प्रकाशन तिथि – मई, 2010
प्रत्येक मनुष्य के शरीर में दोनों नेत्रों के मध्य एक विशेष स्थान होता है, जिसे तीसरी आँख कहा जाता है| भगवान् शिव के चित्रों में यह तीसरा नेत्र स्पष्ट रूप से दिखाया जाता है| हिन्दू धर्म में दोनों नेत्रों के बीच इस स्थान पर तिलक लगाया जाता है| उसका प्रयोजन भी यही होता है कि जिससे यह नेत्र जाग्रत हो सके| योग के अनुसार यह स्थान ‘आज्ञा चक्र’ का माना जाता है| इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति दूर घटित कोई भी घटना या किसी का भी भूत-भविष्य देख सकता है| प्राचीन समय में साधु-संत और महर्षि जब किसी का भूत-भविष्य देखना होता या किसी घटना का पता लगाना होता, तो अपने दोनों नेत्र बन्द कर लिया करते थे और फिर उन्हें सब कुछ पता लग जाया करता था| इसका कारण भी यही था कि दोनों नेत्र बन्द करने के पश्चात् बाह्य जगत् से सम्बन्ध कम हो जाता था और तब अन्दर स्थित तीसरा नेत्र खोलकर वह घटना देखी जाती थी| यह स्थान अन्य कई कारणों से भी महत्त्वपूर्ण होता है| जब कोई सिद्ध पुरुष अपने शिष्य को शक्तिपात के माध्यम से अपनी शक्तियॉं प्रदान करता है, तो भी वह दोनों नेत्रों के मध्य स्थित उसी स्थान पर अपना अंगुष्ठ रखता है| ऐसा माना जाता है कि प्रकृति में स्थित दिव्य शक्तियों या अन्य किसी भी प्रकार की ऊर्जा को समाहित करने का प्रवेश द्वार यही तीसरी आँख है| यह इतनी शक्तिशाली होती है कि इसे खोलने पर भविष्य दर्शन ही नहीं, बल्कि और असम्भव कार्य भी किए जा सकते हैं| पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि का विनाश भगवान् शिव का तीसरा नेत्र खुलने पर ही होता है| उपनिषदों के अनुसार मनुष्य के शरीर में नाक, कान, मुख, नाभि इत्यादि दस प्रवेश द्वार माने गए हैं| इनमें से नौ द्वार बाह्य रूप से दिखाई देते हैं, लेकिन दसवॉं द्वार दिखाई नहीं देता| यह दसवॉं द्वार तीसरी आँख या आज्ञा चक्र ही है| यह स्थान एकाग्रता का केन्द्र होता है| जो भी ध्यान-योग करने वाले साधक अपना ध्यान एकाग्र करना चाहते हैं, वे इसी स्थान पर ध्यान लगाते हुए इसका चिन्तन करते हैं| हमें इस भौतिक जगत् से आध्यात्मिक जगत् की ओर जोड़ने वाला योजक यह तीसरा नेत्र ही है| हमारे चारों ओर कई आवरण फैले हुए हैं| प्रथम आवरण इस भौतिक जगत् का है, जिसे हम इन सामान्य नेत्रों से देख सकते हैं| द्वितीय आवरण अदृश्य शक्तियों, भूत-प्रेत इत्यादि का होता है, जिन्हें हम इन आँखों से नहीं देख पाते हैं| तीसरा आवरण भूत-भविष्य आदि कालों का होता है और अन्तिम आवरण उस परम् शक्ति का होता है| तीसरे नेत्र को जाग्रत कर लेने पर भूत-प्रेत आदि अदृश्य शक्तियों और भूत-भविष्य आदि कालों को दर्शाने वाले आवरण प्रत्यक्ष हो जाते हैं| ऐसा व्यक्ति किसी भी अदृश्य शक्ति को अनुभव कर सकता है, देख सकता है| इतना ही नहीं वह किसी भी व्यक्ति का भूत, भविष्य और वर्तमान भी देख सकता है| उसके द्वारा की गई भविष्यवाणियॉं सत्य सिद्ध होती हैं| जब वह इस आज्ञा चक्र को जाग्रत करने के पश्चात् सातवें चक्र सहस्रार तक पहुँचता है, तो फिर उसे अन्तिम आवरण में स्थित उस परम् शक्तिमान परमात्मा का भी साक्षात्कार हो जाता है|
विज्ञान के अनुसार यह तीसरी आँख पिट्टयूटरि और पिनीयल ग्रन्थि में स्थित होती है|
एक सामान्य अभ्यास से इस तीसरे नेत्र की शक्ति का अनुभव किया जा सकता है|
प्रात:काल के समय शोरगुल रहित स्थान पर सीधे बैठकर अपना ध्यान दोनों आँखों के मध्य लगाएँ और दूर स्थित किसी व्यक्ति का मन ही मन चिन्तन करेंअथवा दूर तक होने वाली छोटी-छोटी आवाजों को सुनने का प्रयास करें| यह अभ्यास प्रतिदिन प्रात:काल के समय कुछ दिन करें| चालीस दिन पूर्ण होते-होते आपको इस तीसरे नेत्र का और इसकी शक्ति का आभास मिल जाएगा| यदि आप किसी व्यक्ति का चिन्तन इस दौरान करते हैं, तो उसके साथ घटित होने वाली कोई विशेष घटना का अनुभव आपको हो सकता है और यदि दूर होने वाली आवाजों को सुनने का अभ्यास आप करते हैं, तो आप देखेंगे कि अपने से दूर होने वाली बातचीत जिसे आप सामान्य रूप से नहीं सुन सकते थे, वह भी धीरे-धीरे सुनाई देने लगेगी| यदि इस चक्र पर ध्यान केन्द्रित कर आप किसी व्यक्ति से कोई विशेष कार्य करने के लिए मन ही मन कहेंगे, तो आप देखेंगे कि वह व्यक्ति थोड़े दिन में बगैर कहे ही आपका वह कार्य करने को तैयार हो जाएगा|
इस प्रकार यह तीसरी आँख बहुत ही दिव्य होती है और जो साधक प्रतिदिन इस पर ध्यान केन्द्रित करने का अभ्यास करते हैं, उनका यह नेत्र धीरे-धीरे जाग्रत होता है और फिर वे भूत, भविष्य और वर्तमान को भी देख सकने में समर्थ हो जाते हैं|