ऐसे दूर करें फैक्ट्री के वास्तुदोषों को

वास्‍तु

वास्तु का प्रचलन सनातन है| यह अवश्य है कि कुछ समय के लिए दृष्टि से यह ओझल हो गया था, परन्तु आज यह पुन: अपने पूर्ण यौवन को प्राप्त हो चुका है, इसमें भी संशय नहीं है| आज के इस औद्योगिकीकरण के युग में अनेक परिवर्तन होते रहते हैं, जिससे अनेक समस्याओं का भी प्रादुर्भाव होता रहता है|
इससे औद्योगिक व्यवसाय अर्थात् फैक्ट्रियॉं भी अछूती नहीं हैं| कई कल—कारखाने कुछ वर्ष चलने के पश्‍चात् बन्द हो जाते हैं, तो कई वास्तु के सिद्धान्तों को लागू करने के कारण चलते रहते हैं और लाभ भी पहुँचाते हैं|
उद्योग कोई भी हो उसे चलता रहना चाहिए| किसी भी उद्योग को लगाना तो आसान है, परन्तु उसे निर्बाध गति से चलाना अत्यन्त ही दुष्कर कार्य है| यदि लाखों-करोड़ों का निवेश करने के उपरान्त भी फैक्ट्री घाटे में चले अथवा बन्द हो जाए, तो इससे ज्यादा दुविधा की बात क्या हो सकती है?
आज अनेक कल-कारखाने वास्तुदोषों की अनदेखी के कारण बन्द होने के कगार पर हैं| कुछ या तो बन्द हो गए हैं या जो बचे हैं, वे बस अपनी समयावधि पूरी कर रहे हैं|
कारण चाहे कुछ भी हों, परन्तु अन्त में वास्तुदोषों का होना ही सिद्ध होता है| यदि आप भी किसी कल कारखाने के स्वामी हैं या बनवाने का प्रयास कर रहे हैं, तो वास्तुनियमों को अपनाकर कारखाने से लाभ प्राप्त कर सकते हैं|
ध्यातव्य है कि निर्माण वास्तु-पुरुष की स्थिति के अनुसार ही करवाना चाहिए| इस तरह के निर्माण से भूखण्ड लाभदायक सिद्ध हो सकता है| वास्तुपुरुष की कल्पना औद्योगिक भूखण्ड में एक ऐसे औंधे मुँह पड़े हुए पुरुष के रूप में की जानी चाहिए, जिसमें वास्तुपुरुष का मुँह ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में एवं पैर नैर्ॠत्य कोण (दक्षिण-पश्‍चिम) की ओर रहे| वास्तुपुरुष की भुजाएँ एवं कंधे वायव्य कोण(उत्तर-पश्‍चिम) की तरफ होकर आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण) की तरफ जुड़े रहते हैं|
इसी वास्तुपुरुष के आधार पर भूखण्ड में निर्मित किए जाने वाली फैक्ट्री में ऑफिस, मशीनों की स्थापना, प्लेटफॉर्म, हीटर, बॉयलर, चिमनी, कैश काउण्टर, टैंक आदि की व्यवस्था वास्तु के अनुसार ही करनी चाहिए| जिससे यह लाभ पहुँचाने में पूर्ण समर्थ हो|
यहॉं कल—कारखानों की दो स्थितियों पर हम विशेष रूप से विचार करेंगे| एक तो जो कारखाना बनने जा रहा है तथा द्वितीय जो पहले से ही बना हुआ है|
आइए, सर्वप्रथम हम निर्माणाधीन भूखण्‍ड पर फैक्ट्री की संरचना पर विचार करें|
निर्माणाधीन भूखण्‍ड का आकार
कारखाने या फैक्ट्री के भूखण्ड का आकार वर्गाकार, आयताकार अथवा सिंहमुखी होना चाहिए| यदि ऐसा नहीं है तो यह फैक्ट्री में दोष उत्पन्न कर सकता है|
