सुख-साधनों की चकाचौंध ने विकासदर को तो बढ़ाया ही है, साथ ही प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से अनेक रोगों और असाध्य बीमारियों को भी निमंत्रण दिया है| नित नए-नए रोगों का जन्म हो रहा है तथा पुराने रोगों पर औषधियॉं बेअसर सिद्ध हो रही हैं| इसी क्रम ने अस्पतालों और नर्सिंग होमों की संख्या में दिन दूनी एवं रात चौगुनी वृद्धि की है|
अस्पताल रोग का निदान करने का ऐसा स्थान है, जहॉं रोगी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने के लिए जाता है| अगर ऐसे में यही स्थल रोगों की वृद्धि का कारण बन जाए, तो इससे बड़ी क्या बात हो सकती है? कोई भी निर्माण अथवा उत्पत्ति प्रकृति के विरुद्ध हो, तो वह कितना लाभ दे पाएगी, यह तो सर्वविदित है, अत: जो स्थान आरोग्यप्राप्ति के लिए बनाया जाता है, वह स्थान पूर्ण रूप से प्रकृति प्रदत्त नियमों के अनुरूप ही होना चाहिए| कहा गया है कि ‘पहला सुख निरोगी काया|’ इसलिए शारीरिक आरोग्यता की प्राप्ति के लिए अस्पतालों और नर्सिंग होमों का निर्माण पूर्ण रूप से वास्तुसम्मत नियमों के आधार पर ही होना चाहिए| इससे ये अस्पताल प्रकृति के अनुरूप हो जाएँगे तथा रोगियों को पूर्ण आरोग्य प्रदान करेंगे| इसके लिए हमें कतिपय तथ्यों को दृष्टिगत कर लेना चाहिए|
निर्माणाधीन अस्पताल
यदि आप किसी अस्पताल अथवा नर्सिंग होम का निर्माण करवाने जा रहे हैं, तो वास्तुसम्मत निम्नलिखित नियमों का ध्यान में रखना श्रेयस्कर होगा|
उपयुक्त स्थान
अस्पताल के चारों ओर का वातावरण शुद्ध, स्वच्छ और प्राकृतिक संसाधनों से ओत-प्रोत होना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि यहॉं प्रसारित वायु रोगी को शीघ्र स्वस्थ करने के लिए कारगर सिद्ध होगी|
अस्पताल को भीड़-भाड़ अथवा शोरगुल वाली जगह से सर्वथा विलग होना चाहिए| वहॉं ध्वनि प्रदूषण की अधिकता के कारण रोगी के कष्टों में वृद्धि होगी|
भूखण्ड
अस्पताल के लिए जहॉं तक संभव हो, पूर्वोन्मुखी अथवा उत्तरोन्मुखी भूखण्ड ही लेना चाहिए| इनमें भी पूर्वोन्मुखी भूखण्ड सर्वश्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि सूर्य की जीवनदायिनी रश्मियों का अस्पताल पर सीधा प्रवेश हो सकेगा| ईशान से सूर्य की जीवनदायिनी उर्जा का संचय होता हुआ, आग्नेय और वायव्य से होता हुआ नैर्ॠत्य (दक्षिण-पश्चिम) में ऊर्जा का संग्रहण होता है| इसलिए पूर्व और उत्तर की ओर अधिक खुला एवं खिड़कियॉं और रोशनदान सम्पन्न होना चाहिए|
नैर्ॠत्य कोण में खिड़कियॉं और दरवाजे कम होने चाहिए| इसी प्रकार दीवारें भी दक्षिण और पश्चिम की मोटी होनी चाहिए|
अस्पताल के चारों ओर खुला स्थान छोड़ना चाहिए| यह स्थान पूर्व और उत्तर में अधिक तथा दक्षिण एवं पश्चिम में कम होना श्रेष्ठ रहता है|
