और शव चल पड़ा …

खोज-खबर

प्रकाशन तिथि : मई, 2009
‘‘उस साधु की देह बड़ी ही डरावनी प्रतीत हो रही थी| ऐसा लग रहा था जैसे शरीर का सारा खून सूख गया हो और शरीर सफेद हो गया हो| साधु का चेहरा थोड़ा-सा टेढ़ा हो गया था और आँखें भी ऊपर की तरफ चढ़ी हुई थीं| अगर वह युवक साथ न होता और इस तरह मुझे साधु को हाथ लगाना होता, तो शायद डर से बुरा हाल हो जाता| … …’’
आप सोच रहे होंगे कि कोई शव भला कैसे चल सकता है? जी हॉं! यह उतना ही सच है, जितना कि हमारा अस्तित्व| मेरी आँखें इस घटना की साक्षी हैं| कभी-कभी अविश्‍वसनीय और अद्भुत घटनाएँ भी हो जाया करती हैं| यह घटना भी उसी तरह की है|
परकाया प्रवेश में पारंगत योगियों के बारे में यदा-कदा सुनने को मिल जाया करता है| अनेक पश्‍चिमी विद्वानों ने हिमालय की तराइयों एवं असम के दुर्गम जंगलों में परकाया प्रवेश आदि अद्भुत यौगिक क्रियाओं में निष्णात साधुओं के बारे में अपने यात्रा वृत्तान्तों में लिखा है| प्रस्तुत घटना मेरे दादाजी को मिले एक सैनिक से सम्बन्धित है| कुछ वर्ष पूर्व उन्होंने मेरी परकाया प्रवेश की जिज्ञासा को शान्त करते हुए सुनाई थी|
यह बात उन दिनों की है, जब मैं नायब सूबेदार के पद पर चार्ली बटालियन में कार्यरत था| हमारी टुकड़ी उन दिनों असम के घने जंगलों में कुछ घुसपैठियों को भगाने के लिए तैनात थी| उनसे हमारी मुठभेड़ यदा-कदा ही होती थी| उसमें भी हम बहुत प्रयास करने के बाद भी अभी तक एक भी घुसपैठीये को पकड़ने में कामयाब नहीं हुए थे| वे लोग यहॉं काफी दिनों से थे और उसी कारण जंगल के चप्पे-चप्पे से वाक़िफ थे| जब भी हम उन्हें घेरने का प्रयास करते, तो वे कहीं-न-कहीं से बच निकलते| अभी तक 15-20 दिन हमें यहॉं हो चुके थे| जंगल इतना घना और यहॉं के रास्ते इतने टेढ़े-मेढ़े और एक जैसे थे कि एक बार दिग्भ्रमित होने के पश्‍चात् दुबारा मिलना बड़ा मुश्किल हो सकता था| ऊपर से जंगली जानवरों का भी बहुत खतरा था| यही कारण था कि हम सभी एक साथ ही रहते थे और रात में आग जलाने के बाद भी 2-3 व्यक्ति बारी-बारी से पहरेदारी किया करते थे|
एक दिन सुबह के समय मैं पहरेदारी पर था| अभी तक सूर्योदय नहीं हुआ था और पूरी रात नहीं सोने के कारण मुझे भी बीच-बीच में झपकी आ रही थी| तभी अधखुली आँखों से मैंने देखा कि पास की नदी के किनारे एक व्यक्ति किसी शव को लेकर खड़ा है| दूर से मैं उसे ढंग से देख नहीं पाया| बहुत दिनों से हमने वहॉं इस तरह किसी व्यक्ति को देखा भी नहीं था| उसे देख मैं चौकन्ना हो गया| मुझे लगा कि वह कोई घुसपैठिया है| मैंने सतर्क होकर राइफल हाथ में ली और कड़कदार आवाज में बोला ‘‘कौन है उधर? सामने आओ, वरना मैं गोली चला दूँगा|’’ मेरी आवाज सुनकर मेरे दो-तीन साथी और आ गए| हम सबको देखकर वह शख्स निकट आ गया और बोला ‘‘क्या हुआ? भाई तुमने शायद मुझे गलत समझ लिया| मैं तो एक साधु हूँ| मेरे शिष्य की अचानक मृत्यु हो गई है| मैं इसका दाह संस्कार करने के लिए इसके शव को यहॉं लाया हूँ|’’
