पूजन में नौ कन्याएँ ब्राह्मण कुल की हों, तो अधिक अच्छा है| इसके अभाव में क्षत्रिय अथवा वैश्य कुल में उत्पन्न कन्या का पूजन भी किया जा सकता है|