जन्मपत्रिका से जानें पितृदोष

ज्‍योतिष

भारतीय संस्कृत वाङ्‌मय में विभिन्न लोकों का वर्णन किया गया है, इनमें से ही एक लोक है, पितृ लोक, जहॉं पर पितृगणों का निवास होता है| इस लोक में रहने वाले पितृगण मोक्ष की अवस्था में नहीं रहते हैं|
‘पितृ’ शब्द का यहॉं लौकिक अर्थ पिता न होकर पूर्वज होता है| ऐसे पूर्वज सूक्ष्म देह धारण करते हुए पितृलोक में निवास करते हैंं| यदि ये पितृगण किसी व्यक्ति से अप्रसन्न हों अथवा इन पर किसी प्रकार का संकट आए, तो ये अपने परिजनों से अप्रसन्न हो जाते हैं| यही स्थिति ‘पितृदोष’ के नाम से जानी जाती है|
इनके अप्रसन्न हो जाने पर व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार के संकट आने लगते हैं| जीवन में उन्नति बाधित हो जाना, घर के सदस्यों को अक्सर दुर्घटनाओं का सामना करना, सन्तानोत्पत्ति नहीं होना, घर के सभी सदस्यों का प्राय: रुग्ण रहना इत्यादि दोष पूरे परिवार को पीड़ित करते हैं|
पितृगणों को प्रसन्न करने के लिए सम्बन्धित उपाय करने की आवश्यकता होती है| द्वादश मासों में आश्‍विन माह का कृष्ण पक्ष ‘श्राद्ध पक्ष’ भी कहलाता है| इस समय यदि व्यक्ति अपने पितृगणों की प्रसन्नता के लिए श्राद्धादि कर्म करता है, तो उससे पितृगण बलवान् एवं प्रसन्न होते हैं|
किस पितृगण के कारण यह समस्या उत्पन्न हो रही है, यह जानने के लिए परिवार मुखिया अथवा पीड़ित व्यक्ति की जन्मपत्रिका के अध्ययन से उक्त दोष के बारे में जाना जा सकता है| पितृगण के रूप में पूर्वजों में दादा-परदादा, दादी-परदादी, माता-पिता, भाई, पत्नी आदि के कारण पितृदोष उत्पन्न हो सकता है|
यदि पुरुष पितृगण है, तो गुरु से तथा स्त्री पितृगण है, तो चन्द्रमा से विचार करना चाहिए| यदि उक्त ग्रह शनि, राहु आदि पाप ग्रहों से पीड़ित हों अथवा अन्य प्रकार से पीड़ित हों, तो पितृदोष होता है| इन ग्रहों के अतिरिक्त सूर्य, मङ्गल एवं शुक्र भी पत्नी, भाई आदि से सम्बन्धित पितृदोष के परिचायक होते हैं :
पुरुष सम्बन्धी पितृदोष के योग
1. पञ्चम भाव में सूर्य नीचराशिगत होकर कुम्भ नवांश में हो तथा पञ्चम भाव पापकर्तरी योग से पीड़ित हो|
2. सूर्य अथवा सिंह राशि पापकर्तरी योग से पीड़ित होकर त्रिकोण भावों में हो तथा उन्हें पापग्रह पूर्ण दृष्टि से देखते हों|
3. गुरु सिंह राशि में स्थित होकर पञ्चमेश तथा सूर्य से युति करता हो एवं लग्न तथा पञ्चम भाव में पाप ग्रह हों|
4. लग्न तथा लग्नेश दोनों निर्बल हों, लग्नेश पञ्चम में पापग्रहों से युत हो तथा लग्न में भी पाप ग्रह स्थित हों तथा पञ्चमेश सूर्य के प्रभाव में हो|