भूमिप्लवन(ढलान)
1. कारखाने के भूखण्‍ड का ढलान नैर्ॠत्य कोण (दक्षिण-पश्‍चिम) से ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) की ओर होना चाहिए|
2. यदि कारखाने के दक्षिण—पश्‍चिम में ऊँचे भवन हैं, उत्तर एवं पूर्व में खुला, ढलानयुक्त, चौड़ी सड़क अथवा नहर है, तो ऐसी जगह अत्यन्त शुभ होती है|
3. यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि ईशान कोण उँचाई पर नहीं हो| यहॉं बेकार की वस्तु अथवा कचरा भी नहीं होना चाहिए| यह स्थान जितना स्वच्छ रहेगा| भूखण्‍ड उतना ही लाभदायक सिद्ध होगा|
4. भूखण्ड के चारों तरफ दीवार होना अत्यन्त आवश्यक है| दक्षिण-पश्‍चिम की दीवार पूर्व-उत्तर की दीवार से नीची होनी चाहिए|
निर्माणकार्य
1. यदि आप पूर्व व उत्तर दिशा वाले भूखण्‍ड में निर्माण करवा रहे हैं, तो आपको पूर्व एवं उत्तर में दक्षिण एवं पश्‍चिम की अपेक्षा ज्यादा खाली स्थान छोड़कर निर्माण करवाना चाहिए|
2. यदि आप पश्‍चिममुखी वाले भूखण्‍ड में निर्माण करवा रहे हैं, तो पश्‍चिम दिशा की ओर खाली स्थान न छोडें| दक्षिण एवं उत्तर की ओर तिरछापन एवं झुकाव भी नहीं होना चाहिए|
यदि आप दक्षिणमुखी वाले भूखण्‍ड में निर्माण करवा रहे हैं, तो इस दिशा में कोई बरामदा अथवा बालकनी नहीं होनी चाहिए|
द्वार
कारखाने के भवन का मुख्यद्वार पूर्व, उत्तर एवं ईशान में होना चाहिए| यह स्थिति अत्यन्त उत्तम है| सर्वाधिक लाभदायक द्वार उत्तर दिशा वाला माना जाता है, क्योंकि उत्तर दिशा कुबेर के स्वामित्व में आती है|
यदि आप दक्षिणमुखी भूखण्‍ड में निर्माण करवा रहे हैं तो इसमें प्रवेशद्वार भूखण्‍ड के बीचों-बीच होना चाहिए |
बड़े वाहनों के आवागमन के लिए कारखाने में दो स्थानों पर द्वार बनाने चाहिए| निकासी का द्वार उत्तर अथवा पश्‍चिम में होना चाहिए|
ध्यातव्य है कि कारखाने का मुख्यद्वार पूर्वी आग्नेय अथवा उत्तरी वायव्य में बनाना उचित नहीं होता|
खिडकियॉं एवं रोशनदान
1. कारखाने में सबसे ज्यादा खिडकियॉं एवं रोशनदान उत्तर एवं पूर्व दिशा में बनवानी चाहिए|
2. ये खिड़कियॉं दीवार में एक ही लाइन में होनी चाहिए|
3. सभी खिड़कियॉं बाहर की ओर ही खुलनी चाहिए तथा इनकी संख्या सम होनी चाहिए| खिड़कियॉं दो पल्लों की प्रशस्त मानी गई है|
प्रशासनिक कार्यालय
कारखाने में व्यवस्था करने में कार्मिकों की आवश्यकता होती है| इसलिए कार्यालय से सम्बन्धित व्यवस्था को अत्यन्त सूझ-बूझ से करना चाहिए, क्योंकि इन्हीं के बल पर सम्पूर्ण कारखाने को चलाने की जिम्मेदारी होती है| प्रशानसनिक कार्यालय की व्यवस्था निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है:
