40 दिन चला था राम-रावण महायुद्ध

ज्‍योतिष धर्म-उपासना

Published : October, 2008
आश्‍विन शुक्ल दशमी अर्थात् ‘दशहरा’ को जिस युद्ध की परिणति भगवान् राम की विजय के रूप में हुई, वह युद्ध ४० दिन तक चला था| सेतुबन्ध के उपरान्त भगवान् राम सेना सहित पौष माह के अन्त में लंका पहुँच गए थे| माघ कृष्ण पक्ष में अंगद दूत बनकर रावण की सभा में गए थे| उसके उपरान्त लगभग छह माह तक भगवान् राम एक ओर जहॉं युद्ध टालने के प्रयास में लगे रहे, वहीं दूसरी ओर युद्ध होने की स्थिति में उसकी तैयारियों में व्यस्त रहे| इस अवधि में वानरसेना और राक्षससेना के मध्य छिटपुट भिड़न्त होती रही, परन्तु वास्तविक युद्ध का प्रारम्भ तो भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा को हुआ|
पहला दिन
भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा
राम-लक्ष्मण का नागपाश में बन्धन
रावण ने इस दिन युद्धघोष करते हुए द्वार खुलवाकर अपनी प्रधान सेना का एक भाग वानरसेना से युद्ध करने के लिए भेजा| इस प्रकार युद्ध का विधिवत् आरम्भ हो गया| दोनों ओर के मुख्य योद्धा भी युद्ध में आ डटे| मेघनाद और अंगद का, प्रजंघ और सम्पाति का, हनूमान् जी और जम्बूमाली का, प्रतपन और नल का, प्रघस और सुग्रीव का, लक्ष्मण और विरुपाक्ष का, अग्निकेतु-रश्मिकेतु, सुप्तघ्न और यज्ञकोप इन चारों का भगवान् श्रीराम से, वानरराज द्विविद का अशनिप्रभ से, विद्युन्माली का सुषेण से भीषण युद्ध हुआ और इस युद्ध में प्रजंघ, जम्बुमाली, प्रघस, अग्निकेतु, रश्मिकेतु, सुप्तघ्न, यज्ञकोप, प्रतपन, अशनिप्रभ, विद्युन्माली मारे गए| इससे राक्षससेना में मायूसी छा गयी| उस दिन सूर्यास्त के उपरान्त भी युद्ध जारी रहा| रात्रि के युद्ध में इन्द्रजित् ने अंगद से परास्त होने के उपरान्त क्रोध में भरकर अपने सर्पबाणों से वानरसेना को बड़ी क्षति पहुँचायी और भगवान् श्रीराम को लक्ष्मण सहित नागपाश में बॉंध लिया| इससे वानरसेना शोकाकुल हो गई, तो वहीं लंका में हर्ष की ध्वनि फैल गयी| पक्षिराज गरुड ने आकर भगवान् राम और लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त किया|
दूसरा दिन
भाद्रपद शुक्ल द्वितीया
धूम्राक्ष का वध
युद्ध के द्वितीय दिन रावण ने धूम्राक्ष के नेतृत्व में विशाल सेना भगवान् राम के विरुद्ध भेजी| धूम्राक्ष का सामना महाबली हनूमान् जी से हुआ| दोनों में भीषण युद्ध हुआ और अन्त में हनूमान् जी ने पर्वत शिखर मारकर उसका वध कर दिया|
तीसरा दिन
भाद्रपद शुक्ल तृतीया
वज्रदंष्ट्र का वध
युद्ध के तृतीय दिन राक्षससेना का नेतृत्व वज्रदंष्ट्र ने किया| वज्रदंष्ट्र की सेना का सामना अंगद के नेतृत्व में वानरसेना से हुआ| अंगद ने बहुत समय तक युद्ध करने के उपरान्त तलवार से वज्रदंष्ट्र का वध कर दिया| इस प्रकार तीसरे दिन भी रावण की सेना का प्रमुख योद्धा वीरगति को प्राप्त हुआ|
