योगियों के चमत्कारों की कथाएँ अपार हैं| ऐसी ही एक चमत्कारयुक्त कथा उत्तरप्रदेश के गाजीपुर क्षेत्र के सिद्धयोगी भीखाभाई के बारे में प्रचलित है| एक दिन भीखाभाई प्रात:काल अपने नित्यकर्म में संलग्न थे| वे एक स्थान पर बैठकर नीम की दातुन कर रहे थे, तभी एक ग्रामीण दौड़ता हुआ उनके पास आया| उसकी स्थिति भययुक्त आश्चर्य से परिपूर्ण थी, जिसके कारण वह अपनी बात भी कह नहीं पा रहा था, वह बोला ‘भीखाबाबा! गजब हो गया, ऐसा मैंने पहले कभी नहीं देखा, वह शेर पर सवार…|’ आश्चर्य और भय के कारण वह अपनी पूरी बात भी नहीं कह पाया|
भीखाभाई बोले ‘क्या हुआ, कोई सपना देखा है क्या, दुर्गामाता को देखा है क्या? क्यों इतना डरा हुआ है?’
ग्रामीण बोला ‘महाराज! वह शेर पर सवार है …|’ ग्रामीण की आँखें कभी उस रास्ते की ओर देखती, जिससे वह दौड़कर आया है और कभी भीखाबाई की ओर, प्रयास करके भी ग्रामीण के मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे| इस पर भीखाभाई झुंँझलाकर बोले :
‘अरे कुछ बताएगा भी, कौन है शेर पर सवार, पागल हो गया है क्या?’
ग्रामीण कुछ देर रुककर बोला ‘महाराज! मैंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा और न सुना, एक महात्मा शेर पर सवार होकर आप ही की ओर आ रहे हैं| शेर तो ऐसे चल रहा है, जैसे गधा चलता है, बिलकुल शान्त अवस्था में| महात्मा जी भी उस पर ध्यानमग्न बैठे हैं, ऐसे लग रहा है, जैसे वे शेर पर नहीं बैठकर, किसी घोड़ागाड़ी पर बैठे हों|’
यह सुनकर भीखाभाई बोले ‘जरूर कोई उच्चकोटि के योगी हैं, उनके पास ‘प्राप्ति’ नाम की सिद्धि है| ऐसे योगी ही जो भी सवारी चाहें, उसे अपने योगबल से प्राप्त कर सकते हैं|’
ग्रामीण बोला ‘महाराज! यह प्राप्ति सिद्धि क्या है?’
‘प्राप्ति योगविद्या की एक सिद्धि है, जिसके सिद्ध होने पर योगी किसी भी वस्तु को, यहॉं तक कि गुप्त वस्तुओं को सहजता से प्राप्त कर लेता है’, भीखाभाई बोले|
थोड़ी देर रुककर भीखाभाई पुन: बोले ‘उनके पास ‘यथाकामावसायित्व’ नामक सिद्धि भी है, जिसके बल से वे समूचे विश्व में चाहे जहॉं पहुँच सकते हैं|’
कुछ देर रुककर भीखाजी पुन: बोले ‘वे मेरे यहॉं मुझसे मिलने आ रहे हैं, तो मुझे उनका स्वागत करना चाहिए, लेकिन मेरी पास तो कोई सवारी ही नहीं है, क्या करूँ? किस वाहन से मिलने जाऊँ?’
ऐसा कहकर भीखाभाई पुन: विचारमग्न हो गए| थोड़ी देर रुककर ग्रामीण से बोले ‘मुझे उन सिद्ध महात्मा का स्वागत गॉंव के बाहर ही करना चाहिए और इसमें देरी नहीं करनी चाहिए| सवारी नहीं है, तो क्या हुआ सामने देखो वह दीवार तो है|’ भीखाभाई उस दीवार पर बैठ गए और दीवार से कहा ‘चलो, महात्मा जी से मिलना है, महात्मा जी के पास लेकर चलो|’
भीखाभाई का आदेश मिलते ही दीवार चल पड़ी, देखने वाले हैरान हो गए| दोनों ही योगी विचित्र सवारियों पर थे| गॉंव के बाहर दोनों की मुलाकात हुई| यही है, योग विद्या की शक्ति|