हमारा शक निराधार निकला| वह वास्तव में एक साधु ही था| उसका मृत शिष्य देखने में 30-32 वर्ष का हट्टा-कट्टा युवक लग रहा था| अगर एक फौजी का दिल हमारे सीने में नहीं होता, तो उसे देखकर जरूर हमारी आँखों से आँसू निकल गए होते| खैर! अब हमने उसे जाने दिया और अपने कैम्प की ओर वापस आ गए|
उसके पश्‍चात् पूरे दिन हमने इधर-उधर जंगल में घूमकर आपसी हँसी-मजाक में ही बिता दिया| शाम को 5-6 बजे के आसपास हमें खबर मिली कि कुछ घुसपैठिए हमारे कैम्प के आस-पास ही घूम रहे हैं| हम सतर्क हो गए और आस-पास उन्हें ढूँढ़ने की कोशिश करने लगे, लेकिन एक भी घुसपैठिया हमे नहीं मिला| रात को भी हम में से पॉंच जने पहरेदारी के लिए जगे|
अचानक सुबह मैंने कुछ शोरगुल सुना और घबराकर उठ बैठा| मुझे लगा शायद कुछ घुसपैठियों ने हमला कर दिया है, लेकिन अपने शिविर से जब मैं बाहर आया, तो देखा कि मेरे साथी घेरा बनाकर एक युवक को घेरकर खड़े हैं| जब मैं उस युवक के पास गया, तो हैरानी से मेरी आँखें खुली की खुली रह गयीं| एक बार तो मुझे विश्‍वास ही नहीं हुआ कि यह कैसे हो सकता है? यह तो वही शव था, जिसका दाह संस्कार, वह संन्यासी करने जा रहा था और वही शव अब मेरे सामने जीवित खड़ा था और बोल भी रहा था| मुझे अपनी आँखों पर विश्‍वास नहीं हुआ, लेकिन मैं ही नहीं, मेरे और साथियों की स्थिति भी ऐसी ही थी| कुछ को लगा कि यह कोई घुसपैठिया है, जो चालाकी से भेष बदलकर आया है, लेकिन जो बात उसने हमें बतायी, उस पर तो हमें बिलकुल भी विश्‍वास नहीं हुआ| वह कहने लगा कि मैं वही संन्यासी हूँ, जो कि आप लोगों से उस दिन मिला था| फिर जो बातें हमारी उस संन्यासी से हुई थीं, वे सब भी उसने बता दीं|
उसने कहा कि वह एक योगी है और अपनी इच्छा से किसी के भी मृत शरीर में प्रवेश कर सकता है| इसके बाद उसने मृतात्मा और परकाया प्रवेश के बारे में कुछ एक बातें बतायीं, तो हमें लगा कि निश्‍चित रूप से वह ठीक ही कह रहा है, क्योंकि इस प्रकार की बातें एक साधारण व्यक्ति को कभी भी पता नहीं हो सकतीं| अब उसकी बातों पर शक करने की कोई वजह नहीं थी और कौतुहल और आश्‍चर्य से युक्त होकर अब हम यही सोच रहे थे कि कैसे उसने एक शरीर से दूसरे निर्जीव शरीर में प्रवेश किया होगा? हम अपनी उत्सुकता को रोक नहीं पाए और मैंने कहा ‘‘बाबा! वैसे तो आपकी बातें सुनकर हमें यकीन हो गया है कि आप कोई पहुँचे हुए योगी हैं, परन्तु फिर भी आप यह दुर्लभ दृश्य हमें दिखा सकें, तो आपकी बड़ी कृपा होगी|’’
योगी ने कहा ‘‘यह सब इतना आसान नहीं है और इस तरह इन चीजों का प्रदर्शन करना तन्त्रशास्त्र के सिद्धान्तों के भी खिलाफ है| मैं तुम्हें इसका प्रदर्शन नहीं कर सकता’’ लेकिन हम भी कहॉं मानने वाले थे| हमने भी बार-बार उस युवक रूपी योगी से विनती की, तो अन्त में उसे मानना ही पड़ा|
