वर्तमान में मानव को चाहे कितनी ही सुख-सुविधाएँ उपलब्ध हो जाएँ, लेकिन मानसिक संतुष्टि इन वस्तुओं से प्राप्त हो, यह आवश्यक नहीं| इसका मुख्य कारण यह है कि मनुष्य की मानसिक कमजोरी उसे कदापि संतुष्टि का एहसास नहीं होने देती है| हमने कई व्यक्तियों को देखा है कि जिनके पास धन है, भरा-पूरा परिवार है, मान-सम्मान है, फिर भी वे मानसिक रूप से उद्विग्न रहते हैंतथा उन्हें अपने जीवन से संतुष्टि नहीं रहती है| हमेशा कोई न कोई शिकायत रहती है|
मानसिक कमजोरी के कारण ही व्यक्ति पर क्रोध, लोभ, मोह जैसे दुर्गुण हावी हो जाते हैं| मानसिक कमजोरी वाले व्यक्ति में धैर्य की कमी हो जाती है और वह परिस्थितियों से शीघ्र हारकर जीवन से समझौता कर लेता है तथा हमेशा दु:खी रहता है| यही मानसिक कमजोरी व्यक्ति में दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी भी करती है| एक सफल और असफल व्यक्ति में सिर्फ मानसिक शक्ति और दृढ़ इच्छाशक्ति का ही अंतर होता है| जो व्यक्ति जीवन में कठिन परिश्रम करके सफल होते हैं और उन्हें उच्च सफलता हासिल होती है, तो यह कोई भाग्य की परिणति नहीं होती, बल्कि इसके पीछे उनका कड़ा परिश्रम होता है| इसके विपरीत कई व्यक्ति यह जानते हुए भी कि अगर मैं परिश्रम करूँगा, तो इस कार्य में शीघ्र सफल हो सकता हूँ, फिर भी उस कार्य को नहीं कर पाते हैं| यदि प्रारम्भ कर भी देते हैं, तो छोटी-छोटी समस्याओं से डरकर दूर हट जाते हैं| यह समस्या मानसिक कमजोरी और दृढ़ इच्छाशक्ति में कमी के कारण ही उत्पन्न होती है|
यदि ज्योतिष के दृष्टिकोण से इसका मुख्य कारण देखें, तो ग्रहों में चन्द्रमा एवं भावों में लग्न तथा पंचम भाव से उक्त तथ्य का विचार किया जाता है| जिन व्यक्तियों की जन्मपत्रिका में चन्द्रमा अथवा लग्न तथा पंचम भाव पीड़ित होते हैं, तो समझिए वह व्यक्ति जीवन में कदापि सुखी नहीं रह सकता| उसका मुख्य कारण मानसिक कमजोरी एवं इच्छाशक्ति की कमी होना होता है| यदि वह जीवन में कुछ प्राप्त भी कर लेते हैं, तो यह सब भाग्य की ही कृपा होती है, क्योंकि भाग्य का अपना खेल है|
अधिकतर मानसिक रूप से असंतुष्ट व्यक्ति जिन्हें अपने जीवन में हमेशा कोई न कोई शिकायत बनी रहती है और जिनमें धैर्य की अत्यधिक कमी होती है, उनकी जन्मपत्रिका में चन्द्रमा पाप पीड़ित अथवा निर्बल होता है| साथ ही लग्न तथा पंचम भाव भी पीड़ित एवं पाप ग्रहों के प्रभाव में होते हैं|
नवग्रहों में चन्द्रमा मन का कारक कहा गया है| वेदों में भी यही तथ्य उजागर होता है| जब किसी व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्रमा पीड़ित होता है, तो उसका मन अशांत हो जाता है| ऐसे अशांत मन वाला व्यक्ति चाहे कुछ भी कर ले, जीवन में उसे कोई न कोई दु:ख अवश्य लगा ही रहता है| अगर ऐसा व्यक्ति राजा के घर भी जन्म ले, तो उसे राजमहल का सुख भी फीका लगता है| उसका स्वभाव एवं कार्यक्षमता इतनी निर्बल होती है कि वह किसी भी कार्य में सफल नहीं हो पाता| जब चन्द्रमा अत्यधिक निर्बल होकर पीड़ित होता है, तो व्यक्ति मानसिक रूप से विक्षिप्त, उन्मादी अथवा पागल भी हो सकता है| इन योगों में चन्द्रमा के अतिरिक्त अन्य ग्रहों एवं योगों का भी विचार करना आवश्यक होता है|