5. दशमेश त्रिक भाव (6, 8, 12) में स्थित हो, गुरु पाप ग्रह की राशि में हो एवं लग्न पञ्चम भाव में स्थित होकर पीड़ित हो|
6. अष्टम अथवा द्वादश भाव में राहु-गुरु की युति हो तथा लग्न अथवा पञ्चम से पाप ग्रह शनि, सूर्य, मङ्गल किसी प्रकार से सम्बन्ध बनाते हों|
7. लग्न में पापग्रह, अष्टम भाव में सूर्य, पञ्चम में शनि हो तथा पञ्चमेश राहु के साथ हो|
8. द्वादशेश लग्न में, अष्टमेश पञ्चम में तथा दशमेश अष्टम में हो|
9. गुरु-राहु की युति हो, षष्ठेश पञ्चम में तथा दशमेश षष्ठ में हो|
10. पञ्चम में सूर्य-शनि की युति हो, सप्तम भाव में क्षीण चन्द्रमा एवं लग्न अथवा द्वादश में राहु-गुरु की युति हो|
11. पञ्चमेश शनि से गुरु युति करते हुए अष्टमभाव में हो, लग्न में मङ्गल हो|
12. लग्न में राहु हो, पञ्चम में शनि हो तथा अष्टमभाव में बृहस्पति हो|
13. चन्द्रमा एवं शनि की युति हो, लग्नेश अष्टमस्थ हो तथा लग्न में राहु, शुक्र एवं गुरु हो|
14. लग्न में शनि, पञ्चम में राहु, अष्टम में सूर्य तथा द्वादश भाव में मङ्गल हो|
15. अष्टमेश पञ्चम में, शनि शुक्र के साथ हो तथा गुरु अष्टम में हो|
उपर्युक्त योग किसी जन्मपत्रिका में उपस्थित हों, तो पूर्वजों में पिता, दादा, परदादा में से किसी के पितृलोक में असंतुष्ट होने के योग बनते हैं|
स्त्री सम्बन्धी पितृदोष के योग
1. चन्द्रमा पापकर्तरी योग से पीड़ित हो अथवा नीचराशिगत हो तथा चतुर्थ एवं पञ्चम भाव भी पाप ग्रहों से पीड़ित हों|
2. नीचराशिगत चन्द्रमा पञ्चम भाव में हो, चतुर्थ में राहु तथा एकादश भाव में शनि हो|
3. पञ्चमेश त्रिक भाव में हो, लग्नेश नीचराशिगत हो एवं चन्द्रमा पापयुक्त हो|
4. पञ्चम भाव में कर्क राशि हो तथा चन्द्रमा त्रिकोण भावों में शनि, राहु एवं मङ्गल से युक्त हो|
5. लग्नेश तथा पञ्चमेश षष्ठभावस्थ हों, चतुर्थेश अष्टम में हो तथा अष्टमेश तथा कर्मेश लग्न में हो|
6. षष्ठेश तथा अष्टमेश लग्न में हो, चतुर्थेश द्वादश में हो तथा पञ्चम में चन्द्रमा-गुरु पापयुक्त हों|
7. लग्न पापकर्तरी योग से पीड़ित हो, क्षीण चन्द्रमा सप्तम भाव में हो, राहु एवं शनि युति करते हुए चतुर्थ अथवा पञ्चम भाव में हो|
8. अष्टमेश पञ्चम में हो, पञ्चमेश अष्टम में हो तथा चन्द्रमा चतुर्थेश से युति करते हुए त्रिक भाव में हो|
9. कर्क लग्न में मङ्गल एवं राहु साथ हों तथा चन्द्रमा एवं शनि पञ्चम में हों|
10. लग्नेश-चतुर्थेश त्रिक भावों में हों, लग्न, पञ्चम, अष्टम तथा द्वादश में मङ्गल, राहु, सूर्य तथा शनि किसी भी प्रकार से सम्बन्ध बनाते हों|
11. गुरु अष्टम में तथा मङ्गल-राहु की युति हो, साथ ही पञ्चम में शनि-चन्द्रमा की युति हो|