चौथा दिन
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी
अकम्पन का वध
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी अर्थात् गणेश चतुर्थी के दिन अकम्पन ने राक्षससेना का नेतृत्व किया, लेकिन वह भी सूर्यास्त से पूर्व ही हनूमान् जी के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ|
पॉंचवॉं दिन
भाद्रपद शुक्ल पंचमी
प्रहस्त आदि का वध
युद्ध के पॉंचवें दिन रावण ने अपने सेनापति प्रहस्त को विशाल सेना के साथ भेजा| प्रहस्त के साथ नरान्तक, कुम्भहनु, महानाद, समुन्नत जैसे बड़े-बड़े योद्धा थे| लंका की लगभग एक-तिहाई सेना उसके साथ थी| उसका सामना नील के नेतृत्व में वानरसेना से हुआ| नील और प्रहस्त के मध्य भयंकर युद्ध हुआ| अन्त में नील ने एक विशाल शिला फैंककर प्रहस्त को वीरगति प्रदान की| इस प्रकार युद्ध के पॉंचवें दिन भी रावण को अपूरणीय क्षति पहुँची|
छठा दिन
भाद्रपद शुक्ल षष्ठी
रावण का पहली बार राम से युद्ध
युद्ध के छठे दिन रावण स्वयं रणभूमि में आ पहुँचा| उसने आते ही वानरसेना में मार-काट मचा दी| सुग्रीव, नल, सुषेण, गव्य, ॠषभ आदि प्रमुख योद्धाओं को परास्त कर दिया| हनूमान् जी और नील भी उस पर पार नहीं पा सके| तब सुमित्रानन्दन लक्ष्मण ने उसको ललकारा| दोनों के मध्य भीषण युद्ध हुआ| दोनों ने बाणों से एक-दूसरे को घायल कर दिया| रावण ने तब ब्रह्माजी द्वारा दिए गए शक्तिबाण का संधान किया, जिससे लक्ष्मण जी की छाती विदीर्ण हो गई और वे घायल होकर पृथ्वी पर गिर पड़े| रावण ने आगे बढ़कर लक्ष्मण जी को बन्दी बनाने के उद्देश्य से उठाकर अपने रथ में डालने का प्रयत्न किया, परन्तु शेषावतार लक्ष्मण को वह हिला भी नहीं सका| उसी समय हनूमान् जी ने क्रुद्ध होकर उसकी छाती में मुष्टिका का प्रहार किया, जिसके प्रभाव से रावण निश्‍चेत-सा हो गया और अपने रथ के पिछले भाग में जाकर बैठ गया| हनूमान् जी सुमित्रानन्दन को रघुकुल शिरोमणि भगवान् राम के पास ले गए| वहॉं उनकी मूर्च्छा दूर हुई| शक्ति भी लौटकर रावण के पास चली गई|
शत्रुसूदन लक्ष्मण जी के परास्त होने पर भगवान् राम ने रावण से युद्ध करने का निश्‍चय किया| वे हनूमान जी की पीठ पर चढ़कर रावण से युद्ध करने लगे| रावण ने हनूमान् जी को बाणों से घायल कर दिया, इस पर भगवान् राम अत्यन्त क्रुद्ध हुए, उन्होंने रावण के रथ को नष्ट कर दिया| फिर भगवान् राम ने वज्र के समान मजबूत और तीखे बाणों से रावण की छाती को विदीर्ण कर दिया| उसके उपरान्त उन्होंने एक दूसरे बाण से रावण के मुकुट को काट डाला| रावण के हाथों से धनुष छूट गया| नि:शस्त्र और थका हुआ जानकर भगवान् राम ने उसे लंका में वापस लौट जाने का आदेश दिया| इस प्रकार युद्ध का छठा दिन समाप्त हुआ|