उस युवक ने अब परकाया प्रवेश के बारे में बताना प्रारम्भ किया| ‘‘परकाया प्रवेश योगशास्त्र की बहुत उच्चकोटि की साधना है| इसके माध्यम से पहुँचे हुए योगी सदैव स्वस्थ रहने और तप करने के निमित्त समय-समय पर अपना शरीर परिवर्तित करते रहते हैं और फिर जब उनका लक्ष्य पूरा हो जाता है, तो शरीर परिवर्तन के इस चक्र को छोड़कर चले जाते हैं| मैंने भी यह विद्या अपने गुरुदेव भैरवानन्द जी महाराज से सीखी है, जो कि अब ब्रह्मलीन हो चुके हैं| पिछले डेढ़ सौ वर्षों से मैं इसी तरह शरीर परिवर्तन कर रहा हूँ, लेकिन अभी मेरा लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है| पिछली बार जिस शरीर में तुमने मुझे देखा था, वह शरीर भी मेरा नहीं था| उस साधु की मृत्यु भी तन्त्रसाधना में एक गलती के कारण युवावस्था में ही हो गई थी| पिछले तीस वर्षों से मैं इस शरीर में था, लेकिन अब वह शरीर जर्जर हो गया था और मुझे साधना करने में बहुत दिक्कत होती थी, इसलिए मैंने यह शरीर परिवर्तित कर लिया|’’
हमारी चुप्पी के बीच उस शवरूपी साधु ने पुन: बोलना प्रारम्भ किया कि ‘‘हमारा शरीर मुख्यरूप से दो भागों में विभक्त होता है; प्रथम भाग कंठ से ऊपर का होता है, जिसमें मस्तिष्क ओर ज्ञानेन्द्रियॉं होती हैं, दूसरा भाग कंठ से नीचे का होता है, जिसमें समस्त कर्मेन्द्रियॉं आती हैं| मृत्यु के समय कर्मेन्द्रियॉं तुरन्त मृत हो जाती हैं, लेकिन ज्ञानेन्द्रियॉं उसके बाद भी काफी समय तक जीवित रहती हैं| सांसारिक दृष्टि से देखने पर व्यक्ति मृत दिखाई देता है और उसकी आत्मा भी उसका शरीर छोड़ चुकी होती है, लेकिन फिर भी उसकी ज्ञानेन्द्रियॉं इस समय जीवित होती हैं|’’
‘‘यही समय उस काया में प्रवेश करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होता है| मृत्यु के बाद दुबारा जी उठने की कई घटनाएँ सुनने में आती हैं| इन घटनाओं का सम्बन्ध इसी से है| कई बार वही मृतात्मा अपने शरीर से मोह के बन्धन के कारण पुन: उस शरीर में प्रवेश कर जाती है, तो कई बार वातावरण में विचरण कर रही मृत आत्माएँ मौका देखकर उस शरीर में प्रवेश कर जाती हैं, लेकिन दूसरी स्थिति में उस व्यक्ति को पूर्व आत्मा से जुड़ी स्मृतियॉं नहीं रहती हैं| यह साधना करते समय बहुत सावधानी और कुशलता की आवश्यकता होती है, वरना कई बार शव से बाहर निकलने के बाद दुबारा वह आत्मा शरीर में प्रवेश नहीं कर पाती है और शरीर में प्रवेश करे बगैर मोक्ष नहीं हो सकता है|’’
‘‘इस प्रकार की आत्माएँ फिर अन्तरिक्षलोक में यूँ ही विचरण करती रहती हैं| जब अन्य किसी योगी या सन्त की कृपा उन पर हो जाती है, तभी उनका मोक्ष होता है|’’
अब उस युवक ने कहा ‘‘ठीक है! अब मैं तुम्हें परकाया प्रवेश की यह क्रिया दिखाता हूँ| मेरा पुराना शरीर पास ही एक गुफा में पड़ा हुआ है| तुम लोग उसे यहॉं ले आओ| वहीं तुम्हें एक थैला भी मिलेगा, जिसमें मेरी साधना का कुछ सामान है, जिसकी मुझे आवश्यकता पड़ेगी|’’
मेरे दो-तीन साथी उस युवक के बताए अनुसार गए, तो जैसा उस युवक ने बताया था, वैसा ही वहॉं मिला| वहॉं उस साधु का शव पड़ा हुआ था और पास ही एक केसरिया से रंग का थैला भी था| उस गुफा में एक अजीब सी सुगन्ध व्याप्त थी और अगरबत्ती के कुछ टुकड़े भी वहॉं पड़े हुए थे, जिन्हें देखकर यह लग रहा था, कि कुछ समय पूर्व ही उस युवक ने यहॉं अपनी पूजा सम्पन्न की हो| थोड़ी ही देर में मेरे साथी उस साधु के शव को लेकर वहॉं पहुँच गए| इसके बाद फिर वह युवक साधना की तैयारी में लग गया|