ज्योतिष के जातक ग्रन्थों में राजभंग योगों के अंतर्गत चन्द्रमा से निर्मित होने वाले राजभंग योगों का सर्वाधिक वर्णन किया गया है| शकट योग, पुनर्फू योग, केमद्रुम योग इत्यादि योग चन्द्रमा के पीड़ित होने पर ही निर्मित होते हैं| इससे सिद्ध होता है कि चन्द्रमा एक ऐसा ग्रह है, जो किसी भी प्रकार से पीड़ित होने पर मनुष्य की मानसिक स्थिति को प्रभावित करता है|
वर्तमान में सभी व्यक्ति जीवन में शांति की तलाश करते हैं, परन्तु उन्हें अपने व्यस्त जीवन के कारण शांति की जगह अवसाद, चिन्ताएँ और अकेलापन मिलता है, जिससे घबराकर वे मन की शांति के लिए मनोचिकित्सक के पास जाते हैं| आज विदेशों में ही नहीं बल्कि भारत में भी मनोचिकित्सक के पास जाने वाले मरीजों की संख्या बढ़ चुकी है| इससे पता चलता है कि वर्तमान में मानव जीवन कितना कठिन एवं संघर्षमय हो गया है|
प्रस्तुत लेख में इन मानसिक कमजोरी, मानसिक अवसाद एवं कमजोर इच्छाशक्ति के कुछ योगों को स्पष्ट किए जाने का प्रयास किया जा रहा है :
१. जब कुण्डली में केमद्रुम योग निर्मित होता हो अर्थात् चन्द्रमा से द्वितीय एवं द्वादश भाव में कोई ग्रह नहीं हो और चन्द्रमा केन्द्र एवं त्रिकोण भावों के अतिरिक्त अन्य भावों में स्थित होकर शुभ ग्रहों की दृष्टि से वंचित हो, तो केमद्रुम योग का निर्माण होता है| इस योग में व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोर एवं निर्बल इच्छाशक्ति वाला होता है| वह जीवन में सोचता तो बहुत है, लेकिन किसी भी कार्य को समय पर पूर्ण नहीं कर पाता है| यदि किसी प्रकार से वह कार्य को प्रारम्भ कर भी दे, तो भविष्य में आने वाली समस्याओं से विचलित होकर उसे शीघ्र छोड़ भी देता है|
२. जब जन्मपत्रिका में चन्द्रमा गुरु से षडष्टक सम्बन्ध बनाता हो और दोनों ग्रहों में से कोई भी त्रिकोण अथवा केन्द्र भावों में स्थित नहीं हो, तो शकट योग बनता है| यह योग भी मनुष्य को मानसिक रूप से कमजोर और निर्बल इच्छाशक्ति वाला बनाता है|
३. जब जन्मकुण्डली में चन्द्रमा और शनि की युति होती हो, तो व्यक्ति में कई प्रकार की कमियॉं होती हैं| विशेष रूप से वह मानसिक रूप से कमजोर होता है| यदि उसे जीवन में सही दशाएँ आ जाने के कारण सफलता मिल भी जाए, तो वह उससे संतुष्ट नहीं होता है और हमेशा परेशान रहता है|
४. चन्द्रमा लग्नेश, केन्द्रेश अथवा त्रिकोणेश होकर त्रिक भावों में पापग्रहों अथवा त्रिकेशों से पीड़ित होकर स्थित हो, तो व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान रहने वाला होता है और उसमें किसी भी कार्य को करने का सामर्थ्य नहीं होता|