पन्द्रहवॉं दिन
भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा
कुम्भकर्ण के वध का दिन
भाद्रपद शुक्ल सप्तमी से लेकर चतुर्दशी तक दोनों सेनाओं के मध्य कोई बड़ा युद्ध नहीं हुआ| इस अवधि में रावण ने अपने भाई कुम्भकर्ण को नींद से जगाया और उसे युद्ध के लिए तैयार किया| कुम्भकर्ण भाद्रपद शुक्लपूर्णिमा को रणभूमि में पहुँचा| उसके आते ही वानरसेना में भगदड़ मच गई, उसने पकड़-पकड़ कर वानरों को खाना आरम्भ कर दिया| ॠषभ, शरभ, मैंद, धूम्र, नील, कुमुद, सुषेण, गवाक्ष, रम्भ, तार, द्विविद, पनस, हनूमान्, अंगद इत्यादि प्रमुख शूरवीरों ने मिलकर कुम्भकर्ण पर धावा बोला, परन्तु कुम्भकर्ण ने उन सभी को घायल कर दिया और ८७०० वानरों को मार डाला| वह एक साथ ही ३०-३० वानरों को अपने हाथों से उठा लेता था और उसका भक्षण कर जाता था| उसने वानरराज सुग्रीव को भी परास्त कर दिया| वानरसेना की यह स्थिति देखकर लक्ष्मण ने कुम्भकर्ण का सामना किया, परन्तु वे भी उसे रोक न सके| इसके पश्‍चात् कुम्भकर्ण सीधा भगवान् राम के समक्ष पहुँच गया| दोनों के मध्य भीषण युद्ध हुआ| भगवान् राम के बाणों से आहत होकर उसके शस्त्र हाथों से छूट गए| उसके अंग-अंग में बाण लगे हुए थे| उसने एक पर्वत शिखर को उठाकर भगवान् पर प्रहार किया, परन्तु भगवान् राम ने सातबाणों से उस पर्वत शिखर को चूर-चूर कर दिया| दोनों के मध्य हो रहे उस भीषण युद्ध को अन्य योद्धागण विस्मित होकर देख रहे थे| भगवान् राम ने वायव्यास्त्र से कुम्भकर्ण की एक भुजा काट डाली| ऐन्द्रास्त्र से दूसरी भुजा काटी| दो तीखे अर्द्धचन्द्राकार बाणों से उसके दोनों पैर काट डाले| विशालकाय कुम्भकर्ण के कटे हुए हाथ-पैर वानरों और राक्षसों को दबाते हुए पृथ्वी पर आ पड़े| तब भगवान् राम ने बाणों से उसका मुँह भर दिया| ब्रह्मदण्ड और कालबाण से उन्होंने कुम्भकर्ण का मस्तक धड़ से अलग कर दिया और वह मस्तक लंका में जा गिरा| उस राक्षस का विशाल धड़ जो पर्वत के समान दिखाई पड़ता था, समुद्र के जल में जा गिरा| इस प्रकार भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को कुम्भकर्ण के वध के साथ उस दिन का युद्ध समाप्त हुआ|
१६वें से २१वॉं दिन
आश्‍विन कृष्ण प्रतिपदा से षष्ठी
त्रिशिरा, अतिकाय आदि का वध
कुम्भकर्ण के वध से लंका में शोक व्याप्त हो गया| रावण विलाप करने लगा| आश्‍विन कृष्ण प्रतिपदा को रावण के पुत्र और भाई त्रिशिरा, अतिकाय, देवान्तक, नरान्तक, महोदर और महापार्श्व युद्ध करने के लिए लंका से निकले| उनके साथ विशाल राक्षससेना भी थी| युद्ध निर्णायक मोड़ पर था| दोनों ओर के योद्धा विजय प्राप्त करने के लिए प्राणों को न्यौछावर कर रहे थे| इन राक्षस राजकुमारों ने रणभूमि में पहुँचकर वानरसेना में मारकाट मचानी शुरू कर दी| वानरसेना के प्रमुख योद्धाओं ने इनके विरुद्ध मोर्चा सम्भाला| अंगद ने रावण के पुत्र नरान्तक को रणभूमि में धूल चटायी| इस प्रकार आश्‍विन कृष्ण प्रतिपदा का दिन समाप्त हुआ|
