राजस्थान पत्रिका में लगभग १० वर्ष पूर्व प्रकाशित एक सच्ची घटना है| यह घटना महाराजा कॉलेज (जयपुर) में पढ़ने वाले कुछ विद्यार्थियों की है, जिन्होंने प्लेनचेट के जरिए आत्माओं से सम्पर्क साधने का प्रयास किया था| निश्चित दिन चारों दोस्तों ने रात्रि के समय इकट्ठे होकर प्लेनचेट की जरिए आत्माओं को बुलाने और उनसे अपने भविष्य सम्बन्धी कथनों का उत्तर ज्ञात करने की योजना बनायी| रात्रि के समय दूसरे प्रहर में तीन मित्र तो आ गए, लेकिन नियत समय तक चौथा मित्र नहीं आया| इन्तजार करते-करते रात के १२ बज चुके थे| उन तीनों ने सोचा कि चौथा मित्र प्लेनचेट के अनुभव के डर के कारण नहीं आ रहा है| फिर भी एक घण्टा और इंतजार कर लिया जाए| लगभग १ बजे के आसपास उन तीन मित्रों ने ही प्लेनचेट चलाने का मानस बनाया| प्लेनचेट चलाने के लगभग १५ मिनट के पश्चात् चौथे दोस्त ने दरवाजे पर दस्तक दी| उसे देखकर सभी दोस्त चौंक गए और अपने साथ प्लेनचेट में शामिल होने का निमन्त्रण दिया| वह उन सभी सामने आकर बैठ गया| शेष तीनों मित्र उसे आश्चर्य से देखने लगे| तभी एक ने पूछा ‘कहॉं थे तुम?’ चौथा मित्र बोला ‘मुझे आने में कुछ विलम्ब हो गया| मैं जैसे ही घर से निकला तो त्रिपोलिया दरवाजे के बाहर मेरी मोटर साइकिल को एक ट्रक ने टक्कर मार दी| उस समय वहॉं कोई नहीं था| अभी तक मेरा मृत शरीर वहीं पर पड़ा है| अभी तुमने बुलाया तो मैं यहॉं पर आ गया|’ चौथे मित्र की यह बात सुनकर सभी चौंक गए| सभी को लगा कि वह मजाक कर रहा है, परन्तु बार-बार यही बात दोहराने पर जब वे तीनों मित्र त्रिपोलिया दरवाजे के बाहर पहुँचे, तो देखा कि उनके मित्र का शव वहीं पड़ा था, कुछ पुलिस वाले खड़े थे और उसकी मोटरसाइकिल भी वहीं खड़ी थी| उसके मृत शरीर को देखकर उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि यह उनके उसी मित्र का मृत शरीर है, जो उन्हें कुछ समय पूर्व ही मिला था| प्लेनचेट के प्रयोग के कारण ही उसकी आत्मा उनके पास आयी और हमें अपनी दुर्घटना के बारे में बताया|