1. कारखाने का प्रशासनिक कार्यालय पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए|
2. इसमें कारखाने के मालिक का स्थान दक्षिण, पश्‍चिम अथवा नैर्ॠत्य कोण में होना चाहिए|
3. कारखाने के मालिक का मुख यथासंभव पूर्व की ओर ही होना चाहिए| यदि पूर्व की ओर नहीं हो सकता हो, तो इसे उत्तर की ओर भी किया जा सकता है|
4. मालिक की सीट के पीछे उसके इष्टदेवता का चित्र अवश्य होना चाहिए| यदि उसके ऑफिस में किसी प्रकार का दोष भी रहेगा, तो इससे सभी दोषों का निराकरण हो जाएगा|
4. कार्यालय के ईशान कोण में इष्टदेवता की स्थापना अवश्य होनी चाहिए| यदि संभव हो, तो वहॉं पर पानी का भरा पात्र रख दें तथा रोजाना उस पात्र को नवीन जल से भरें|
मैनेजर का कक्ष
मैनेजर का कक्ष हो सके, तो नैर्ॠत्य कोण में ही मालिक के कक्ष के समीप करना चाहिए| इसे उत्तर अथवा पूर्व में भी किया जा सकता है| मैनेजर की बैठक स्थिति पूर्वोन्मुखी होनी चाहिए| आगन्तुक जब भी आये, तो उनका मुख दक्षिण अथवा पश्‍चिम की ओर ही रहना चाहिए|
अकाउन्टस एवं तकनीकी कक्ष
अकाउन्टेन्ट का कक्ष आग्नेयकोण में होना चाहिए तथा मुख उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए| अकाउन्ट्‌स से सम्बन्धित सभी दस्तावेजों को कक्ष के नैर्ॠत्य कोण में रखी अलमारी में रखना चाहिए|
फील्ड कर्मचारी
कारखाने से बाहर जाकर कार्य करने वाले फील्ड कर्मचारियों को वायव्य कोण में ही स्थान देना चाहिए| इस स्थान पर उनको रखने से उनके फील्ड वर्क में गति आएगी और वे स्थिर नहीं रह पाएँगे|
मजदूर कर्मचारियों की स्थिति
कारखाने की आत्मा या यूँ कहें की सबसे अहम कड़ी मजदूर होते हैं| यदि इनका मन—मस्तिष्क सही रहेगा,तो माल का उत्पादन भी ठीक होगा तथा कारखाने के लाभ में भी प्रगति होगी, अत: इनकी स्थिति पर हमें विशेष ध्यान रखना चाहिए|
1. कारखाने में कार्य करने वाले कर्मचारियों को इस तरह खड़ा करें, कि उनका मुँह उत्तर या पूर्व की ओर रहे|
2. बीम के नीचे कारीगरों को कदापि खड़ा नहीं करें| अन्यथा उनका मानसिक सन्तुलन ठीक नहीं रहेगा तथा तनाव की स्थिति में वे ठीक से कार्य नहीं कर पाएँगे, जिससे उत्पादन पर भी कम असर पड़ेगा|
3. यदि कर्मचारी वर्ग यदि बीम के नीचे आ रहे हैं, तो बीम को फॉलसिलिंग करवा देनी चाहिए|
4. यदि आप किसी कर्मचारी से परेशान हैं, और उसे हटाना चाहते हैं, तो उसे वायव्यकोण में दक्षिणमुख करके कार्य करवाएँ, वो कुछ ही दिनों में स्थान छोड़ देगा|
5. जिसे आप नियमित रखना चाहें तो उसे उत्तर अथवा पूर्वमुख रखना चाहिए|
अग्निसंयंत्र
बॉयलर, ट्रॉंसफार्मर, जनरेटर, बिजली के खम्भे आदि पूर्वी आग्नेय दिशा में होने चाहिए| चिमनी भी पूर्वी आग्नेय दिशा में ही रखनी चाहिए| यदि यहॉं सम्भव नहीं हो, तो इसे वायव्य कोण में भी रखा जा सकता है|