आश्‍विन कृष्ण द्वितीया को हनूमान् जी ने रावण कुमार त्रिशिरा का वध किया| उसके दूसरे दिन रावण का अन्य पुत्र देवान्तक भी हनूमान् जी के हाथों मारा गया| आश्‍विन कृष्ण चतुर्थी को नील ने रावण के भाई महोदर को वीरगति प्रदान की| वानर श्रेष्ठ ॠषभ ने उसके अगले ही दिन अर्थात् पंचमी को रावण के अन्य भाई महापार्श्व का वध किया|
रावणकुमार अतिकाय ने अपने पराक्रम से वानरसेना को बड़ी क्षति पहुँचायी, परन्तु वह शत्रुसूदन लक्ष्मण के हाथों आश्‍विन शुक्ल षष्ठी को मारा गया|
२२वॉं दिन
आश्‍विन कृष्ण सप्तमी
राम-लक्ष्मण पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग
आश्‍विन कृष्णपक्ष के प्रथम छह दिन रावण के लिए अत्यन्त दु:खपूर्ण एवं शोकयुक्त रहे| उसे पराजय निकट प्रतीत हुई| दुर्ग की रक्षा के लिए स्वयं ने व्यवस्था की| अगले दिन अर्थात् आश्‍विन कृष्णपक्ष सप्तमी को इन्द्र पर विजय प्राप्त करने वाला मेघनाद रणभूमि में उतरा और उसने अपने महापराक्रम का प्रदर्शन किया| उसने आते ही वानरसेना में मार-काट मचा दी और अनेक यूथपतियों को घायल कर दिया| उसकी भयंकर बाणवर्षा के कारण वानरसेना में भगदड़ मच गई| उसने हनूमान्, सुग्रीव, अंगद, गन्धमादन, जामवंत, सुषेण, वेगदर्शी, मैंद, द्विविद, नील, गवाक्ष, गवय, केसरी, हरिलोमा, विद्युद्दंष्ट्र, सूर्यानन्द, ज्योतिर्मुख, दधिमुख, पावकाक्ष, नल, कुमुद इत्यादि श्रेष्ठ योद्धाओं को घायल कर दिया| ब्रह्मास्त्र का सहारा लेकर और स्वयं अदृश्य होकर उसने भगवान् राम एवं लक्ष्मण पर बाणों की वर्षा कर दी| बाणों की वर्षा से वे दोनों घायल हो गए और मूर्च्छित हो गए| इस प्रकार घोर संग्राम का १५वॉं दिन और युद्ध के आरम्भ से २२वॉं दिन समाप्त हुआ|
भगवान् राम और लक्ष्मण के मूर्च्छित होने पर वानरसेनापतियों में गहरी निराशा हुई| विभीषण ने वानरसेनापतियों को आश्‍वासन दिया कि मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया है, इसी कारण ब्रह्मास्त्र का सम्मान करते हुए भगवान् ने उसके विरुद्ध अस्त्रों का प्रयोग नहीं किया था| ये केवल मूर्च्छित हुए हैं और इनके प्राणों को संकट नहीं है| जामवंत के परामर्श से हनूमान् जी हिमालय क्षेत्र में ॠषभ और कैलाश पर्वत के मध्य औषधियों के पर्वत पर मृतसंजीवनी, विशल्यकरणी, सुवर्णकरणी और सन्धानी नामक औषधियों को लेने गए| उनके प्रभाव से राम और लक्ष्मण दोनों ही स्वस्थ हो गए और उनके शरीर से बाण निकल गए तथा घाव भर गए| रातों-रात वानरसेना के घायल सेनापतियों एवं सैनिकों को महौषधियों की सुगन्ध से नीरोग कर दिया गया|