सबसे पहले उसने नदी से जल मँगवाया और उस साधु के देह को मन्त्रोच्चारण के साथ स्नान करवाया| इस काम में मैंने भी उसकी सहायता की| उस साधु की देह बड़ी ही डरावनी प्रतीत हो रही थी| ऐसा लग रहा था, जैसे शरीर का सारा खून सूख गया हो और शरीर सफेद हो गया हो| साधु का चेहरा थोड़ा-सा टेढ़ा हो गया था और आँखें भी ऊपर की तरफ चढ़ी हुई थीं| अगर वह युवक साथ न होता और इस तरह मुझे साधु को हाथ लगाना होता, तो शायद डर से बुरा हाल हो जाता| आज भी उस मृत साधु का वह चेहरा जब मेरे स्मृति पटल पर आता है, तो सारे बदन में सरसरी-सी दौड़ जाती है| इसके बाद फिर उस युवक ने एक चाकू और कुछ नीबू निकाले और उन नीबुओं को काटकर चारों कोनों में रख दिया| फिर उन चारों कोनों से मिलाते हुए चाकू की सहायता से एक रेखा खींची| साथ-ही-साथ उच्च स्वर में वह कुछ मन्त्रों का पाठ भी करता जा रहा था| जब यह क्रिया सम्पन्न हो गई, तो पुन: एक बार वह युवक नदी में स्नान करने के लिए उतर पड़ा| स्नान के पश्‍चात् गीले कपड़ों में ही वह उस घेरे में संन्यासी की देह के समीप आकर बैठ गया|
उसने पहले ही बता दिया था कि यह ‘रक्षारेखा’ इसलिए खींची जाती है, ताकि परकाया प्रवेश के दौरान बाहर की कोई आत्मा आकर उन शरीरों में प्रविष्ट न हो सके, अन्यथा कई बार ऐसा भी होता है कि जब एक शरीर को छोड़कर आत्मा दूसरे शरीर में प्रवेश करने वाली होती है, तो उस समय उन दोनों शरीरों में या किसी एक शरीर में उस वातावरण में विचरण करती हुई अतृप्त आत्मा प्रवेश कर जाती है और फिर वास्तविक आत्मा को उसका शरीर वापस नहीं मिल पाता है| फिर युवक ने बताया कि ‘‘अब मैं इस शरीर में प्रवेश करूँगा, लेकिन ध्यान रहे यदि थोड़ी देर इस संन्यासी के शरीर में कोई हरकत नहीं हो, तो भी तुममें से कोई इस घेरे में मत आना अन्यथा तुम्हारे प्राण संकट में पड़ सकते हैं|’’
हम सभी उस घेरे से दूर बैठ गए| तब उस युवक ने अपनी दोनों आँखें इस तरह ऊपर चढ़ा लीं कि हमें सिर्फ उसकी आँखों का सफेद हिस्सा ही दिखाई दे रहा था| उस समय उसे देखकर बहुत डर लग रहा था| लगभग आधा घण्टा वह इसी तरह ध्यान में रहा| फिर अचानक उसका शरीर एक ओर लुढ़क गया| हम समझ गए कि उसकी आत्मा उसका शरीर छोड़ चुकी है| अब हम उस संन्यासी की देह को बहुत उत्सुकता से देख रहे थे, कि शायद अब कुछ हो| करीब दस-पन्द्रह मिनट बाद अचानक उस वृद्ध संन्यासी के शव की आँखें खुली| इस अद्भुत दृश्य को देखकर हमारी सॉंसें रुक गईं| फिर उस संन्यासी के शरीर में धीरे-धीरे हरकतें शुरू होने लगी| शायद वह आत्मा उस शरीर में प्रवेश कर रही थी और फिर अचानक वह शव उठ बैठा और चल पड़ा… … | फिर हमारी और देखकर बोला ‘‘क्यों! अब तो भरोसा हो गया मेरी बात पर|’’ हम सभी इस अद्भुत दृश्य को देखकर चमत्कृत हो चुके थे और उस दिव्य संन्यासी के ज्ञान के प्रति नतमस्तक हो उठे|•

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