मशीनें
भारी मशीनों को दक्षिणी भाग में रखें तथा हल्की मशीनों को उत्तरी भाग में स्थापित करें| यदि भूमिगत मशीनें हों, तो उन्हें पूर्व या उत्तरी भाग में स्थापित करनी चाहिए| मशीनों के साथ प्रत्येक कक्ष में विद्युत् मोटर, स्विच आदि उपकरण को कक्ष के आग्नेय कोण में लगाना श्रेयस्कर रहेगा|
वर्कशॉप
खराब मशीनों अथवा यदि कारखाने में किसी भी तरह की सर्विस का कार्य होता हो, तो खराब यंत्रों को आग्नेय कोण में रखा जाना चाहिए| विकल्प से इसे पश्‍चिमी अथवा पूर्वी भाग में भी रखा जा सकता है|
माल का निर्धारण
कोई भी उद्योग अनेक श्रमिकों एवं कर्मचारियों की रोजी-रोटी का साधन होता है और यह रोजी-रोटी चलती है, फैक्ट्री में जिस भी वस्तु का निर्माण हो, उससे| इसके लिए कच्चा माल एवं तैयार माल का रख-रखाव एवं निकास सोच-समझ कर वास्तु अनुरूप ही करना चाहिए, क्योंकि माल के निर्माण के तुरन्तपश्‍चात् उसकी निकासी में विलम्ब हो, तो वित्तीय व्यवस्था तो गड़बड़ाती ही है, साथ ही भण्डारण की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है| इसके लिए हमें निम्नलिखित बिन्दुओं पर विशेष ध्यान रखना चाहिए|
1. भारी अर्द्धनिर्मित माल एवं कच्चे माल को नैर्ॠत्य भाग में रखना श्रेष्ठ रहता है| वैसे विकल्प से इसे उत्तरी भाग में भी रखा जा सकता है|
2. तैयार माल को हमेशा वायव्य कोण में रखना चाहिए| यहॉं माल रखने से उसकी बिक्री शीघ्र हो जाती है|
3. ईशान कोण, नैर्ॠत्य कोण एवं मध्य स्थल में निर्मित माल कदापि नहीं रखना चाहिए|
4. माल का उत्पादन दक्षिण-पश्‍चिम से प्रारम्भ होकर उत्तर-पूर्व की ओर से निकासी हो, ऐसा होना चाहिए|
पैकिंग कक्ष
कल-पुर्जों के निर्माण के बाद उनको संगठित करके वस्तु का रूप देकर उन्हें बाहर विक्रय के लिए भेजना होता है, इस स्थान को पैकिंग कक्ष कहा जाता है| यह कक्ष उत्तर अथवा पूर्व दिशा में बनाना चाहिए|
जल की व्यवस्था
कारखाने में जल की व्यवस्था का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है| इसलिए जल की व्यवस्था हमेशा उचित स्थान पर करनी चाहिए| कारखाने में जल की व्यवस्था ईशान में करनी चाहिए| वैसे इसे पूर्व या उत्तर में भी कर सकते है, किन्तु वहॉं कुआँ या ट्यूबवैल जरूर होना चाहिए| ओवर हेड टैंक वायव्य में बनाएँ|
दूषित जल का निकास
कारखाने में दूषित जल का निकास एवं प्रवाह पूर्व, उत्तर अथवा ईशान कोण की ओर रखना चाहिए, परन्तु ध्यातव्य है कि दूषित जल ईशान कोण में एकत्रित नहीं होना चाहिए| दूषित जल के शोधन का संयत्र यदि लगाना हो, तो इसे उत्तर अथवा पूर्व में ही लगाना चाहिए|
शौचालय
शौचालय को वायव्य या आग्नेय भाग में बनाना चाहिए| ईशानकोण में शौचालय का निर्माण कदापि नहीं करना चाहिए|