२३वॉं-२४वॉं दिन
आश्‍विन कृष्ण अष्टमी-नवमी
कुम्भ-निकुम्भ एवं मकराक्ष के वध का दिन
आश्‍विन कृष्ण अष्टमी को दिन में युद्ध नहीं हुआ| रात्रि में वानरसेना ने लंका में घुसकर आग लगा दी| इससे क्रुद्ध होकर रावण ने कुम्भकर्ण के दोनों पुत्र कुम्भ और निकुम्भ को युद्ध करने के लिए भेजा| कुम्भ और निकुम्भ अपने साथ यूपाक्ष, शोणिताक्ष, अकम्पन जैसे श्रेष्ठ योद्धाओं को भी युद्ध के लिए ले गए| रात्रि में ही युद्ध प्रारम्भ हो गया, जो कि पूरे ही दिन नवमी को चला| इस युद्ध में अंगद ने अकम्पन का, द्विविद ने शोणिताक्ष का, मैंद ने यूपाक्ष का और सुग्रीव ने कुम्भ का वध किया| निकुम्भ भी हनूमान् जी के हाथों मारा गया|
सूर्यास्त के बाद भी युद्ध नहीं थमा| कुम्भ और निकुम्भ के वध का समाचार सुनकर रावण अत्यन्त क्रुद्ध हुआ और उसने खर के पुत्र मकराक्ष को युद्ध के लिए भेजा| मकराक्ष ने वानरसेना पर भयंकर आक्रमण किया| भगवान् राम को स्वयं उस आक्रमण का सामना करने के लिए आना पड़ा| मकराक्ष और राम के मध्य भीषण युद्ध हुआ| भगवान् राम ने पहले उसके धनुष को काटा, उसके बाद उसके रथ को नष्ट कर दिया| फिर भगवान् राम ने आग्नेयास्त्र से मकराक्ष का वध कर दिया|
२५वें से २८वॉं दिन
आश्‍विन कृष्ण दशमी से त्रयोदशी
मेघनाद का युद्ध और वध
मकराक्ष के वध का समाचार सुनकर राक्षसराज रावण बड़ा चिंतित हुआ और उसने इन्द्रजित् को युद्ध के लिए नियुक्त किया| इन्द्रजित् ने पहले अपनी शक्ति को और दिव्यास्त्रों को यज्ञ के द्वारा अर्जित किया| फिर वह युद्धभूमि में अदृश्य होकर लड़ने लगा| फिर उसने माया से बनी हुई सीता का वानरों के समक्ष वध किया| इससे वानरसेना में अत्यन्त निराशा एवं शोक व्याप्त हो गया| भगवान् राम भी शोकाकुल हो गए| तब विभीषण ने भगवान् राम को इन्द्रजित् की माया का रहस्य बताया| तब सभी को संतोष हुआ|
मेघनाद उस दिन का युद्ध समाप्त करके निकुम्भिला मन्दिर में जाकर यज्ञ करने लगा| विभीषण को जैसे ही इस बात का पता लगा, उसने भगवान् राम से निकुम्भिला मन्दिर में इन्द्रजित् के यज्ञ को रोकने के लिए सेना भेजने का परामर्श दिया| हनूमान् जी के नेतृत्व में वानरसेना ने राक्षससेना पर आक्रमण कर दिया| यह सुनकर इन्द्रजित् यज्ञ को अधूरा छोड़कर ही उठ खड़ा हुआ और रणभूमि में आ पहुँचा| राम की आज्ञा से लक्ष्मण इन्द्रजित् के समक्ष युद्ध करने आ खड़े हुए| दोनों के मध्य भीषण युद्ध होने लगा| आश्‍विन कृष्ण त्रयोदशी को सुमित्रानन्दन लक्ष्मण ने ऐन्द्रास्त्र के माध्यम से मेघनाद का वध कर दिया|
२९वॉं दिन
आश्‍विन कृष्ण चतुर्दशी
रावण की मुख्य सेना का युद्ध
