ड्राइंगरूम की वास्‍तु एवं दोषों के उपाय

वास्‍तु

Published : January, 2008
वास्तु शास्त्र के अनुसार वायव्य दिशा ड्राइंगरूम या अतिथि कक्ष के निर्माण हेतु सर्वोत्तम मानी गयी है| अतिथि कक्ष हेतु इस दिशा का निर्धारण यूँ ही नहीं किया गया है, अपितु इसके पीछे भी एक वैज्ञानिक सिद्धान्त कार्य करता है| वायव्य दिशा में उच्चाटन का एक विशेष गुण होता है, जिसे पहचानकर ही वास्तु के अन्तर्गत इस दिशा में अतिथिकक्ष का निर्धारण किया गया है| घर की वायव्य दिशा में कोई भी वस्तु लम्बे समय तक स्थित नहीं रह पाती है| यथा वायव्य दिशा में किसी व्यापारी ने माल रखा हुआ है, तो वह माल शीघ्र ही बिक जाता है| यदि इस कक्ष में विवाह योग्य कन्या को सुलाया जाए, तो शीघ्र ही उसका विवाह हो जाता है| इसी प्रकार इस कक्ष में अतिथि लम्बे समय तक नहीं रहता है| इस कक्ष से संबंधित वास्तुनियमों एवं महत्त्वपूर्ण बातों का इस लेख में वर्णन किया जा रहा है|
अतिथिकक्ष में फर्नीचर की व्यवस्था
अतिथि कक्ष में मुख्य रूप से पलंग, सोफा, कुर्सियॉं, टेबल ए.सी., कूलर, टेलीविजन, अक्वेरियम इन्डोर प्लान्ट्‌स, परदे, सजावटी चित्र इत्यादि रखे जाते हैं| पलंग की स्थिति सदैव पश्‍चिम या उत्तर दिशा से लगती हुई होनी चाहिए एवं दरवाजा उत्तर दिशा की तरफ रखना चाहिए| सोते समय सिरहाना सदैव दक्षिण या पूर्व दिशा की तरह ही होना चाहिए, अत: पलंग की व्यवस्था उसके अनुसार ही करनी चाहिए| अतिथि कक्ष में सोफा लगाते समय ध्यान रखें की यह ठीक ईशान में कभी नहीं हो एवं उस पर बैठने वाले का मुँह दक्षिण दिशा की तरफ नहीं हो, अत: इसके अनुसार ही बैठक की व्यवस्था करनी चाहिए| सेन्टर टेबल यदि लगानी हो, तो ध्यान रखें कि यह पूर्णरूप से गोलाकार कभी नहीं हो| यह वर्गाकार या आयताकार हो सकती है, लेकिन यदि इसके चारों तरफ के कोने हल्की-सी गोलाई लिए हुए हों, तो अधिक अच्छा होगा|
अतिथि कक्ष के प्रवेश द्वार के सम्बन्ध में भी सदैव ध्यान रखना चाहिए कि प्रवेश का रास्ता गली से या गैरेज के पास से हो एवं भवन के लिविंग रूम या मुख्य हॉल से उसका रास्ता नहीं हो अन्यथा अतिथि को एवं घर में रहने वाले अन्य सदस्यों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है| अतिथि कक्ष की खिड़की के सम्बन्ध में भी यह ध्यान रखना चाहिए कि वह मुख्यहॉल की तरफ नहीं खुलती हो, यदि गली में खुलती हो, तो बहुत अच्छा है| प्रवेश द्वार की एवं पलंग की स्थिति इस प्रकार की होनी चाहिए कि दरवाजे के सामने से गुजरने पर अतिथि का पलंग पूर्णरूप से नजर नहीं आए|