पार्किंग
वाहनों के लिए पार्किंग की व्यवस्था उत्तरी वायव्य एवं पूर्वी आग्नेय में करनी चाहिए|
गार्डरूम
यदि पूर्वी ईशान में द्वार हो, तो दक्षिण भाग में और यदि उत्तरी भाग में द्वार हो, तो पश्‍चिमी भाग में गार्डरूम होना चाहिए|
पेड-पौधे
पूर्व अथवा उत्तर में लॉन एवं छोटे पौधे लगाने चाहिए| भूखण्ड के दक्षिण एवं पश्‍चिमी भाग में बड़े पेड़ लगाने चाहिए|
निर्मित कारखाने में वास्तु दोष एवं उनका निराकरण
यह तो हुई निर्माणाधीन कारखाने का प्रारूप| आइए, अब उन कारखानों के बारे में चर्चा करें जो कि पहले से ही निर्मित हैं तथा सम्भवत: दोषयुक्त भी हैं| यदि कोई कारखाना पूर्ण परिश्रम अथवा अच्छे धननिवेश के बावजूद श्रेष्ठ परिणाम नहीं दे रहा है, तो निम्नलिखित उपाय करके दोष दूर किये जा सकते हैं:
मन्दिर
कहते हैं जो किसी के बस में नहीं है, वह ईश्‍वर के बस में है| यदि भूखण्‍ड में असंख्य दोष हों, परन्तु जिस भूखण्‍ड में ईश्‍वर का वास हो तो वह भूखण्‍ड सर्वथा दोषमुक्त हो जाता है, अत: कारखाने के भूखण्‍ड में ईशान कोण में एक छोटे मन्दिर की स्थापना अवश्य होनी चाहिए| कारखाने के स्वामी का जो भी इष्टदेव हो, उनकी प्रतिमा वहॉं स्थापित करनी चाहिए, परन्तु मन्दिर बनवाने के पश्‍चात् पूजा एवं रख-रखाव का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए| कई बार देखा गया है कि व्यक्ति मन्दिर का निर्माण तो करवा लेते हैं, परन्तु उनकी पूजा-अर्चना में कमी रख देते हैं| मन्दिर में पूजा की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए| उसमें नित्य पूजा-अर्चना आध्यात्मिक प्रवृत्ति को तो बढाती ही है, साथ ही भूखण्‍ड में यदि कोई दोष हो, तो उसे दूर भी करती है|
आकारगत दोष एवं उनका निवारण
1. यदि भूखण्‍ड में आकार से सम्बन्धित कोई दोष हो तो उसे यथासम्भव ठीक करवा देना चाहिए| अथवा हेज (पौधा विशेष)की दीवार खड़ी करवा देनी चाहिए, जिससे हरियाली का सुख तो प्राप्त होगा ही, साथ ही दोष भी समाप्त हो जाएगा|
2. यदि भूखण्ड का ईशान कटा हुआ है, तो यह दोष उत्पन्न करेगा तथा ऐसे स्थान पर पानी की समस्या निरन्तर बनी रहेगी|
3. ईशान को बढ़ा हुआ ही होना चाहिए| यदि ईशान छोटा होगा, तो भूखण्‍डस्वामी कभी भी आध्यात्मिक रूप से सफल नहीं हो सकता| इसे ठीक करने के लिए पूर्वी ईशान की दीवार पर एक आदमकद दर्पण लगा देना चाहिए| ध्यातव्य है कि इस दर्पण के ठीक सामने वाली दिशा में कोई भारी सामान नहीं होना चाहिए|
4. इस कोण में हरे-भरे पेड़ लगा देने चाहिएअथवा हल्के गमले रख देने चाहिए| इस दीवार पर सफेद रंग का प्रयोग किया जाना चाहिए|