अस्पताल का मुख्यद्वार पूर्व अथवा ईशान में होना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है| यह मुख्यद्वार अन्य प्रवेश द्वारों से बड़ा होना चाहिए|
अस्पताल की इमारत आरम्भ करने से पूर्व भूखण्ड के ईशान कोण में पूर्व अथवा उत्तर की तरफ जल संग्रहण अथवा बोरिंग अवश्य करवा लेना चाहिए|
सेप्टिक टैंक
अस्पताल में सेप्टिक टैंक का भी महत्त्वपूर्ण स्थान होता है| यह सेप्टिक टैंक आमतौर पर बनाए गए सेप्टिक टैंकों की तुलना में बड़ा बनाया जाना उचित होता है| इसे भवन के मध्य उत्तर में इस प्रकार बनाया जाना चाहिए कि इसका कोई भी छोर अथवा पाइप कभी भी बोरिंग स्थान से नहीं मिल पाए| सेप्टिक टैंक को बाउंड्री की दीवार से स्पर्श करता हुआ नहीं बनवाना चाहिए| यह चाहरदीवारी से तीन फुट की दूरी रखकर बनवाना उचित रहता है| सेप्टिक टैंक मध्य उत्तर में वायव्य के समाप्त होते ही बनवाना चाहिए| इसे पूर्व-पश्चिम की लम्बाई में रखना चाहिए, जो उत्तर-दक्षिण की चौड़ाई से अधिक हो| सेप्टिक टैंक का बहाव उत्तर अथवा पूर्व की ओर रहना चाहिए| दक्षिण की ओर नहीं होना चाहिए|
प्रतीक्षालय कक्ष
रोगियों का प्रतीक्षालय दक्षिण दिशा में ही होना चाहिए| वहॉं उचित हवा का साधन भी होना चाहिए अर्थात् हवा के आवागमन की पूर्ण व्यवस्था होनी चाहिए|
परीक्षण कक्ष
रोगियों के लिए परीक्षण कक्ष उत्तर दिशा में बनवाना उचित रहता है| रोगियों की जॉंच करते समय डॉक्टर को पूर्व अथवा उत्तर की ओर मुख रखना चाहिए| इसी प्रकार रोगी का परीक्षण करते समय उसे जिस टेबल पर उसे लिटाया जाए, तो ध्यान रखें कि रोगी का सिर दक्षिण अथवा पूर्व की ओर रहे और जॉंच कर रहे डॉक्टर का मुख उस समय उत्तर अथवा पूर्व की ओर रहे|
ऑपरेशन थिएटर
अस्पताल में ऑपरेशन थिएटर पश्चिम दिशा में ही बनवाना उचित रहता है| ऑपरेशन करते समय सर्जन का मुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर रहना चाहिए| दक्षिण दिशा की ओर कदापि नहीं रहना चाहिए| रोगी का सिर दक्षिण दिशा की ओर रहे, तो अत्युत्तम है, परन्तु ध्यातव्य है कि उत्तर दिशा की ओर रोगी का सिर कदापि नहीं रखें|
परीक्षण मशीनें
एक्स-रे मशीन का कमरा एवं अन्य विद्युत् उपकरण आग्नेय कोण में होना चाहिए|
आई.सी.यू. कक्ष
आई.सी.यू. (आपातकालीन चिकित्सा कक्ष) वायव्य कोण में होना चाहिए|
पैथोलॉजी लैब
जहॉं मल-मूत्र एवं रक्त का परीक्षण किया जाता है, उस परीक्षण स्थल को उत्तरी वायव्य के समीप बनवाना चाहिए| जॉंचकर्ता का मुख उत्तर की तरह रहना चाहिए|
सोनोग्राफी
सोनोग्राफी लैब को मध्य उत्तर एवं मध्य पूर्व में बनवाना चाहिए|
ई.सी.जी. लैब
इस लैब को मध्य उत्तर में बनवाना चाहिए|
सी.टी. स्कैन लैब
इस लैब को उत्तरी ईशान के समीप बनवाना उचित रहता है|
औषधि भण्डारण कक्ष
इस कक्ष को दक्षिण में बनवाना चाहिए| प्रयत्न करना चाहिए| कि अधिक से अधिक भण्डारण इस कक्ष के नैर्ॠत्य कोण में ही हो|