आश्‍विन कृष्ण चतुर्दशी को शेष बचे सेनापतियों के साथ मुख्य राक्षससेना ने वानरसेना से युद्ध किया| भगवान् श्रीराम के बाणों से राक्षससेना को बड़ी क्षति पहुँची| उस दिन भगवान् ने दिन के आठवें भाग अर्थात् डेढ़ घण्टे में ही १० हजार रथ, १८ हजार हाथी, १४ हजार घोड़े और २ लाख पैदल सैनिकों को धराशायी कर दिया था|
३०वें से ४०वॉं दिन
आश्‍विन कृष्ण अमावस्या से आश्‍विन शुक्ल दशमी तक
रावण से युद्ध और उसका वध
आश्‍विन कृष्ण अमावस्या को रावण युद्ध के लिए निकला| उसने अपने शेष बचे प्रमुख योद्धाओं के साथ निर्णायक युद्ध का विचार किया| रणभूमि में आते ही उसने वानरसेना पर बाणों की वर्षा कर दी| लक्ष्मण ने उसकी गति को रोकना चाहा, परन्तु लक्ष्मणजी के बाणों को काटता हुआ वह भगवान् राम के समक्ष आ पहुँचा और राम और रावण के मध्य युद्ध आरम्भ हो गया| दोनों ओर से सामान्य अस्त्रों के साथ-साथ दिव्यास्त्रों का भी प्रयोग हो रहा था| इसी बीच लक्ष्मण जी ने उसके रथ को क्षति पहुँचाई और उसके धनुष को काट डाला, विभीषण ने रथ के घोड़ों को मार डाला जिसपर क्रुद्ध होकर रावण ने विभीषण को मारने के लिए शक्ति का संधान किया, जिसे लक्ष्मण जी ने बीच में ही नष्ट कर दिया| अब रावण और लक्ष्मणजी के मध्य युद्ध होने लगा| रावण ने मयासुर द्वारा प्रदत्त अमोघ शक्ति को लक्ष्मणजी की ओर छोड़ा, जिससे वे घायल होकर मूर्च्छित हो गए| रावण को हावी होता देख भगवान् राम ने उससे युद्ध करने का निश्‍चय किया| अब राम और रावण के मध्य पुन: युद्ध प्रारम्भ हो गया| भगवान् राम ने अपने बाणों से रावण को घायल कर दिया| घायल रावण लंका लौट गया| इस प्रकार अमावस्या के युद्ध का अन्त हुआ| मूर्च्छित लक्ष्मण जी हनूमान् जी द्वारा लायी गयी संजीवनी नामक औषधि से वैद्य सुषेण द्वारा नीरोग हुए|
दूसरे दिन पुन: राम और रावण के मध्य युद्ध आरम्भ हुआ| इन्द्र ने भगवान् राम के लिए रथ भेजा, जिस पर चढ़कर भगवान् राम ने युद्ध किया| भगवान् राम के बाणों से जब रावण घायल हो गया, तब उसका सारथि उसे रणभूमि से बाहर ले गया| सचेत होने पर रावण ने अपने सारथि को उक्त कृत्य के लिए फटकारा और पुन: युद्धभूमि में चलने का आदेश दिया| उधर महर्षि अगस्त्य के परामर्श से भगवान् राम ने आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ किया और रावण के वध का निश्‍चय किया| राम और रावण के मध्य अब निर्णायक युद्ध हो रहा था| दोनों के मध्य घोर संग्राम हुआ, जो कि रात में भी नहीं थमता था| दिन-रात चलने वाले इस युद्ध का समापन आश्‍विन शुक्ल नवमी को रात्रि में रावणवध के साथ हुआ और दशमी को विजयोत्सव मनाया गया| तब से आश्‍विन शुक्ल दशमी रावण पर भगवान् राम के विजय के उत्सव के रूप में मनायी जाती है|•

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