5. यदि दक्षिणी भाग नीचा एवं उत्तरी भाग ऊँचा है, तो दक्षिणी भाग में भारी गमले, मिट्टी एवं ईंटों का ढेर लगाकर इस दोष को दूर किया जा सकता है| साथ ही ईशान कोण में दर्पण को भूमि पर इस तरह से लगाना चाहिए कि आकाश तत्त्व उस दर्पण में दिखाई दे|
6. यदि आग्नेय कोण से सम्बन्धित दोष हो, तो वहॉं लाल रंग करवा देना चाहिए तथा एक लाल रंग का बल्ब हमेशा जला रखना चाहिए|
द्वार सम्बन्धित दोष का निवारण
1. मुख्यद्वार हमेशा बड़ा ही होना चाहिए| यदि यह नहीं है, तो उसके चारों और फूल—पत्तियों के चित्र बना देने चाहिए, जिससे वह बड़ा प्रतीत होगा|
2. यदि दो से अधिक द्वार एक सीध में हैं, तो उनमें से मध्य में एक द्वार को हमेशा बन्द करके रखना चाहिए तथा वहॉं पर मांगलिक चिन्ह ‘स्वस्तिक’ अथवा ‘ॐ’ लगा देना चाहिए|
3. भवन का मुख्यद्वार यदि दक्षिण में हो, तो उसका शुभफल प्राप्त करने के लिए घर के दक्षिणी मुख्य द्वार पर दायीं सूंड वाले गणपति की स्थापना करनी चाहिए|
4. द्वार के ठीक सामने कोई वेध नहीं होना चाहिए| यदि है तो कुछ दूरी पर हेज की दीवार बना देनी चाहिए|
शौचालय सम्बन्धित दोष निवारण
शौचालय की सही स्थिति वायव्य है| यह आग्नेय में भी प्रशस्त कहा जाता है, परन्तु ऐसी स्थिति में रसोई घर वायव्य में होना चाहिए| ईशान कोण में यदि शौचालय बना है, तो यह गम्भीर स्थिति उत्पन्न करेगा| कारखाने का स्वामी हमेशा बीमार ही रहेगातथा वहॉं कई तरह की वित्तीय एवं कर्मचारियों से सम्बन्धित परेशानी भी उत्पन्न होगी| इसी स्थिति में शौचालय को वहॉं से हटा देना चाहिए तथा एक आदमी की लम्बाई जितनी मिट्टी निकाल कर, उसमें साफ मिट्टी भरवा देनी चाहिए| वहॉं पर हरे—भरे पेड़—पौधों का चित्र लगा देना चाहिए|
यदि शौचालय वहॉं से हटाने में असमर्थ हो, तो उसके अन्दर लड़ते हुए शेर का चित्र लगाएँ तथा उसका उपयोग बन्द कर देना चाहिए|
दुर्घटना सम्बन्धित दोष निवारण
यदि आपके कारखाने में आए दिन अग्निकाण्ड, उत्पादन में बाधा तथा दुर्घटना होती रहती हो, तो देखिए कि वायव्य, नैर्ॠत्य अथवा ईशान कोण में अग्नि अथवा विद्युत् संयंत्र तो स्थापित नहीं है, यदि है तो उसे तुरन्त वहॉं से हटा दीजिए तथा इन्हें आग्नेय कोण में रखिए| इन्हें कोण से हटाकर मध्य दिशा में कहीं भी स्थापित कर देना चाहिए|
सर्वदोष निवारण उपाय
इसके अलावा सभी परेशानियों से निजात पाने के लिए निम्नलिखित मंत्र को तॉंबे में जड़वाकर अपने भवन में लगा देना चाहिए| यह वास्तुकृत्यानाशक मंत्र इस प्रकार है :
वास्तु प्रज्ञान संयंत्रं कृत्या मंत्रै प्रतिष्ठितम्‌|
यत्र तिष्ठति विपेन्द्र तत्र सिद्धि प्रजायते॥
सर्वाणि वास्तु दोषानि, प्रशान्ति क्षणैन हि|
पूजितं चेत् भवेद् यंत्रं ब्राह्मणैवेद पारगै:॥

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