५. जब किसी व्यक्ति का जन्म अमावस्या अथवा चन्द्रमा की कम कलाओं में हुआ हो और ऐसी स्थिति में चन्द्रमा का योग शनि, मंगल आदि पापग्रहों से हो जाए, तो ऐसा व्यक्ति जीवन में कितने ही सुख स्थित होने पर भी दु:खी रहता है|
६. चन्द्रमा और राहु अथवा चन्द्रमा और केतु की युति जन्मपत्रिका में बनती हो तथा इस युति पर पापग्रहों की दृष्टि भी हो, तो व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोर एवं मन से उद्विग्न रहने वाला होता है| ऐसे व्यक्ति छोटी-छोटी समस्याओं से शीघ्र परेशान हो जाते हैं|
७. जब जन्मपत्रिका में चन्द्रमा के साथ लग्न अथवा पंचम भाव अथवा इनके भावेश भी पीड़ित हों अर्थात् ये भाव पापकर्तरी योग के मध्य में हो अथवा इनके स्वामी अस्त, वक्री होकर त्रिक भावों में स्थित हों और उन्हें पापग्रह देखते हों, तो व्यक्ति मानसिक रूप से उद्विग्न और कमजोर इच्छाशक्ति वाला होता है| यदि केवल चन्द्रमा ही पीड़ित हो एवं भाव तथा भावेश प्रबल हों, तो व्यक्ति में मानसिक उद्विग्नता कम ही देखी जाती है, लेकिन फिर भी कुछ प्रभाव तो प्राप्त होता ही है|
मुख्य रूप से ऐसी समस्याएँ उस समय अधिक उभर कर आती हैं, जब चन्द्रमा की दशा-अन्तर्दशा हो अथवा उसे पीड़ित करने वाले ग्रह की दशाएँ हों| जब गोचर में साढ़ेसाती चल रही हो अथवा राहु एवं गुरु का प्रतिकूल गोचर चल रहा हो, तब भी ऐसी समस्याएँ देखने को मिलती हैं| रोजमर्रा के जीवन में भी ऐसा होता है कि जहॉं एक दिन हमारा बहुत अच्छा होता है, वहीं अगला दिन बहुत खराब| यह प्रभाव चन्द्रमा के गोचर से होता है|
यदि आप भी चन्द्रमा के ऐसे ही कुप्रभावों से ग्रस्त हैं और आपको भी जीवन में सफलता प्राप्त नहीं हो पायी है अथवा सफलतापूर्ण जीवनयापन करने पर भी मानसिक रूप से संतुष्टि नहीं है, तो इस हेतु चन्द्रमा और लग्नेश तथा पंचमेश को प्रबल करना आवश्यक होगा| चन्द्रमा को प्रबल करने के लिए ज्योतिष ग्रन्थों में एवं पुराणों में कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं| जिनमें से निम्नलिखित उपाय मुख्य हैं :
१. चन्द्रमा के मंत्रों का नित्य जप करें|
मंत्र :
‘ॐ सों सोमाय नम:’
‘ॐ श्रां श्रीं श्रों स: चन्द्राय नम:|’
२. चन्द्रमा के अधिदेवता भगवान् शिव की नित्य पूजा-उपासना करें|
३. सोमवार तथा प्रदोष का व्रत करें|
४. चन्द्रमा की कारक वस्तुओं जैसे सफेद वस्त्र, चॉंदी, दूध, चावल, मोती, रुद्राक्ष इत्यादि का सोमवार के दिन दान करें|
५. मॉं, बहन, बेटी, बुआ, मौंसी इत्यादि को पूर्ण मान-सम्मान दें तथा अपने जीवन में कदापि किसी स्त्री को नहीं सताएँ|
६. चन्द्रमा के कारक रुद्राक्ष दोमुखी एवं ग्यारहमुखी को लग्नेश एवं पंचमेश ग्रह के कारक रुद्राक्ष के साथ धारण करें|
७. पक्षियों एवं दीन-दु:खियों को अन्न एवं भोज्य सामग्री का दान करें|
८. प्रत्येक वर्ष जब भी चन्द्रमा की दशा आने पर समस्या अधिक हो, तो वृक्ष लगाएँ|
९. मोती रत्न धारण करें, परन्तु यदि चन्द्रमा मारक हो, तो इसे धारण नहीं करें|