अतिथि कक्ष के पास या उससे जुड़ा हुआ स्नानघर भी अवश्य बनाना चाहिए| इसका प्रवेश द्वार अतिथि कक्ष के अन्दर से या उसके ठीक बाहर से रखा जा सकता है| इसकी स्थिति सदैव दक्षिण या पश्‍चिम दिशा की तरफ रखने का प्रयास करना चाहिए| अतिथि कक्ष की पश्‍चिम वायव्य दिशा में भी इसे बनाया जा सकता है, लेकिन ध्यान रखना चाहिए कि टॉयलेट कभी भी उत्तर दिशा की दीवार को छूता हुआ नहीं हो| ड्रेसिंग टेबल सदैव पूर्वी अथवा उत्तरी दीवार की तरफ हो, तो ठीक है| इससे ये दिशाएँ थोड़ी अग्रेत हो जाती हैं, जो कि वास्तु के अनुसार शुभ होता है, लेकिन यह ध्यान विशेष रूप से रखना चाहिए कि ड्रेसिंग टेबल कभी भी दरवाजे के ठीक सामने नहीं हो|
वर्तमान समय में अतिथिकक्ष में टेलीविजन रखना भी अनिवार्य सा हो गया है| इसकी स्थिति सदैव अतिथिकक्ष में आग्नेय कोण की तरफ होनी चाहिए| फोन यदि रखना चाहे तो सदैव अतिथिकक्ष की वायव्य दिशा की तरफ रखें यदि यहॉं रखना संभव नहीं हो, तो अग्निकोण में भी इसे रखा जा सकता है| यदि कूलर अथवा ए.सी. लगाना चाहें, तो ध्यान रखें कि ए.सी. सदैव दक्षिणी या पूर्वी आग्नेय की तरफ हो, लेकिन कूलर पूर्वी या उत्तरी भाग की तरफ हो|
घड़ी यदि लगाई जाए, तो इसे कभी भी दक्षिण दिशा की दीवार पर नहीं लगाना चाहिए| इसे उत्तर अथवा पूर्व दिशा की दीवार पर लगाा जा सकता है| आजकल अतिथिकक्ष में सजावट के लिए इनडोर प्लान्ट्‌स, विभिन्न पेन्टिंग्स अक्वेरियम, परदे, कारपेट इत्यादि लगाने का प्रचलन है| छोटे एवं फूलों वाले पौधे सदैव उत्तरी या पूर्वी दीवार की तरफ ही रखने चाहिए| यदि बोनसाई पौधे आप रखते हैं, तो पश्‍चिम या दक्षिण दीवार की तरफ रख सकते हैं| पेन्टिग्स एवं चित्र सभी दीवारों पर लगाएँ जा सकते हैं, लेकिन दक्षिणी दीवार पर हाथी, नग्नपहाड़, हनूमानजी इत्यादि के चित्र लगाने चाहिए| चित्र निराशापूर्ण भाव वाले या क्रूरता दर्शाने वाले नहीं हों| यदि ग्लास पेन्टिंग आप लगवाते हैं, तो ध्यान रखें यह दक्षिणी या पश्‍चिमी दीवार पर नहीं करवाई गई अन्यथा ये दिशाएँ अग्रेत होकर अशुभफलदायक हो सकती हैं| अक्वेरियम सदैव अतिथिकक्ष की ईशान या उत्तर दिशा में रखे, लेकिन आग्नेय कोण में नहीं रखें अन्यथा मछलियॉं अधिक समय तक जीवित नहीं रहेंगी| परदे एवं कारपेट ऐसे रंगों के प्रयोग करें जो गृहस्वामी की राशि के अनुकूल हो एवं प्रयास यही करें कि ये गहरे रंग के हों| यदि हल्के रंग के परदे लगाएँ, तो उत्तर और पूर्व दिशा की तरफ लगाएँ|
अतिथिकक्ष यदि घर के दक्षिणी या नैर्ॠत्य भाग में स्थित है, तो यह एक बहुत बड़ा दोष होता है, क्योंकि इस दिशा में स्थित कक्ष में अतिथि लम्बे समय तक रहता है| इसके अतिरिक्त वायव्य कोण में अतिथि कक्ष के स्थित होने पर अतिथि को बीमारी का सामना करना पड़ सकता है, अत: इस दिशा में भी अतिथि कक्ष बनाने से बचें| यदि वास्तु के विपरीत दिशा में अतिथि कक्ष बना हो, तो इस दोष को दूर करने के लिए, निम्न उपाय करें :
अतिथिकक्ष में वास्तुदोषों को दूर करने के हेतु उपाय
अतिथिकक्ष के वास्तुदोषों को दो भागों 1. दिशागत दोष एवं 2. अतिथिकक्ष की आन्तरिक साज-सज्जा संबंधी दोष में विभाजित करके अतिथिकक्ष के वास्तुदोष निवारण के कारगर उपायों के बारे में चर्चा की जाएगी|
दिशागत दोष : यदि अतिथि कक्ष आपके घर में गलत दिशा में स्थित है, तो उपयुक्त दिशा में दर्पण लगाकर इस दोष को दूर किया जा सकता है यथा घर के आग्नेय कोण में यदि अतिथि कक्ष स्थित है, तो अतिथिकक्ष की पूर्व ईशान दिशा में एक दर्पण लगाने से वह पूर्व की तरफ अग्रेत हो जाता है और दोष दूर हो जाता है| यदि दक्षिणी दिशा में अतिथि कक्ष स्थित है, तो अतिथिकक्ष की उत्तरी दीवार एवं नैर्ॠत्य में यदि अतिथि कक्ष स्थित है, तो उसकी उत्तरी वायव्य दिशा में दर्पण लगा कर इस दोष को दूर किया जा सकता है| दर्पण लगाने के सम्बन्ध में यह सदैव ध्यान रखें कि दर्पण फर्श से तीन या चार फुट ऊपर हो|
आन्तरिक साज-सज्जा से सम्बन्धित दोष :
प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसका अतिथिकक्ष सुन्दर एवं आकर्षक लगे| इस हेतु वह अपने अतिथि कक्ष में अनेक प्रकार की सजावटी वस्तुएँ लगाता है| ये सजावटी वस्तुएँ भी अनावश्यक रूप से वास्तुदोष उत्पन्न करती हैं| यदि अतिथिकक्ष में इन वस्तुओं को लगाने से पहले यदि वास्तु पर विचार लिया जाए, तो आपके अतिथिकक्ष में चार चॉंद लग सकते हैं| प्रमुख सावधानियॉं निम्नलिखित हैं :
यदि अतिथिकक्ष में पूर्वी दिशा की तरफ सामान की अधिकता से भार बढ़ रहा हो, तो पश्‍चिम दिशा की तरफ दर्पण लगाना चाहिए, लेकिन यदि उत्तरी दिशा में भार अधिक हो, तो दक्षिणी दीवार पर दर्पण नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इससे यह दिशा अग्रेत होकर अशुभफलदायक सिद्ध हो सकती है| इस दिशा में भार अधिक हो, तो दक्षिणी दीवार पर दर्पण नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि इससे यह दिशा अग्रेत होकर अशुभफलदायक सिद्ध हो सकती है| इस दिशा में दो हाथी या किसी हरियाली रहित बड़े पहाड़ का चित्र लगाने से यह दोष कम हो जाएगा| यदि अतिथिकक्ष का दरवाजा दक्षिण या आग्नेय दिशा की तरफ हो, तो इसके निवारण के लिए अतिथि कक्ष के द्वार पर दो बॉंसुरियॉं लाल फीता बॉंधकर लगानी चाहिए|
यदि अतिथिकक्ष में पलंग के ऊपर बीम स्थित हो, तो भी बीम के दोनों तरफ बॉंसुरियॉं लगाकर इस दोष से बचा जा सकता है|
यदि अतिथि कक्ष में पलंग के ऊपर बीम स्थित हो, तो भी बीम के दोनों तरफ बॉंसुरियॉं लगाकर इस दोष से बचा जा सकता है|
अन्य किसी भी प्रकार का दोष यदि अतिथिकक्ष में है, तो इसे उत्तरी या पूर्वी दीवार पर चलायमान वस्तु घड़ी इत्यादि लगाकर दूर किया जा सकता है|•