बिस्तर आदि भण्डारण कक्ष
इस कक्ष को भी दक्षिण दिशा में ही बनवाना चाहिए|
शवगृह
शवगृह अस्पताल से कुछ दूरी दक्षिण दिशा में होना चाहिए| इस तरफ वार्डरूम भी नहीं होने चाहिए| नहीं तो शव से निकलने वाली नकारात्मक ऊर्जा वहॉं रहने वालों के लिए अशुभ प्रभाव उत्पन्न करेंगी|
शव-निकास द्वार
शव का निकास दक्षिणी द्वार से करना चाहिए तथा उसे उत्तर में सिर एवं दक्षिण में पैर करके लिटाना चाहिए|
आउटडोर
रोगियों को देखने के लिए आउडडोर की व्यवस्था भवन के वायव्य कोण में करनी चाहिए|
नर्सिंग स्टाफ कक्ष
अस्पताल में कर्मचारियों का कक्ष वायव्य अथवा आग्नेय कोण की ओर निर्मित करवाएँ| गंभीर रोगियों को अथवा आईसीयू कक्ष के रोगियों को बाहर लाने पर कभी भी दक्षिण-पश्चिम (नैर्ॠत्य कोण)दिशा वाले कक्ष में नहीं रखना चाहिए| उनके लिए वायव्य कोण में कक्ष बनवाना चाहिए| इन्हें उत्तर दिशा में भी रखा जा सकता है|
चिकित्सक कक्ष
चिकित्सक कक्ष अस्पताल के पश्चिमी नैर्ॠत्य मे बनवाया जाना चाहिए तथा चिकित्सा विज्ञान की पुस्तकों की आलमारी दक्षिण अथवा पश्चिम की दीवारों के साथ रखनी चाहिए|
रोगीकक्ष
रोगियों के लिए कमरे उत्तर, पश्चिम अथवा वायव्य कोण में बनाने चाहिए| इसमें बैड की व्यवस्था इस प्रकार हो कि रोगियों का सिर दक्षिण अथवा पूर्व की ओर रहे| दक्षिण की तरफ हो तो अधिक उत्तम रहता है|
अस्पताल में रोगियों के बिस्तर सफेद रंग के एवं उनके ओढ़ने का कम्बल आदि लाल रंग के होने चाहिए, क्योंकि यह रंग स्वास्थ्य एवं जीवन्तता का प्रतीक होता है|
सीढ़ियॉं
छत पर जाने के लिए सीढ़ियॉं ईशान को छोड़कर कहीं पर भी बनवाई जा सकती है, परन्तु यह नैर्ॠत्य कोण में अथवा मध्य पश्चिम में रहे, तो अत्युत्तम रहेगा|
प्रशासनिक भवन
अस्पताल का प्रशासनिक भवन नैर्ॠत्य दिशा में बनवाया जाना चाहिए| मुख्य प्रशासनिक अधिकारी की बैठक व्यवस्था इस प्रकार हो कि वह उत्तर अथवा पूर्व की ओर मुख करके बैठे|
कैशकाउन्टर
अस्पताल में कैश काउन्टर कक्ष दक्षिण, पश्चिम दिशा में तथा लेन-देन के लिए खिड़की उत्तर या पूर्व की ओर खुलनी चाहिए|
जलव्यवस्था
अस्पताल में पीने के पानी की व्यवस्था ईशान कोण में करनी चाहिए|
शौचालय
अस्पताल में शौचालय दक्षिण या पश्चिम में तथा स्नानगृह पूर्व या उत्तर में बनवाने चाहिए|
पार्किंग
वाहनों के लिए पार्किंग की व्यवस्था पूर्व या उत्तर दिशा की ओर करनी चाहिए|
रंग—रोगन
अस्पताल की दीवारों का रंग सफेद अथवा हल्का हरा होना चाहिए|
लिफ्ट
यदि अस्पताल में लिफ्ट लगानी हो, तो मध्य उत्तर दिशा की ओर लगवानी चाहिए|
मन्दिर
अस्पताल में ईशान कोण में एक मन्दिर की स्थापना की जानी चाहिए, जिसमें प्राण-प्रतिष्ठित देवी-देवता की स्थापना पश्चिमोन्मुखी अथवा दक्षिणोन्मुखी की जानी चाहिए|
