सत्संगति के गुण

नीति अमृत

जाड्‌यं धियो हरति सिञ्चति वाचि सत्यम्
मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति|
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिम्,
सत्संगतिः कथय किम् न करोति पुंसाम्‌॥

सत्संगति बुद्धि की जड़ता को दूर करती है| वाणी में सत्य का आधान करती है, सम्मान और उन्नति प्रदान करती है, पाप को दूर करती है, हृदय को प्रसन्न करती है और दिशाओं में कीर्ति ङ्गैलाती है अर्थात् सत्पुरुषों की संगति से मनुष्य निरन्तर प्रगति प्राप्त करता रहता है| सत्संगति के द्वारा ही बुद्धि की मन्दता दूर होती है| सत्संगति मनुष्य को सत्यवादी बनने की प्रेरणा प्रदान करती है| भले ही लोगों की संगति से मनुष्य की प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी होती है अर्थात् उन्नति होती है| सत्संगति के द्वारा ही मनुष्य शुभ कर्मों की ओर प्रेरित होता है| सात्विक भावनाओं से मनुष्य को प्रसन्नता मिलती है| सद्गुणों के विकास से मनुष्य यश प्राप्त करता है| इस प्रकार सत्संगति से मनुष्य बौद्धिक उत्कर्ष, सत्यवादिता एवं सम्मान प्राप्त करता है|•

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