उक्त सभी योग जन्मपत्रिका में होने पर स्त्री सम्बन्धी अर्थात् माता, दादी, परदादी, नानी आदि से सम्बन्धित पितृदोष होता है|
भाइयों से सम्बन्धित पितृदोष के योग
1. तृतीयेश पञ्चम में मङ्गल एवं राहु के साथ हो तथा लग्नेश एवं पञ्चमेश अष्टम भाव में हों|
2. गुरु अष्टम भाव में, तृतीयेश नवम भाव में हो तथा लग्न एवं पञ्चम में मङ्गल तथा शनि हो|
3. पञ्चम में शनि, अष्टम में चन्द्रमा-मङ्गल तथा तृतीय भाव में नीचराशिगत गुरु हो|
4. लग्न एवं पञ्चम भाव पापकर्तरी योग से पीड़ित हों तथा लग्नेश-पञ्चमेश ग्रह अष्टम भाव में हों|
5. लग्नेश अष्टम में हो, पञ्चमेश अष्टम भाव में पापयुक्त तथा पञ्चम भाव में मङ्गल हो|
6. पञ्चम भाव में शनि-राहु हों, द्वादश भाव में बुध-मङ्गल हों तथा पञ्चम भाव में बुध की राशि (मिथुन अथवा कन्या) हो|
7. तृतीयेश अष्टम में, पञ्चम में गुरु तथा राहु शनि से युत अथवा दृष्ट हो|
8. अष्टमेश पञ्चम में अथवा तृतीयेश के साथ हो तथा अष्टम में शनि एवं मङ्गल हों|
पत्नी से सम्बन्धित पितृ दोष के योग
1. गुरु पापयुक्त हो तथा पञ्चमेश-सप्तमेश अष्टम भाव में हों|
2. सप्तमेश अष्टम मेंे हो, शुक्र पञ्चम में हो तथा गुरु पाप युत हो|
3. लग्नेश, गुरु एवं सप्तमेश त्रिक भावों में हों, नवम भाव में शुक्र की राशि हो तथा पञ्चमेश षष्ठ भाव में हो|
4. राहु एवं चन्द्रमा की युति पञ्चम भाव में हो, लग्न द्वितीय तथा द्वादश भावों में पाप ग्रह हों तथा पञ्चम भाव में शुक्र की राशि हो|
5. सप्तम भाव में शुक्र एवं शनि हों, अष्टमेश पञ्चम में हो तथा लग्न में सूर्य-राहु की युति हो|
6. पञ्चम भाव में शनि-राहु की युति हो, द्वितीय भाव में मङ्गल, द्वादश भाव में गुरु एवं पञ्चम भाव में शुक्र हो|
7. द्वितीयेश तथा सप्तमेश अष्टम भाव में हों, मङ्गल-शनि की युति लग्न अथवा सिंह राशि में हो तथा गुरु पापयुक्त हो|
8. लग्न में राहु, पञ्चम में शनि, नवम में मङ्गल तथा पञ्चमेश-सप्तमेश अष्टम में हों|
उक्त योग जन्मपत्रिका में होने पर पत्नी की मृत्यु के पश्‍चात् सद्गति नहीं होती है और वह पितृलोक में जाकर पितृदोष उत्पन्न करती है|
उक्त सभी दोष प्राय: एक ही घर के सभी सदस्यों की जन्मपत्रिका में देखने को मिल जाते हैं| पितृदोष से पीड़ित किसी व्यक्ति के अन्य बन्धुजनों की जन्मपत्रिका देखने पर भी उसी प्रकार का दोष स्पष्ट ऩजर आता है| ऐसे में सामूहिक रूप से घर के सभी सदस्यों को मिलकर पितृदोष का उपाय करना चाहिए एवं अपने पूर्वज की सद्गति के लिए यथासम्भव प्रयास करना चाहिए| ऐसा करने के पश्‍चात् ही स्वयं का तथा पूर्वज का कल्याण होना सम्भव है|•

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *